आचार्य पंडित कृष्णकांत मित्रा रामायण में वर्णित कथा के बारे में बताते हैं कि वानरराज बाली के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया। अपने बल से बाली ने दुंदुभि नामक राक्षस का वध कर उसे उसका शरीर एक योजन दूर फेंक दिया था। हवा में उड़ते हुए दुंदुभि के रक्त की कुछ बूंदें मातंग ऋषि के आश्रम में गिर गईं। ऋषि ने अपवित्र रक्त देख क्रोधित हो गए और अपने तपोबल से जान लिया कि यह करतूत किसकी है। मातंग ऋषि ने कहा बाली ने राक्षस का वध किया कोई पाप नहीं। लेकिन एक मृत शरीर के शव के साथ इसतरह का बर्ताव अशोभनीय है। बाली के इस बर्ताव से ऋषि ने शाप दे दिया और कहा कि बाली कभी भी उनके आश्रम के समीप ऋष्यमूक पर्वत के एक योजन क्षेत्र में आएगा तो उसकी मृत्यु हो जाएगी।
इस बात का ज्ञान बाली के साथ ही सुग्रीव को भी था। जब दोनों भाई के बीच विवाद छिड़ा तो सुग्रीव यहां अपने साथियों के साथ आकर शरण ली। वर्तमान मे ये पर्वत दक्षिण भारत में प्राचीन विजयनगर साम्राज्य के विरुपाक्ष मंदिर से कुछ ही दूर पर स्थित एक पर्वत को ऋष्यमूक कहा जाता था और यही रामायण काल का ऋष्यमूक है। मंदिर के निकट सूर्य और सुग्रीव की मूर्ती भी स्थापित हैं।
मान्यता है कि इस पर्वत के ही गुफा में हनुमान जी भी उनके साथ रहते थे। आगे चलकर जब रावण ने माता सीता का अपहरण किया तो उन्हें खोजते हुए भगवान राम और लक्ष्मण की मुलाकात इस पर्वत पर सुग्रीव और हनुमान से हुई। बाद में सुग्रीव की स्थिति से अवगत होते हुए भगवान श्रीराम ने बाली का वधकर सुग्रीव को किष्किंधा का राज्य बनाया।