कैसे करते परिजनों से संपर्क…
जब राज्य में एनआरसी का अद्दतन शुरु हुआ तो डॉन बास्को सोसाइटी द्धारा संचालित स्नेहालय के लिए यह चिंता का विषय था। लेकिन समय पर एनआरसी प्रबंधन द्धारा किए गए हस्तक्षेप से इन बच्चों के चेहरे पर आज मुस्कान दिख रही है। जब लाखों के नाम एनआरसी में न होने के चलते ये लोग एक कानूनी लड़ाई के लिए तैयार हो रहे हैं तब 14 सितंबर को आई एनआरसी की पूर्ण सूची में स्नेहालय के 60 अनाथ बच्चों का नाम शामिल है। इन बच्चों के पास लीगेसी के कागजात तक नहीं थे जो एक बड़ी चिंता का विषय था। स्नेहालय के वरिष्ठ कार्यक्रम समन्वयक देव कुमार दत्त ने कहा कि जब एनआरसी के आवेदन पत्र भरने का समय आया तो अनाथ बच्चों के अभिभावकों से लिंक करना बड़ी चिंता की बात थी। लेकिन हमारी चिंता 2015 में तत्कालीन राज्यपाल पी बी आर्चाय तक पहुंची और अंततः एनआरसी के राज्य समन्वयक कार्यालय ने पंजीकृत अनाथालय में रहने वाले बच्चों के नाम एनआरसी अद्दयतन के लिए शामिल करने की प्रक्रिया शुरु की।
गर्व से कहेंगे हम हैं इंडियन…
दत्त ने कहा कि जब पूर्ण सूची प्रकाशित हुई तो हमें अनाथ बच्चों के नाम उसमें देखकर बेहद खुशी हुई क्योंकि इनके पास ऐसा कोई कागजात नहीं था जिससे ये अपनी नागरिकता साबित करते। पर अब वे अपने को गर्व से भारतीय कह सकेंगे। इनके पास दिखाने के लिए सिर्फ स्कूल के कागजात थे। एनआरसी प्रबंधन इनके नाम शामिल करने में काफी उदार रहा।
यह बोले बच्चे…
ज्योति स्नेहालय में रहने वाली तथा बेलतला हाईस्कूल में कक्षा नौ की छात्रा कविता बर्मन ने कहा कि मैं एनआरसी में शामिल होकर गौरान्वित महसूस कर रही हूं। मैं अपने माता-पिता के बारे में नहीं जानती, फिर भी एनआरसी में नाम आना बेहद अच्छा लगता है। इससे साबित हुआ कि मैं भारतीय हूं। स्नेहालय में रहने वाले विशाल शर्मा को यह पता नहीं कि वह अनाथालय कैसे पहुंचा। जब तक एनआरसी का अद्दयतन शुरु नहीं हुआ था तब तक वह अपनी नागरिकता को लेकर चिंतित नहीं था। लेकिन अब नाम आने से वह बेहद खुश है। मैं जिसकी तलाश कर रहा था वह एनआरसी ने दे दिया।
बता दें कि एनआरसी में नाम नहीं अपने पर अभी भी लाखों लोग परेशान हैं। यह सभी अपनी नागरिकता सिद्ध करने और अपना नाम जुड़वाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ने की तैयारी में हैं। वहीं कुछ दिनों पहले यह बात सामने आई कि सिलचर की 200 सेक्स वर्कर्स के नाम भी इसमें नहीं हैं। यह सभी भी अपना नाम ना आने को लेकर चिंतित हैं। यह सभी मामले दर्शा रहे हैं कि एनआरसी किसी के लिए भयावह सपना बनी तो किसी के लिए खुशी का कारण।