प्रदर्शनकारियों के नारों से बदरंग हुई दीवारें…
असम सचिवालय के बाहर अखिल असम छात्र संघ (आसू) के सदस्यों ने लोकसभा में विधेयक के पेश होने के दौरान काले झंडे लेकर विरोध जताया। असम सरकार जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 15 दिसंबर के दौरे को लेकर गुवाहाटी को दुल्हन के रुप में सजाया जा रहा है तो आंदोलनकारी रंग से सुंदर की गई दीवारों पर नारे लिखकर इन्हें गंदा कर रहे हैं।
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मंगलवार को नार्थ ईस्ट स्टूडेंटस आर्गेनाइजेशन (नेसो) ने पूर्वोत्तर बंद का आह्वान किया है। इसे देखते हुए परीक्षाएं रद्द कर दी गई। विधेयक के पारित होने के बाद से विरोध और तेज होने के आसार है।
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कैब का विरोध असम में क्यों
छह साल चले असम आंदोलन का पटाक्षेप 1985 में असम समझौते के साथ हुआ। इसमें तय हुआ कि विदेशी लोगों के लिए रहने का कट ऑफ 24 मार्च 1971 होगा। सभी ने इसे स्वीकारा।अब भाजपानीत केंद्रीय सरकार कैब में संशोधन के जरिए दिसंबर 2014 तक आए हिंदू बांग्लादेशियों को नागरिकता देने जा रही है। इसका ही विरोध हो रहा है। संगठन कह रहे हैं कि जब हमने 1971 तक के विदेशियों को स्वीकार कर लिया तो और क्यों करें। इससे हमारा अस्तित्व संकट में आ जाएगा। साथ ही 855 शहीदों के बाद हुए असम समझौते का कोई औचित्य ही नहीं रहेगा। कट ऑफ में धर्म के आधार पर नागरिकता की बात नहीं थी लेकिन भाजपा हिंदू बांग्लादेशियों को ही दे रही है। हिंदू बांग्लादेशी मूलतः बांग्लाभाषी है। इसलिए असमिया लोगों को लगता है कि इससे उनकी भाषा-संस्कृति को खतरा पैदा होगा।