प्रशंसा के बंध गए पुल
रोहित और मोहित गर्मी की छुट्टियों का बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। लेकिन पापा की तबियत खराब होने से सारा प्लान ही कैंसिल हो गया था। दोनों को मायूस देखकर, पापा ने उन्हें कहा कि घर के पास काफी जमीन खाली पड़ी है। तुम दोनों वहां पौधे लगाओ। इससे तुम दोनों व्यस्त भी रहोगे और ये पर्यावरण के लिए भी अच्छा रहेगा।
दोनों भाइयों को यह आइडिया अच्छा लगा। और फिर क्या था दोनों ने जमीन की खुदाई शुरू कर दी। थोड़ी देर बाद उन्हें एक बॉक्स मिला। उन्होंने पापा को बुलाया और बॉक्स दिखाया। खोलने पर उसमें रुपए, पैसे और जवाहरात निकले। बच्चों ने अपने पापा से कहा, यह सब चीजें हमें पुलिस को सौंप देनी चाहिए। उनकी इस ईमानदारी के लिए घर-परिवार से लेकर कॉलोनी तक प्रशंसा के पुल बंध गए। पुलिस ने दोनों का सम्मान भी किया।
प्रथम भटनागर, उम्र 7 वर्ष
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खजाने से जगाई शिक्षा की अलख
एक बार की बात है। दो दोस्त थे राज और मोहन। एक दिन वे खेलते-खेलते एक पुराने बाग में पहुंच गए। वहां राज खुदाई करने लगा। मोहन उसके पास खड़ा था। उसके हाथ में एक सुंदर पौधा था, जिसे वह लगाना चाहता था। राज ने थोड़ी ही देर में जमीन में एक पुराना संदूक पाया। वह बहुत उत्सुक हो गया। मोहन, देखो! मैंने क्या पाया! उसने चिल्लाते हुए कहा। मोहन ने राज की ओर देखा और उत्सुकता से उसके पास आ गया। राज ने धीरे-धीरे संदूक को खोला। अंदर कई पुराने सिक्के और कुछ किताबें थीं। मोहन ने पौधा अपने हाथ में लिया और कहा, राज, यह तो एक खजाना है।
गांव के लोगों को दिखाना चाहिए। राज ने कहा, हां, लेकिन हमें इसे अच्छी तरह से संभालना होगा। उन्होंने मिलकर सभी चीजें बाहर निकालीं और सोचने लगे कि इन सिक्कों और किताबों का क्या किया जाए। मोहन ने पौधा लगाया और कहा हम इस खजाने का उपयोग गांव की भलाई के लिए करेंगे। सिक्कों से हम स्कूल की पुस्तकें खरीद सकते हैं और ज्ञान बांट सकते हैं। राज और मोहन ने मिलकर गांव में सबको बुलाया और अपनी खोज का साझा किया। सभी ने मिलकर एक योजना बनाई। धीरे-धीरे गांव में शिक्षा और खुशहाली बढऩे लगी। इस तरह राज और मोहन ने न केवल एक खजाना पाया, बल्कि अपने गांव के लिए एक नई उम्मीद भी जगाई।
पर्व जैन, उम्र 13 वर्ष
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असली खजाना
रमन और अमन दो भाई थे। रमन बड़ा,अमन छोटा। लेकिन आदतें दोनों की एक-सी थीं। दिन भर मस्ती करना, पेड़ पौधे तोडऩा, किताबें कॉपी के पेज फाडऩा आदि। स्कूल से भी कई बार शिकायतें आ चुकी थीं। मम्मी-पापा दोनों परेशान! एक दिन कुछ सोच कर उनके पापा ने बीमार होने का बहाना बनाया और उन दोनों को पास बुलाकर कहा, बच्चों!अब मैं तो बीमार हो चुका हूं। काम पर भी नहीं जा सकता। घर का खर्चा कैसे चलेगा? तुम दोनों अपने खेत में पेड़ के पास एक खजाना गड़ा है। उसे ले आओ और काम चलाओ। लेकिन ध्यान रखना कि जब तुम वह खजाना निकालो, तो उसकी जगह तुम्हें ऐसी चीज वहां रखनी होगी जिसकी कीमत आज तक किसी ने नहीं लगाई हो। नहीं तो काला सांप आकर तुम्हें डस जाएगा।
गूगल पर सर्च किया। दोस्तों से पूछा, कोई फायदा नहीं, क्योंकि दुनिया में सबकी कीमत होती है। तभी एक दिन कक्षा में सर बच्चों को पढ़ा रहे थे, इस संसार में सबसे अनमोल हमारी प्रकृति होती है, जिसकी बराबरी हम लाखों-करोड़ों रुपए देकर भी नहीं कर सकते। तुरंत अमन को यह बात समझ में आ गई। एक सुंदर-सा पौधा लेकर वह खेत पहुंचा। तब तक रमन ने खजाने का डिब्बा ढूंढ लिया था। दोनों ने बड़े ही सावधानी से खजाने का डिब्बा हटाकर उसकी जगह वह खिलता हुआ पौधा लगा दिया। जब उन्होंने खजाने का डिब्बा खोला, तो उसमें पत्र मिला-शाबाश मेरे बच्चों!आखिर तुमने असली खजाना पहचान ही लिया। दोनों के चेहरे पर खुशी के भाव थे।
हिनल यादव, उम्र 12 वर्ष …………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………..
