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ग्वालियर

देश के विकास के लिए फॉलोवर नहीं डिबेटर बनें

अगर हमें देश और समाज को विकसित, आत्मनिर्भर और पूर्ण रूप से सकारात्मक देखना है, तो हमें एकरसता को तोडऩा होगा।

ग्वालियरDec 30, 2017 / 11:23 pm

Gaurav Sen

gwalior news
अगर हमें देश और समाज को विकसित, आत्मनिर्भर और पूर्ण रूप से सकारात्मक देखना है, तो हमें एकरसता को तोडऩा होगा। किसी भी चीज को सभी अच्छा बोलें तो अच्छा, सभी गलत साबित करें तो हमारा भी उसे गलत मान लेना हमारे गूढ़ होने की निशानी है। हम डिबेटर नहीं बल्कि फ ॉलोअर बनकर रह गए हैं। डॉ लोहिया के अनुसार असहमति का अधिकार सदैव बना रहना चाहिए। अगर कोई बात आपको ज्ञान, नैतिकता, अर्थ या वैचारिकता के आधार पर गलत या आपत्तिजनक लगे तो उसके लिए असहमति जरूर जताएं। अगर आप सही हैं तो सही बात के लिए तर्क जरूर करें। यह बात सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायमूर्ति जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी ने कही। वह आईटीएम यूनिवर्सिटी में आयोजित तृतीय डॉ. राम मनोहर लोहिया स्मृति व्याख्यान-2017 को मुख्य वक्ता के रूप में सम्बोधित कर रहे थे।

युवाओं का कौशल बढ़ाने में हो काम
न्यायमूर्ति ने कहा कि पॉलिसी मेकर्स को युवाओं को उच्च शिक्षित बनाने, उनका कौशल बढ़ाने और गरीबी दूर करने में करना चाहिए। कोई भी कार्य बिना नैतिक कारण के करना ठीक नहीं होता। डॉ लोहिया की समाजवादी विचारधारा को अपनाना राजनीति के लिए बेहतर है। इस अवसर पर एडवाइजर ऑफ चांसलर प्रो. डॉ. आरडी गुप्ता, कुलपति प्रो. द्विवेदी सहित फैकल्टी व स्टूडेंट्स उपस्थित रहेे।

असुरक्षित समाज के लिए हम स्वयं जिम्मेदार
यूनिवर्सिटी के चांसलर रमाशंकर सिंह ने कहा कि हम वर्तमान में समाज की हालत देखकर अपनी संतानों व आने वाली पीढ़ी की चिंता करते हैं। जबकि अगर हम स्वयं इस समाज व देश की परवाह करते तो आज वह इस रूप में हमारे सामने नहीं होता। गांधीजी, डॉ लोहिया जैसे वीरपुरुषों से मिली आजादी की हवा में हमने आंख खोली है। इसलिए हम अपने कर्तव्य इस देश के लिए नहीं जानते, न ही इस आजादी की कीमत जान पा रहे हैं।
जाति और धर्म की न हो लड़ाई
अध्यक्षता कर रहे दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रो. राजकुमार जैन ने कहा कि आज जो भारत हमने कर दिया है, उसके मुद्दे धर्म, जाति तक सीमित रह गए हैं। जबकि डॉ. लोहिया ने कहा था कि इतिहास को झांककर देखिए लड़ाई देशी और विदेशियों की हुई थी हिंदु व मुस्लिम की नहीं। लोहिया एक ऐसे नेता थे, जिन्होंने सत्ता को मजबूर किया कि वह विपक्ष की आवाज सुनें। देश में लोकतंत्र को जिंदा रखने के लिए उन्होंने सिंद्धांत व नीति को अपनाया।

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