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ग्वालियर-चंबल के बाद अब गुना-अशोकनगर में आफत की बारिश

भूख से बिलखते बच्चों को दोपहर दो बजे मिल सका भोजन, 27836 लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजा, कई अब भी फंसे

ग्वालियरAug 07, 2021 / 08:51 am

Hitendra Sharma

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भोपाल. राज्य सरकार ने केंद्र से राहत राशि मांगने के लिए ग्लालियर-चंबल संभाग में बाढ़ से नुकसान का प्रारंभिक आकलन शुरू कर दिया है। प्राथमिक आकलन जल्द केंद्र को भेजा जा सकता है। लगातार बारिश से चंबल क्षेत्र के बाद अशोकनगर और गुना में पानी कहर बनकर बरपा है। दोनों ही जिलों में बाढ़ की स्थिति बनीं है। यहां भी रेस्क्यू ऑपरेशन कर लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया।

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अंचल में 23 हजार से ज्यादा मकान नष्ट हुए हैं। 1700 से ज्यादा पशुओं की मौत हुई है। सैकड़ों किमी सड़कें पूरी तरह से बरबाद हो गई हैं। बिजली सब-स्टेशन तबाह हो गए। अभी 5647 टांसफॉर्मर नष्ट होने का आकलन हैं। कुल 27836 लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजा हैं। 6918 लोगों का रेस्क्‍यू किया गया। कई लोग अब भी बाढ़ में फंसे हैं।

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अगले हफ्ते मैदान में होंगी स्पेशल टीमें
राजस्व विभाग अगले हफ्ते मैदानी सर्वे शुरू करेगा। स्पेशल टीम गठित की जाएंगी। सीएम ने प्री-रिपोर्ट देने के लिए कहा है। प्रदेश सरकार ने केंद्रीय टीम भेजने का आग्रह किया है।

शिवराज ने अमित शाह से की बात
सीएम शिवराज सिंह और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंघिया ने गृह मंत्री अमित शाह से मदद मांगी है। अशोकनगर और गुना में एनडीआरएफ की टीम भेजी जाएंगी। शिवराज ने शुक्रवार को अमित शाह से फोन पर बात की। इसमें अशोकनगर में रेस्क्‍यू के लिए सेना की मदद मांगी। शिवराज ने शाह को बताया कि अशोकनगर में 50 लोग बाढ़ में फंस गए हैं।

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भूख से बिलखते बच्चों को दोपहर दो बजे मिल सका भोजन
श्योपुर जिले के कराहल में सेसईपुरा के आदिवासी बस्ती में बाढ़ में सब कुछ गंवाने के बाद रहवासी बाढ़ राहत शिविर से वापस आकर बन भूमि के ऊंचे स्थान पर झोपड़ी बनाकर रहने लगे हैं। बाढ़ राहत शिविर में शुक्रवार को दोपहर एक बजे तक भोजन के पैकेट नहीं मिले। यहां तहसीलदार के द्वारा भोजन पैकेट भेजे जा रहे थे! बारिश में भीगते हुए झोपड़ी बना रहे आदिवासियों के बच्चे भूख से बिलख रहे थे। ऐसे में स्वयंसेवी संस्था एकता परिषद के कार्यकर्ताओं ने खिचड़ी बनाकर इन लोगों को खिलाई। दो बजे के बाद स्थानीय समूह ने भोजन उपलब्ध कराया। कराहल से यहां भोजन के पैकेट नहीं आने से आदिवासी परिवारों का बुरा हाल है।

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