शर्त ने बदला मन
एक आदमी पर्यावरण प्रेमी था। वह अपने घर के पास बगीचे में हर दिन पेड़ों को पानी देता। रोज पानी से भरी बाल्टी उठाकर लाता। पौधों को पानी देता। मेहनत करता और प्लास्टिक आदि अनुपयोगी कचरा होता, उसे साफ करता। अपना पूरा दिन पर्यावरण को अच्छा बनाने के कार्य में समर्पित कर देता, लेकिन उसके परिचित और मिलने वाले लोग ही उस पर हंसते हुए कहते, पूरे दिन तुम यह फालतू काम करके समय बिगाड़ते हो। अपने समय का सही उपयोग करो। अपनी कमाई बढ़ाओ। लेकिन वह आदमी लोगों की बातों पर ध्यान नहीं देता और हंसते हुए उनकी बातों को टाल देता। एक दिन ऐसे ही वह आदमी पेड़ उगाने के लिए गड्डा खोद रहा था। तभी उसे गड्डे में अचानक एक बक्सा मिलता है, जिसे देखकर सब लोग उसके पास आ जाते हैं। सभी को लगता है कि उसके अंदर कुछ न कुछ कीमती वस्तु होगी। या फिर सोना-चांदी होगा। सभी आकर उसकी मदद करने लग जाते हंै। उसकी सेवा करने लग जाते हैं, ताकि अंत में उस बक्से में से थोड़ा सा धन उन्हें भी मिल जाए। आदमी सब समझ जाता है कि ये सब लोग लालच की वजह से उसकी सेवा कर रहे हैं।
थोड़ी देर तक सब लोग यह इंतजार करते रहे कि कब वह बक्सा खोले और उन्हें धन मिले। लेकिन वह आदमी तो बक्सा खोलने का नाम ही नहीं ले रहा था। वह तो बस अपना काम करने में व्यस्त था। सभी उसे जाकर बोलते हैं कि एक बार बक्सा तो खोल कर देखो। वह आदमी कहता है, वैसे तो मुझे इस बक्से को खोलने में कोई रुचि नहीं है। तुम कह रहे हो तो खोल देता हूं, लेकिन एक शर्त पर …। सभी तपाक से बीच में ही बोल पड़ते हैं और उससे शर्त पूछने लगते हैं। वह आदमी कहता है बक्सा खोलने के बाद तुम्हें हमेशा मेरी मदद करनी होगी और खुद भी पर्यावरण का ध्यान रखना होगा। सभी लोग लालच में हां-हां कर देते हैं, क्योंकि सभी को लग रहा था कि बक्से में बहुत धन निकलेगा। जिसको वे सब आपस में थोड़ा-थोड़ा करके बांट लेंगे। जब वह आदमी बक्सा खोलता है, तो उसके अंदर कुछ नहीं निकलता है। वह बक्सा खाली ही होता है। सब यह देखकर दुखी हो जाते हैं और चुपचाप वहां से जाने लगते हैं। तभी वह आदमी उन सबसे कहता है, आपने तो मुझसे वादा किया था कि बक्सा खोलने के बाद आप हमेशा पर्यावरण का ध्यान रखेंगे और सब मेरे साथ पर्यावरण को सुधारने का कार्य करेंगे। आप मेरी मदद करेंगे। अब आप बदल रहे हैं। यह बात तो ठीक नहीं है। नहीं चाहते हुए भी सभी को शर्त के अनुसार उसके साथ पर्यावरण को सुधारने के लिए काम करना पड़ा। आज सबने मिलकर काम किया, तो बगीचे में बहुत सारे पौधे लगा दिए और उनको पानी भी पिलाया। कुछ दिन बाद वे पौधे नए पत्तों के साथ बड़े होने लगे। सभी यह देख खुश हुए।
पाखी जैन, उम्र 12 वर्ष ………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………. सच्चा खजाना
