मंदिर के महंत जगजीवन राम मिश्र बताते हैं कि करीब 2300 साल पहले फिरोजाबाद शहर में मंदिर के स्थान पर एक खंडहर था। आबादी के नाम पर यहां वीरानी सड़कें दिखाई देती थीं। इस जगह पर साधु महात्माओं का डेरा था। पेड़ की छांव में यहां सैकड़ों साधु महात्मा तपस्या किया करते थे। महात्माओं ने तप करने के लिए यहां गुफा की खुदाई की थी। उसी दौरान जमीन से यह हनुमान जी की प्रतिमा निकली थी। उस दौरान महात्माओं ने इस मूर्ति को ऐसे ही यहां स्थापित कर दिया था। उस दौरान यह स्थान टीले के रूप में परिवर्तित था इसलिए कोई भी यहां आने से कतराता था।
महंत बताते हैं कि हनुमान जी की प्रतिमा चलने की मुद्रा में है। प्रतिमा में उनकी एक आंख ही नजर आती है। उनके दोनों पैर एक दूसरे के विपरीत आकार में हैं। उनके कंधे पर भगवान राम और लक्ष्मण विराजमान हैं। उनके हाथ में चक्र और गदा भी है। इसको लेकर मान्यता है कि जब अहिरावण ने राम और लक्ष्मण को बंदी बना लिया था और वह उनकी बलि देने की तैयारी कर रहा था। तब हनुमान जी ने उन्हें अहिरावण का वध करके बचाया था। उस दौरान उन्होंने चक्र भी धारण किया था।
महंत बताते हैं कि इस मंदिर में ग्वालियर के राजा सिंधिया भी यहां भगवान की शरण में आते थे। शिवाजी ने इसी मंदिर से लंबे समय तक गोरिल्ला युद्ध किया था। जंगलों में रहने के दौरान शिवाजी ने यहां हनुमान जी की शरण ली थी।
बताते हैं कि हनुमान जी की प्रतिमा चमत्कारी है। यह 18-20 साल बाद स्वतः ही अपने ऊपर लगे चोले को छोड़ देती है। उसके बाद भगवान के प्राकृतिक स्वरूप के दर्शन होते हैं। चोला छोड़ने के बाद उनके शरीर पर एक बूंद भी सिंदूर शेष नहीं रहता। अभी वर्ष 2002 में चोला छोड़ा था जिसका वजन करीब 40 किलो था। इस चोले को हरिद्वार गंगा में प्रवाहित कराया गया था।
मंदिर के आस-पास संतों की समाधियां हैं। महंत ने बताया कि बाबा प्रयागदास महाराज ने यहां जीवित समाधि ली थी। उनके अलावा मोहन गिरि, शैव गिरि, टीकमदास बाबा समेत अन्य महात्माओं की समाधि बनी हुई है। आज भी इस मंदिर पर काफी संख्या में श्रद्धालु मंदिर में पूजा अर्चना करने के लिए आते हैं।