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CG Naxal: जवानों के एक बार फिर तोड़ी नक्सलियों की कमर, पहाड़ियों में छिपे 6 बम किए डियूज

पत्रिका एक्सप्लेनर: ऑपरेशन के दौरान ऐसे 6 आईईडी खोजकर इन्हें डियूज किया गया। फोर्स की कैजुअलिटी देखें, तो इतने बड़े ऑपरेशन में महज 2 जवान मामूली रूप से घायल हुए हैं।

गरियाबंदJan 23, 2025 / 10:42 am

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CG Naxal: कुल्हाड़ीघाट रेंज में रविवार रात से जारी पुलिस-नक्सलियों की मुठभेड़ बुधवार देर रात थम गई। फोर्स ने तीन दिन में यहां पग-पग पर मौत को मात देकर 16 नक्सलियों को मार गिराया। पग-पग पर मौत इसलिए क्योंकि नक्सलियों ने यहां पहाड़ियों पर चारों ओर बम बिछा रखे हैं। ऑपरेशन के दौरान ऐसे 6 आईईडी खोजकर इन्हें डियूज किया गया। फोर्स की कैजुअलिटी देखें, तो इतने बड़े ऑपरेशन में महज 2 जवान मामूली रूप से घायल हुए हैं। इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि नक्सलियों के मुकाबले फोर्स अभी कितनी मजबूत है।
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इलाके में इतनी बड़ी संख्या में नक्सलियों के छिपे होने के कारणों की पड़ताल मे पता चला कि यहां पहले कभी नक्सलियों की आंध्रा-ओडिशा जोनल कमेटी सक्रिय थी। बॉर्डर से सटे इस इलाके से ओडिशा का नुआपाड़ा जिला लगता है। यहां भी नक्सलियों की डिवीजन कमेटी है। बस्तर में बढ़ते दबाव के बीच नक्सली यहां सुरक्षित ठिकाने की तलाश में जुटे थे। मुठभेड़ में ढेर नक्सलियों में सेंट्रल कमेटी का मेंबर जयराम उर्फ चलपति भी शामिल था। उस पर एक करोड़ का इनाम था।
वह मूलत: नक्सलियों की आंध्रा-ओडिशा कैडर का ही नेता है। काफी समय तक बस्तर में भी सक्रिय रहा। वापस उसके इस इलाके में लौटने के पीछे माना जा रहा है कि छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों के बढ़ते हमलों से बैकफुट पर आए नक्सली दोबारा से उन इलाकों में लौट रहे हैं, जहां पहले उनकी जड़ें मजबूत रही हैं। गरियाबंद जिले के जंगलों में इनके इकट्ठा होने के पीछे भी यही कारण है। यहां से वे आंध्रा-ओडिशा जोनल कमेटी को पुनर्जीवित करते हुए ओडिशा स्टेट कमेटी में अपनी धमक मजबूत करने की तैयारी में थे। हालांकि, फोर्स ने पहले ही उनके मंसूबे भांपते हुए लाल साजिश को नाकाम कर दिया है।
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नक्सलियाें की सेंट्रल कमेटी के नेता चलपति का मारा जाना छत्तीसगढ़ में फोर्स की अब तक की सबसे बड़ी कामयाबियों में एक है। इसे ऐसे समझिए कि जोनल कमेटी नक्सलियों के लिए एक राज्य समान है। बस्तर में दंडकारण्य जोनल कमेटी को मिलाकर छत्तीसगढ़ में तीन कमेटियां हैं। चलपति इन्हीं में से एक आंध्रा-ओडिशा जोनल कमेटी का सरदार था।
उसके एनकाउंटर को नक्सलियों का पूरा-पूरा एक राज्य खत्म होने की नजर से भी देखा जाए, तो कोई गलत बात नहीं होगी। दो राज्यों की फोर्स में जबरदस्त को-ऑर्डिनेशन से यह यह कामयाबी मिली है। इसके अलावा ऐसे में ऑपरेशन में लोकल इंटेलीजेंस की भी अहम भूमिका होती है। छत्तीसगढ़ में पुलिस का पलड़ा इस मामले में भी भारी हुआ है। पहले जो लोग पुलिस को जानकारी देने से भी बचते थे, वे अब पूरा सहयोग कर रहे हैं। ऐसे में नक्सलियों की जड़ें दिन-ब-दिन कमजोर होती जा रहीं हैं।

छग से ही घेरते थे इस बार ओडिशा से घेरा

मैनपुर के जंगलों में नक्सली समय-समय पर अपनी मौजूदगी दर्ज करवाते रहे हैं। इनकी तलाश में फोर्स लगातार सर्चिंग ऑपरेशंस भी चलाती रही। कभी बड़ी कामयाबी हाथ नहीं मिली, तो इसके पीछे का एक कारण एकला मिशन माना जा रहा है। यानी अब तक फोर्स छत्तीसगढ़ की ओर से ही ऑपरेशन पर निकलती थी। ये सरदही इलाका है, इसलिए नक्सली ओडिशा भाग जाते थे।
ये पहला मौका है जब दोनों राज्यों ने जॉइंट ऑपरेशन चलाते हुए नक्सलियों को दोनों ओर से घेर लिया। इसके चलते नक्सलियों को इस बार कहीं से भागने का मौका नहीं मिला। मारे गए। हालांकि, जयराम जैसे बड़े लीडर के मार जाने के बाद जिले के जंगलों में और भी नक्सलियों के छिपे होने की बात ने जोर पकड़ लिया है।

झरनों की खोह तक गए, पहले ये पता तक न था

पत्रिका पड़ताल में पता चला कि भालुडिग्गी की पहाड़ियां नक्सलियों के लिए हर लिहाज से सुरक्षित ठिकाना थीं। यहां कई छोटे-बड़े झरने हैं। आमतौर पर हर झरने की खोह (झरने से बहने वाले पानी के पीछे गुफानुमा जगह) नहीं होती। यहां के ज्यादातर झरनों में खोह है। वो भी इतनी बड़ी कि एकसाथ 50-60 लोग भी छिपें तो बगल से गुजरने पर पता न चले। नक्सलियों ने इन्हीं खोह में अपने छिपने की जगह बनाई थी। फोर्स को बहुत समय तक इस बारे में पता भी नहीं था। यही कारण था कि पहले भी चलाए गए कई सर्चिंग ऑपरेशन में कोई बड़ी कामयाबी नहीं मिली थी। बताते हैं कि फोर्स इस बार सभी झरनों की खोह तक भी जा रही थी। ऐसे में नक्सलियों से छिपने का ठिकाना भी छीन गया और जंगल में वे जवानों की गोलियों का शिकार हुए।

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