एक बार की बात है। दो लड़के थे। एक का नाम राम और एक का नाम मोहन था और उस दिन पर्यावरण दिवस था। वह दोनों पेड़ लगाने जा रहे थे। तभी राम ने मोहन से कहा कि एक पेड़ लेकर आओ, जब तक में गड्डा खोदता हूं। उसके बाद राम गड्डा खोदने लगा। तभी राम को खोदते हुए एक खजाने का पिटारा मिला।
राम और मोहन दोनों आश्चर्यचकित रह गए। उनके मन में यह बात आई कि जो इंसान अच्छे कर्म करता है। उसे अच्छा फल जरूर मिलता है। जिस तरह उन्होंने पेड़ लगाने के बारे में सोचा और उन्हें खजाना मिल गया। इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि हमें पेड़ लगाने चाहिए। यही हमारे लिए खजाना है।
हिमांशी पाल, उम्र 13 वर्ष
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प्रकृति प्रेम से मिला उपहार
बहुत समय पहले की बात है। एक बार एक गांव में दो भाई थे राम और श्याम। वह दोनों एक उपवन में खेल रहे थे, तभी अचानक राम बोला, बहुत गर्मी है। अगर पेड़ होते, तो कितना अच्छा होता। यहां कितने कम पेड़ हैं। क्यों ना हम यहां कुछ पेड़ लगा दें? यह सुन कर श्याम बोला, हाँ ! तुम सही कह रहे हो, पेड़ लगाएंगे, तो हमें भी खाने को खूब सारे मीठे-मीठे फल और बैठने को छाया मिलेगी। राम दौड़ता हुआ एक गमला और कुछ बीज लेकर आया और श्याम उन्हें लगाने के लिए गड्डा खोदने लगा। जैसे ही श्याम ने गड्डा खोदना शुरू किया, उसे खजाने की पेटी मिली।
वह खुशी से नाच उठा और सोचने लगा कि खजाना मिल गया है। अब जल्दी से इसकी चाबी भी मिल जाए, तो मजा आ जाए। तभी राम ने कहा आओ, हम पहले पेड़ लगाने का काम करते हैं। खजाना मिला है, तो इसकी चाबी भी मिल जाएगी। फिर दोनों भाई पेड़ लगाने का कार्य करने लगे और पूरे दिन मेहनत करते हुए शाम तक जब वो थक गए तब उन्हें अचानक उस खजाने की चाबी भी मिल गई। दोनों भाई बहुत उत्साहित होकर खजाने की पेटी और चाबी लेकर घर चले गए। यह कहानी शिक्षा देती है कि यदि आप प्रकृति के लिए कुछ अच्छा करते हैं, तो भगवान आपको वह सर्वश्रेष्ठ देंगे जिसके आप हकदार हैं।
स्मेरा सांखला, उम्र 7 वर्ष ……………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………… चिंटू की सूझ-बूझ
एक समय की बात है। चिंटू और मिंटू दो भाई थे। चिंटू अनुज और मिंटू अग्रज था। उनके घर के पीछे एक बड़ा सा खाली मैदान था। चिंटू चाहता था कि वो उस मैदान में एक फूल का पौधा लगाए। परंतु अभी वो छोटा था और उसे पौधा लगाने जितना गहरा गड्डा खोदना नहीं आता था। उसने अपने बड़े भाई मिंटू से कहा, भैया, मैं अपने घर के पीछे वाली जगह में एक पौधा लगाना चाहता हूं। आप उसके लिए एक गड्डा खोद दो। इस पर मिंटू ने चिल्लाते हुए कहा, भाई, ऐसे कामों के लिए मेरे पास समय नहीं है। यह कहकर मिंटू वहां से चला गया। इस बात पर चिंटू उदास होकर रोने लगा।
