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बदलाव : पारंपरिक खेती में लगातार हो रहे घाटे से जैविक खेती की ओर बढ़ रहा किसान

लागत कम, उत्पादन ज्यादा, दाम अधिक मिलने से प्रेरित हो रहा अन्नदातागांव के किसान बोले, वर्तमान में मौसम और बारिश की अनिश्चितता, महंगाई और महंगे कीटनाशक, खरपतवार नाशक दवाईओं का खर्च कम करने आवश्यकता बन गयी है जैविक खेती

गुनाJul 10, 2021 / 12:06 am

Narendra Kushwah

बदलाव : पारंपरिक खेती में लगातार हो रहे घाटे से जैविक खेती की ओर बढ़ रहा किसान

बदलाव : पारंपरिक खेती में लगातार हो रहे घाटे से जैविक खेती की ओर बढ़ रहा किसान

गुना . असामान्य मौसम और प्राकृतिक प्रकोपों के कारण हर साल पारंपरिक खेती में घाटे का सामना कर रहे किसानों को कुछ अलग सोचने पर मजबूर होना पड़ रहा है। यही कारण है कि अब जिले के अधिकांश किसान पारंपरिक खेती को त्यागकर जैविक खेती की ओर अग्रसर हो रहे हैं। इस काम में उनकी बखूबी मदद कर रही है कृषि विभाग की एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी मैनेजमेंट एजेंसी। जिसके टेक्नीकल अधिकारी किसानों को जैविक खेती करने के तरीके बता रहे हैं। जिसका अधिकांश किसान फायदा भी उठा रहे हैं।
पत्रिका ने ऐसे ही कई किसानों से बातचीत की। जिनमें से एक सफल किसान हैं अशोक कुमार नागर। जो जिला मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर दूर ग्राम अजरोडा विकास खंड बमोरी में रहते हंै। अशोक कुमार ने बताया कि वे पारंपरिक खेती में हर साल होने वाले नुकसान से बहुत ज्यादा परेशान हो चुके थे। एक समय ऐसा विचार भी मन में आया जब वे खेती को छोडऩे का मन भी बनाने लगे थे। इसी दौरान चार साल पहले उनका संपर्क कृषि विभाग आत्मा के अधिकारियों से हुआ। जिन्होंने उन्हें जैविक खेती के बारे में विस्तार से समझाया तो उनका मन फिर से खेती में लौट आया। इसके बाद मैंने अधिकारियों की उचित सलाह और उनके मार्गदर्शन में जैविक खेती शुरू की तो घाटे का धंधा बन चुकी खेती लाभ का धंधा बन गई है। गौर करने वाली बात है कि अशोक कुमार की जैविक पद्धति को देख आसपास के किसान भी प्रेरित होने लगे हैं। वे भी अब अशोक कुमार से बात कर जैविक खेती अपनाने की ओर बढऩे लगे हैं।

जैविक खेती ने लागत आधी कर दी
अशोक कुमार के अनुसार वह पिछले तीन वर्षो से जैविक पद्धति से खेती कर रहा है। जिसमें फसल की लागत अन्य किसानों की अपेक्षा आधी रह गई है और उत्पादित माल की कीमत भी अच्छी मिल रही है। मैंने कृषि विभाग की तकनीकी एजेंसी आत्मा के अधिकारी बीटीएम प्रमोद श्रीवास्तव की सलाह अनुसार अपने यहां जानवरों का उचित प्रबंध कर वर्मी कंपोस्ट इकाई का निर्माण किया है। जिससे जैविक खाद गौमूत्र आदि असानी से प्राप्त हो जाता है।
मैं किसी प्रकार का रासायनिक खाद का उपयोग नही करता हूं। उसके स्थान पर वर्मी कंपोस्ट, गोवर खाद का उपोग करता हूं। जिससे कीट व्याधि का प्रकोप बहुत कम होता है। साथ ही इसके रोकथाम के लिए घर पर ही नीम की पत्ती, धतूरा, आंक, मठठा आदि से जैविक कीटनाशक बनाकर रोकथाम करता हूं।

खाद के लिए लाइन में लगने का झंझट भी खत्म
जैविक खेती अपनाने से आर्थिक फायदे तो बहुत हुए हैं। इनमें एक फायदा खाद के लिए लंबी-लंबी लाइन से छुटकारा मिलना भी है। रबी सीजन में सभी किसान यूरिया के लिए लाइन में लगते थे जबकि मैंने गोमूत्र का स्प्रे फसल में करके यूरिया की पूर्ति की। जिससे मेरी फसल अन्य पारंपरिक खेती वाले किसानों की तुलना में कमजोर नहीं रही बल्कि लागत बहुत कम (आधी) रही और उत्पादन भी अच्छा प्राप्त हुआ।

1400 रुपए मंडी भाव से अधिक 2600 मक्का बेची
किसान अशोक कुमार ने बताया कि पिछले साल उन्होंने मक्का की फसल की थी। जिसमें फॉल आर्मी वर्म इल्ली का प्रकोप हुआ था। जिसे नष्ट करने के लिए अन्य किसानों ने हजारों रुपए की दवा डाली लेकिन मैंने प्रमोद कुमार श्रीवास्तव बीटीएम से सलाह लेकर 100 ग्राम सर्फ वाशिंग पाउडर प्रति पंप में घोलकर स्प्रे किया तो पूर्णत: इल्ली का नियंत्रण हुआ। वहीं जिस मक्का का मंडी में भाव 1400 रुपए था, वहीं मेरी मक्का फसल को कृषि विभाग आत्मा के सहयोग से ग्रीन ग्रेन कंपनी भोपाल ने 2600 रुपए प्रति क्विंटल में खरीदा। इस तरह मुझे दो गुना मूल्य प्राप्त हुआ।

जैविक खेती से पशु पालन को भी मिला बढ़ावा
जैविक खेती का दूसरा फायदा पशुपालन के रूप में हुआ है। पशुओं को रासायन रहित हरा चारा, भूसा एवं खली प्राप्त हो रही है। जिससे दूध एवं घी शुद्ध प्राप्त होता है। अशोक का कहना है कि आज उसके पास लहसुन, गेंहू एवं मूंग का उत्पादन पूर्णत:रासायन रहित है जिसका उसे अच्छा दाम मिलने का अनुमान हैं। अशोक कुमार वर्तमान में 2 एकड़ खेत में पूर्ण रूप से जैविक पद्धति से खेती कर रहा है। जिससे उसकी कुल लागत अन्य किसानों की तुलना में आधी आ रही है।

समय के साथ खेती का तरीका भी बदलना जरूरी
हमारे घर में पीढ़ी दर पढ़ी परिवार के सदस्य पारंपरिक खेती करते ही आ रहे हैं। इसी क्रम में मैंने भी यही खेती शुरू की। लेकिन जब मैंने गांव के ही किसान अशोक को जैविक पद्धति से खेती करते देखा। उससे बात करने पर पता चला कि इस तरीके से खेती करने से न सिर्फ लागत कम लगती है बल्कि फसल का भाव भी ज्यादा मिलता है। इसके बाद मैंने भी जैविक पद्धति से खेती करना शुरू कर दिया है। देखा देखी अब अन्य किसान भी जैविक खेती की ओर प्रेरित हो रहे हैं। क्योंकि वर्तमान में मौसम और बारिश की अनिश्चितता, महंगा डीजल, महंगा कीटनाशक तथा खरपतवार नाशक दवाईओं का खर्च कम करने के लिए आवश्यकता बन गयी है जैविक खेती।
संतोष, किसान

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