गाजियाबाद में भोजपुर, लोनी, मुरादनगर व रजापुल ब्लॉक और हापुड़, गढ़ व सिंभावली विकास खंड क्षेत्रों में भी जलदोहन की शिकायतें की गई हैं।एनसीआर क्षेत्र में गाजियाबाद और हापुड़ को वर्ष 1998 में अतिशोषित एरिया घोषित किया गया था। जल दोहन को रोकने के लिए दोनों जिलों में बोरवेल, कॉमर्शियल एवं औद्योगिक इकाइयों में बोरवेल के लिए प्रतिबंध लगाया गया है। बावजूद इसके अवैध रूप से बिना अनुमति के बोरवेल का जल दोहन किया जा रहा है।
आरटीआइ कार्यकर्ता सुशील राघव और सोसायटी फॉर प्रोटेक्शन आफ इंवायरमेंट एंड बायोडयार्सिटी के सचिव एवं अधिवक्ता आकाश वशिष्ठ ने अवैध रूप से हो रहे जल दोहन को रोकने के लिए ऐसी सभी इंडस्ट्री जिनमें जल दोहन हो रहा है, उन्हें बंद कराने के लिए करीब एक साल पूर्व एनजीटी में याचिका दायर की थी। याचिका में उत्तर प्रदेश सरकार, दोनों जिलों के डीएम, डीआइसी, सेंट्रल ग्राउंड वाटर अथारिटी को पक्षकार बनाया गया है। एनजीटी ने 25 अप्रैल को अंतिम मौका देते हुए डीआइसी को निर्देशित किया है कि वह उद्योगों की सूची नियत तिथि तक प्रस्तुत करें। ऐसा करने में असफल रहने पर पांच हजार रुपये प्रतिदिन के हिसाब से जुमार्ना लगाया जाएगा। 2012 से दोनों जिलों को नोटिफाइड कर दिया गया है। इसके बाद भी बिना अनुमति के अवैध जल दोहन हो रहा है।