इतने में चिंटू को याद आया कि कल मिंटू कह रहा था, काश मुझे कोई खजाना मिल जाए, तो मैं बहुत सारे खिलौने और वीडियो गेम खरीद लूंगा। चिंटू ने मिंटू से कहा, भैया एक दिन दादी जी मम्मी को कह रही थीं कि मैदान में वहां उस जगह खजाना छिपा है। यह सुनकर लालच में आकर मिंटू तुरंत ही वहां गड्डा खोदने लगा। उस जगह खजाना नहीं मिलने पर चिंटू ने मिंटू को दूसरी जगह पास के पेड़ के नीचे गड्डा खोदने के लिए कहा और बोला कि शायद यहां मिल जाए खजाना और वह खोदी हुई जगह पर पौधे लगाने लगा।
देवांश सिंह, उम्र 12 वर्ष
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पेड़-पौधों से प्यार का मिला फल
एक बार की बात है। जब दो भाई चिंटू और पिंटू पौधे लगाने की सोच रहे थे। उन्हें पेड़-पौधे लगाना अच्छा लगता था। वह ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाया करते थे। एक दिन जब वो पौधे लगाने गए, तो उन्होंने एक प्यारा सा गमला लिया, जिसमें एक लाल फूल पहले से ही उग रहा था। बस वो उसे गमले से हटाके नीचे लगाना चाहते थे। वो एक प्यारी सी जगह पर गए। जहां चारों तरफ हरियाली ही हरियाली थी।
वहां पर एक बहुत सुंदर हरा-भरा पेड़ भी था। चिंटू ने कहा, भाई हम इस पेड़ के पास ही इस पौधे को लगाते हैं, तो पिंटू बोला लगा तो देंगे, पर इसके लिए कुदाली भी तो होनी चाहिए। हम तो कुदाली घर पर ही भूल गए। तो चिंटू जल्दी से भागा और कुदाली ले आया। अब पिंटू गमला लेकर खड़ा हो गया। चिंटू पेड़ के पास एक अच्छी जगह ढूंढकर कुदाली से गड्डा खोदने लगा और तभी एकदम से कुदाली किसी चीज से टकराई, तो पिंटू बोला अंदर कुछ है। देखा तो एक संदूक था। उसमें खजाना था। दोनों ने कहा, हम ऐसे ही धरती पर पेड़ लगाएंगे, तो खजाने मिलते रहेंगे।
मयंक, उम्र 10 वर्ष …………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………….. अच्छाई का तोहफा
एक गांव में दो दोस्त रहते थे चीकू और टिंकू। वह दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे। चीकू बोला, टिंकू कल मेरा जन्मदिन है। मैं जन्म दिवस पर पार्क में पौधा लगाना चाहता हूं। फिर उसे बड़ा होते हुए देखूंगा। वह भी धीरे-धीरे मेरे साथ बड़ा होगा। चीकू बोला यह तो बहुत अच्छा विचार है। मैं भी तुम्हारी मदद करूंगा।
तो कल पार्क में मिलते हैं। दोनों दोस्त अगले दिन पार्क में मिले। टिंकू फावड़े से खुदाई कर रहा था, तभी चीकू को कोई पौधा नहीं मिला, तो वह पूरा गमला लेकर पार्क आ गया। खुदाई करते समय मिट्टी में से एक बक्सा निकला। दोनों दोस्तों ने मिलकर उसे बाहर निकाला। दोनों दोस्तों ने खोला, तो देखा उसमें देवी की मूर्ति और कुछ रुपए थे। दोनों दोस्त बहुत खुश हुए। चीकू और टिंकू ने देवी जी की मूर्ति मंदिर में रखवा दी और उन रुपए से गरीबों को भोजन करवाया। इस तरह जन्मदिवस मनाया।
महिप, उम्र 7 वर्ष
…………………………………………………………………….. पेड़ बचाएंगे, प्रकृति संवारेंगे
एक बार की बात थी। एक गांव में दो दोस्त रहते थे। एक का नाम टिंकू और दूसरे का नाम मिंकू था। उन्हें जोखिम भरे काम करने में बहुत मजा आता था। एक बार उन्हें एक जगह का नक्शा मिला। वे उस जगह पर चले गए। वहां पर खेल-खेल में खुदाई करने लगे। तब उन्हें वहां पर एक बक्सा मिला।
