गाज़ियाबाद

DMRC की सर्वे रिपोर्ट से खुलासा, डार्क जोन में शामिल है वैशाली मेट्रो स्टेशन

डीएमआरसी की तरफ से यात्रियों की सुरक्षा के लिए एक सर्वे किया गया है।

गाज़ियाबादJan 16, 2018 / 03:39 pm

Rahul Chauhan

गाजियाबाद। अगर आप गाजियाबाद के वैशाली मेट्रो के आसपास से गुजर रहे हैं तो जरा संभल कर चलें क्योंकि आपके साथ में कुछ भी घटना घटित हो सकती है। दरअसल, डीएमआरी की ब्लू लाइन मेट्रो के हॉटसिटी में पड़ने वाला आखिरी स्टेशन को डार्क जोन में माना गया है। इसके चलते यहां पर आपको बेहद सावधानी बरतने की जररूत है। डीएमआरसी की एक सर्वे रिपोर्ट से इस बात का खुलासा हुआ है।
मेट्रो के 28 स्टेशन हैं डार्क स्पॉट वाले
डीएमआरसी की तरफ से यात्रियों की सुरक्षा के लिए एक सर्वे किया गया है। जिसमें 28 मेट्रो स्टेशन डार्क स्पॉट पाएं गए है। इसमें ब्लू लाइन (द्वारका सेक्टर 21- नोएडा सिटी सेंटर/वैशाली) के 17 व येल्लो लाइन (हुडा सिटी सेंटर-समयपुर बादली) के 11 स्टेशनों को शामिल किया गया है। यहां पर पैसेंजरों को आवाजाही करने के दौरान सतर्क रहना चाहिए।
आए दिन होती है वारदात
बता दें कि वैशाली मेट्रो स्टेशन के पास आए दिन अलग-अलग तरह की वारदातें होती रहती हैं। इनमेें महिलाओं के साथ छेड़छाड़, फब्तियां कसना, यात्रियों का मोबाइल फोन झपटना जैसी वारदात शामिल हैैं। आंकड़ोंं पर गौर करें तो हर दूसरे दिन ट्रांस हिंडन के इस स्टेशन के आसपास में इस तरीके की वारदात घटित होने का मामला पुलिस के पास पहुंचते हैं।
ऑटो चालकों पर नहीं होती कार्रवाई
ऑटो में सवारी बैठाने के लिए ऑटो चालक वैशाली मेट्रो परिसर के अंदर तक घुस जाते हैं। इसके अलावा मेट्रो से जुड़े फुट ओवर ब्रिज पर भी ऑटो चालकों का कब्जा हर समय देखा जा सकता है। ये चालक अपने ऑटो में बैठाने के लिए महिलाओ व युवतियों के हाथ तक पकड़ लेते हैं। लेकिन इनपर किसी तरह की कार्रवाई नहींं की जाती।
स्नैपडील की कर्मचारी का हो चुका है अपहरण
वैशाली मेट्रो स्टेशन के बाहर से ऑटो में बैठाकर स्नैपडील की कर्मचारी दीप्ती सरना का भी अपहरण किया जा चुका है। करीब 10 फरवरी 2016 को बदमाशों ने ऑटो चालक बनकर स्नैपडील की कर्मचारी को अपने ऑटो में बिठाया था और राजनगर में ले जाकर अपहरण कर लिया था। हालांकि, तीन दिन बाद कर्मचारी पानीपत से सकुशल बरामद कर ली गई थी।
फिर पुराने ढर्रे पर लौटी पुलिस
स्नैपडील कर्मचारी के अपहरण के बाद जिले की पुलिस की हालत में सुधार नहीं आया। जनता को महफूज रखने के लिए ऑटो की कोडिंग की गई थी। कोडिंग के साथ साथ ऑटो चालक का वेरिफिकेशन भी पुलिस ने किया था। मगर जैसे जैसे वारदात पुरानी हुई, पुलिस भी पुराने ढ़र्रे पर लौट गई। अब ना तो इन ऑटो पर कोडिंग है और ना ही पुलिस के पास ऑटो चालकों का डाटा है।

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