इंदौर के आर्किटेक्ट द्वारा तैयार किया गया स्टेडियम का मॉडल डिजाइन
गुना। करोड़ों रुपए की संपत्ति संजय स्टेडियम के आधिपत्य पर नगर पालिका गुना और खेल विभाग का अपना-अपना दावा है। सच्चाई ये है कि यह संपत्ति अभी तक सरकारी दस्तावेजों में न तो खेल विभाग के नाम दर्ज है और न ही नगर पालिका के। इन दोनों की आपसी खींचतान के चलते संजय स्टेडियम का विकास भी राजनैतिक दांव-पेंच में फंसा है, उससे अभी भी बाहर निकल नहीं पा रहा है। इसका ही परिणाम है कि बीते छह वर्ष से छह करोड़ रुपए की लागत से बिछाई गई एस्ट्रो टर्फ पर अखिल भारतीय शास्त्री हॉकी प्रतियोगिता का आयोजन तक नहीं हो पा रहा है। जबकि संजय स्टेडियम की सीढ़ियां भी जर्जर हो गई हैं और जगह भी लगातार सिमटती जा रही है। इसकी 0.339 हेक्टेयर जमीन को चेम्बर ऑफ कामर्स को सन् 2020 में तत्कालीन कलेक्टर ने राष्ट्रीय ध्वज लगाने के एवज में दे दी थी। जमीन आवंटन आदेश को निरस्त कराने की लड़ाई खेल प्रेमियों ने शुरू कर दी है। एक बार फिर अपने-अपने आधिपत्य को लेकर दोनों विभागों के बीच विवाद शुरू हो गया है। यहां के जनप्रतिनिधि और अफसर एकजुट होकर प्रयास करें तो संजय स्टेडियम में चहुंमखी विकास हो सकता है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस स्टेडियम की पहचान बन सकती है।
ये है मामला सूत्रों के अनुसार चार दशक पूर्व नगर पालिका गुना को श्यामा खेल प्रशाल की भूमि और उच्च शिक्षा विभाग को संजय स्टेडियम की जमीन आवंटित की गई थी।सन् 1983 में नगर पालिका के तत्कालिक प्रशासक एलएन करैया बने। उन्होंने उच्च शिक्षा के अधिकारियों के साथ एक बैठक की, जिसमें तय हुआ कि श्यामा खेल प्रशाल जो नगर पालिका की संपत्ति है, उसको उच्च शिक्षा विभाग अपने आधिपत्य में ले ले और नगर पालिका को उच्च शिक्षा विभाग की संपत्ति जो संजय स्टेडियम है, वह उसके आधिपत्य में हो जाए। इसका निर्णय हो गया। उच्च शिक्षा विभाग ने श्यामा खेल प्रशाल की भूमि तो सरकारी दस्तावेजों में अपने नाम इन्द्राज करा ली, लेकिन नगर पालिका ने नहीं कराई। मगर इस भूमि पर नगर पालिका का कब्जा हो गया था। इस भूमि पर नगर पालिका ने सन् 1983 में निर्माण के लिए बैंक से दो लाख रुपए का लोन लिया। जिससे दुकानें बनवाईं, जिनका किराया आज भी नगर पालिका वसूल रही है। सर्वे नम्बर 205 की 5.289 हेक्टेयर जमीन लगभग 24 बीघा जमीन जो संजय स्टेडियम की है वह मौखिक रूप से नगर पालिका को दी गई थी।
सन् 2004 में विकास की नई रखी रुपरेखा सूत्र बताते हैं कि सन् 2004 में नगर पालिका के तत्कालीन अध्यक्ष देवेन्द्र गुप्ता ने इस स्टेडियम के विकास की चर्चा की, उस समय वर्तमान केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने गेल, एनएफएल और अपनी सांसद निधि से लगभग दस करोड़ रुपए एकत्रित कराए। यह स्टेडियम आधुनिक बने, इसके लिए एक ब्लू प्रिंट इंदौर की कंपनी मोर्फो जीनियस आर्किटेक्ट से तैयार कराया। नगर पालिका परिषद के जरिए यह विकास कार्य होना थे, लेकिन नगर पालिका परिषद से इस संबंध में कोई निर्णय नहीं हो पाया। सन् 2007-08 में यह मामला पुन: आया, उस समय के तत्कालीन सामान्य प्रशासन मंत्री केएल अग्रवाल और वर्तमान केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया अलग-अलग राजनीतिक दलों में होने से संजय स्टेडियम के मामले में एक नहीं हो पाए थे। उस समय की नगर पालिका अध्यक्ष त्रिवेणी सोनी ने विकास कार्य कराने से यह कहकर इंकार कर दिया कि संजय स्टेडियम की जमीन पर नगर पालिका का स्वामित्व नहीं हैं। इसलिए निर्माण नहीं कराया जा सकता। मजेदार बात तो ये है कि त्रिवेणी सोनी के बाद राजेन्द्र सलूजा नगर पालिका अध्यक्ष बने, उनके कार्यकाल में स्मार्ट सिटी के तहत इस स्टेडियम में एस्ट्रो टर्फ स्वीकृत हुई थी।
ऐसे बदल गया आधिपत्य सूत्रों ने बताया कि सन् 2019 में नगर पालिका परिषद के न होने पर तत्कालीन कलेक्टर भास्कर लाक्षाकार नगर पालिका के प्रशासक भी थे। उन्होंने संजय स्टेडियम की जमीन खेल विभाग को हस्तांतरित करने संबंधी कागजी कार्रवाई कराई। इसके पीछे उनका आशय था कि संजय स्टेडियम के रखरखाव में खेल मैदान की स्थिति खेलने योग्य नहीं हैं, इस वजह से खेल विभाग को हस्तांतरित कर दी जाए। इसको लेकर लाक्षाकार ने 7 नवम्बर 2019 को कलेक्टर न्यायालय से खेल विभाग को संजय स्टेडियम हस्तांतरित करने के आदेश जारी कर दिए। जबकि नियमानुसार किसी भी स्टेडियम या सरकारी भूमि को हंस्तातरण करने का निर्णय मंत्री परिषद से होता है। जबकि संजय स्टेडियम पर सन् 1974 से शास्त्री के नाम हॉकी प्रतियोगिता होती रही है।
नगर पालिका ने केस भी जीता था संजय स्टेडियम में पूर्व में सार्वजनिक सभाएं, रैली होती थीं, इसको लेकर उस समय के हॉकी खिलाड़ी जिनमें शेखर वशिष्ठ भी थे, उन्होंने एक याचिका कोर्ट में लगाई थी इसमें नगर पालिका भी पार्टी थी। इस केस को न्यायालय से नगर पालिका ने जीत भी लिया था। उस समय से इस स्टेडियम में खेल प्रतियोगिताएं भी हो रही थीं।
ये है नजारा संजय स्टेडियम के कॉलेज वाली सड़क तरफ नगर पालिका के आधिपत्य का बोर्ड लगा हुआ है तो स्टेडियम परिसर में इस जमीन का आधिपत्य खेल विभाग होने के पटल लगे हुए हैं। खेल विभाग ने एक अपना कार्यालय भी इस परिसर में बनाया रखा हुआ है। वहीं खेल विभाग ने यहां बास्केट बॉल ग्राउंड भी तैयार कराया है।
– इनका कहना है – 7 नवम्बर 2019 को संजय स्टेडियम खेल विभाग को देने का आदेश तत्कालीन कलेक्टर भास्कर लाक्षाकार ने दिया था। एस्ट्रो टर्फ हमें हेण्डोवर करने के लिए कई बार नगर पालिका से कहा गया है लेकिन वे हस्तांतरण नहीं कर रहे हैं। इसको और सुन्दर बनाए जाने की हमारे विभाग की योजना है।
शर्मिला डाबर प्रभारी जिला खेल अधिकारी गुना – -संजय स्टेडियम नगर पालिका की संपत्ति है, इसके हमारे पास प्रमाण हैं। इसको अपने नाम न कराने के पीछे जिनकी लापरवाही रही है, उन पर कार्रवाई करना चाहिए। इस संपत्ति को पूरी तरह से अपने आधिपत्य में नगर पालिका ले और अपने नाम कराए। क्यों कि वहां की दुकानों का किराया नगर पालिका को मिल रहा है। इसके साथ ही जल्द यहां शास्त्री हॉकी प्रतियोगिता कराई जाना चाहिए।
शेखर वशिष्ठ नेता प्रतिपक्ष नगर पालिका परिषद गुना – -संजय स्टेडियम में दुकानें नगर पालिका ने बनाई थीं, इसलिए किराया नपा ले रही है। कुछ समय पूर्व खेल विभाग को संजय स्टेडियम दे दिया था, जब से उनके पास ही संजय स्टेडियम है।