बक्से में उन्हें एक संदेश पत्र मिला, जिसमें पेड़ लगाने की बात लिखी थी और पेड़ों के लाभ भी लिखे हुए थे। दोनों दोस्तों ने पत्र को ध्यान से पढ़ा। दोनों पर असर यह हुआ कि उन्होंने कसम खाई कि वे पेड़ लगाएंगे। इसके बाद उन्होंने साथ मिलकर पौधे लगाए और लोगों को भी जागरूक करने लगे।
जान्हवी, उम्र 11 वर्ष
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एक पौधा और खजाना
यह कहानी एक लालची बच्चे की है, जिसका नाम रमेश था। एक दिन रमेश को सड़क पर एक नक्शा पड़ा दिखाई दिया। उसने उसे उठा कर बड़े ही ध्यानपूर्वक देखा। उसने अंदाजा लगाया कि हो न हो यह किसी खजाने का नक्शा हैं। अगले दिन रमेश खजाने की तलाश में निकल गया और नक्शे में बताई जगह पर एक बगीचे में पहुंच गया। वहां जाकर खजाने की तलाश करने के लिए गड्डा खोदने लगा। तभी रमेश का दोस्त मोहन भी उस बगीचे में आया। मोहन रमेश को देखकर एक पड़े के पीछे छिप गया और उसे देखने लगा। तभी रमेश को लगा कि उसे कोई देख रहा है।
रमेश ने अपने आसपास देखा, तो उसे कोई भी नजर नहीं आया। उसने गड्डा खोदना शुरू किया। थोड़ा खोदने पर वहां उसे एक संदूक मिला। संदूक बहुत चमक रहा था। वह खुश हुआ, लेकिन जब खोला तो उदास हो गया क्योंकि उसमें पत्थर थे। तभी मोहन भी रमेश के पास गया और बोला, रमेश तुम उदास मत हो, इस खजाने में क्या रखा है। असली खजाना तो यह पौधा है। इस पौधे को उगाओ। जब यह बड़ा हो जाएगा, तब यह हमे छांव देगा, फल देगा और ताजी हवा भी देगा। पक्षियों का घर भी बनेगा। यह पेड़ सिर्फ मेरे लिए ही नहीं, हम सभी के लिए खजाना है। यह बात सुनकर रमेश की आंखें खुल गईं। इसके बाद रमेश ने भी मोहन के साथ मिलकर पौधे लगाना शुरू कर दिया।
गरिमा गहलोत, उम्र 10 वर्ष
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पर्यावरण जोड़ी
करण और उत्कर्ष दो पर्यावरण के प्रति जागरूक दोस्त, ग्रह की भलाई के लिए गहरी चिंता साझा करते हैं। एक दिन पर्यावरण पर मानवीय कार्यों के विनाशकारी प्रभाव पर चर्चा करते हुए, उत्कर्ष ने कहा, हम अपना घर नष्ट कर रहे हैं! अगर हम नहीं रुके तो पृथ्वी रहने लायक नहीं रह जाएगी। करण ने सहमति में सिर हिलाया। मुझे पता है, लेकिन हम अकेले क्या कर सकते हैं? केवल हमारे प्रयासों से कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
उत्कर्ष मुस्कुराया और बोला यह बिल्कुल वैसा ही है जैसा दूसरे लोग सोचते हैं। लेकिन हम हार नहीं मान सकते। दोनों ने पेड़ लगाने की सोची और जैसे ही उन्होंने खुदाई शुरू की। करण की कुदाल किसी चीज से टकराई। उन्हें सोने और बहुमूल्य रत्नों से भरा एक बक्सा मिला। आश्चर्यचकित होकर उन्होंने एक-दूसरे की ओर देखा। उत्कर्ष ने मुस्कुराते हुए कहा, पृथ्वी हमें हमारे प्रयासों के लिए पुरस्कृत कर रही है।
आकृति जैन, उम्र 13 वर्ष