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11 साल की उम्र में शादी और प्रताड़ना की शुरुआत
10 अगस्त 1963 को यूपी के गांव गोरहा में जन्म लेने वाली फूलन देवी शुरू से ही जातिगत भेदभाव का शिकार होती रहीं। 11 साल की उम्र में फूलन देवी को गांव से बाहर भेजने के लिए उसके चाचा मायादीन ने फूलन की शादी बूढ़े आदमी पुट्टी लाल से करवा दी। हालांकि, कम उम्र की वजह से फूलन देवी उस शादी के लिए तैयार नहीं थी। शादी के तुरंत बाद ही फूलन देवी लगातार दुराचार का शिकार होने लगीं। ससुराल पक्ष की प्रताड़ना से ग्रस्त होकर एक दिन अचानक वो अपने घर भागकर आ गईं।
15 साल की उम्र में जीवन का सबसे बड़ा हादसा
घर आकर फूलन देवी ने अपने पिता के साथ मजदूरी में हांथ बंटाना शुरु कर दिया। लेकिन, शादी के बाद घर से भागने पर लोगों ने बिना जाने ही उसपर आरोप लगाने शुरु कर दिये। लोगों द्वारा छेड़छाड़ और परेशान करने की घटनाएं आम होने लगीं। जब फूलन 15 साल की थी, तब उसके जीवन का सबसे बड़ा हादसा उसपर से गुजरा। गांव में रहने वाले ठाकुरों ने उनके साथ गैंगरेप किया।
बदला लेते ही चंबल में पसर गया फूलन का खौफ
इस घटना को लेकर फूलन न्याय के लिए भटकती रही, पर उसे कहीं से भी न्याय नहीं मिला। जिसपर फूलन ने बंदूक उठाकार खुद को खुद ही न्याय दिलाने का फैसला ले लिया। तभी फूलन की मुलाकात विक्रम मल्लाह से हुई, जिसके बाद दोनों ने मिलकर डाकूओं का अलग गैंग बनाया। फूलन के दिल में अपने साथ हुए दुराचार की टीस अभी भी बाकी थी, लिहाजा उसने अपने साथ हुए गैंगरेप का बदला लेने की ठान ली और 1981 में 22 सवर्ण जाति के लोगों को एक लाइन में खड़ा कराकर गोलियों से छलनी कर दिया। इसके बाद पूरे चंबल में फूलन देवी का खौफ पसर गया।
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इन शर्तों पर किया सरेंडर
इस जघन्य घटना को अंजाम देने के बाद सरकार द्वारा फूलन को पकड़ने के आदेश तो जारी किये गए, लेकिन उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश पुलिस फूलन देवी को पकड़ने में नाकाम रही। हालांकि, बाद में तात्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की ओर से 1983 में फूलन देवी से सरेंडर करने को कहा गया, जिसे फूलन ने मान लिया। हालांकि, फूलन ने यूं ही सरेंडर नहीं किया उसने सरकार से अपनी शर्तें मनवाई, जिनमें पहली शर्त उसे या उसके सभी साथियों को मृत्युदंड नहीं देने की थी। फूलन की अगली शर्त ये थी कि उसके गैंग के सभी लोगों को 8 साल से अधिक की सजा न हो। इन शर्तों को सरकार ने मान लिया था। पर फूलन देवी को 11 साल तक बिना मुकदमे के जेल में रहना पड़ा।
मिर्जापुर सीट से जीतकर बनी सांसद
1994 में आई समाजवादी सरकार ने फूलन को जेल से रिहा किया और इसके दो साल बाद ही फूलन को समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ने का ऑफर मिला और वो मिर्जापुर सीट से जीतकर सांसद बनी और दिल्ली पहुंच गई। इसके बाद साल 2001 फूलन की जिंदगी का आखिरी साल रहा। इसी साल खुद को राजपूत गौरव के लिए लड़ने वाला योद्धा बताने वाले शेर सिंह राणा ने दिल्ली में फूलन देवी के आवास पर उनकी हत्या कर दी।
फूलन देवी पर बनी फिल्म
हत्या के बाद राणा का दावा था कि, ये 1981 में सवर्णों की हत्या का बदला है। फूलन देवी पर फिल्म ‘बैंडिट क्वीन’ भी बन चुकी है। जिसे शेखर कपूर ने डायरेक्ट किया था। इस फिल्म पर फूलन को आपत्ति थी। जिसके बाद कई कट्स के बाद फिल्म रिलीज हुई। लेकिन बाद में सरकार ने इस फिल्म पर बैन लगा दिया था।
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