ग्वालियर। छठवीं से ग्याहरवीं सदी की पुरा संपदा के मामले में समृद्ध जिला जल्द विश्व मानचित्र पर चमकेगा। इसके त्रेतायुगीन शनि मंदिर व अमर शहीद पं. रामप्रसाद बिस्मिल संग्रहालय की वेबसाइट तैयार की गई हैं। पर्यटकों के लिए यहां शनि मंदिर से 10-25 किमी के दायरे में छठवीं से ग्यारहवीं सदी के एक दर्जन पुरा स्मारक हैं।
इनमें 10वीं सदी की पढ़ावली की प्रतिहारकालीन गढ़ी के अलावा मितावली का 64 योगिनी मंदिर, नूराबाद का मुगलकालीन पुल, सिहोनिया का ककनमठ, शनि मंदिर के पास विष्णु मंदिर भी है। पर्यटक यहां आकर इतिहास से रूबरू हो सकते हैं। इसके अलावा मुरैना शहर से करीब 20 किलोमीटर दूर राजघाट पुल के पास से चंबल सफारी की सैर के लिए बोटिंग की व्यवस्था भी है। जहां पर्यटक डॉल्फिन के रोमांच का आनंद ले सकते हैं। साथी मगर और घडिय़ालों को भी देख सकते हैं।
टूरिस्ट गाइड नियुक्त करने की है तैयारी
पर्यटन को रोजगार से जोडऩे की कवायद भी शुरू की गई है। पर्यटन स्थलों के आसपास की पंचायतों में टूरिस्ट गाइड रखने की तैयारी है। पंचायतों के माध्यम से जो गाइड रखे जाएंगे उन्हें पहले प्रशिक्षित भी किया जाएगा। गाइड नियुक्त करने के लिए शिक्षा के साथ कैमरा, ऊंट व घोड़े की उपलब्धता वालों को प्राथमिकता दी जाएगी।
चंबल सेंचुरी
वर्ष 1978 में 435 किलोमीटर लंबी चंबल सेंचुरी की स्थापना के बाद राजघाट पर मोटरबोट क्लब भी शुरू किया गया है। एक हजार से ज्यादा घडिय़ालों और 400 से ज्यादा मगर वाली चंबल में गैंगटिक डॉल्फिन, विभिन्न प्रजातियों के कछुए भी पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। जलीय जीवों का नजारा मोटर बोट से लिया जा सकता है। नवम्बर से मार्च-अप्रैल तक प्रवासी पक्षी भी चंबल सेंंचुरी में रौनक बढ़ाते हैं।
नूराबाद ब्रिज
बाबर के पोते जहांगीर ने नूराबाद की खोज की थी। इसके बाद सांक नदी पर मुगलकालीन स्थापत्य कला पर आधारित पुल बनवाया गया। बाद में मोतीमद खान ने धौलपुर रोड पर क्वारी नदी पर भी पुल बनवाया। भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित घोषित इस पुल को पुराना स्वरूप प्रदान करने के लिए तीन वर्ष पूर्व करीब 10 लाख रुपए खर्च किए जा चुके हैं। यहां मोटरबोट क्लब पांच करोड़ रुपए की लागत से प्रस्तावित है।
मितावली
100 फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित गुप्तकालीन शिव मंदिरों का निर्माण आठवीं शताब्दी में कराया गया था। 64 योगिनी मंदिर के नाम से मशहूर इसी मंदिर की प्रतिकृति भारत का संसद भवन माना जाता है। मंदिर के वृत्ताकार भवन में 64 कक्ष हैं, जिनमें प्रत्येक में एक शिवलिंग स्थापित है। बीच में भी एक मंदिर स्थित है। यह मंदिर कभी तांत्रिकों के विश्वविद्यालय के रूप में ख्यात था। आज भी लोग यहां विशेष पूजा करने आते हैं।
पढ़ावली
30 किलोमीटर दूर स्थित पढ़ावली की गढ़ी स्थापत्य कला का अनुपम नमूना है। 10वीं शताब्दी में प्रतिहार राजाओं द्वारा निर्मित यह मूलत: विष्णु मंदिर है। छत पर ब्रह्मा, शिव परिवार, सूर्य, शिव विवाह, विष्णु के दशावतार, कृष्ण लीला, गंधर्व, गायक आदि की कलात्मक मूर्तियां उकेरी गई हैं। पच्चीकारी के मामले में इसे ‘मिनी खजुराहोÓ भी कहा जाता है। पढ़ावली को सांसद आदर्श गांव घोषित करने के बाद पर्यटन सुविधाएं विकसित करने की कवायद और तेज हुई है।
सिहोनियां का ककनमठ
स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना सिहोनियां का ककनमठ मंदिर 11वीं शताब्दी में राजा कीर्तिराज ने बनवाया। रानी ककनावती के नाम पर इसका नाम ककनमठ पड़ा। खजुराहो तर्ज पर निर्मित ककनमठ 115 फीट ऊंचा है और निर्माण में ईंट-गारे का उपयोग नहीं है।
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