मालूम हो कि कोंझर की महिलाएं पारंपरिक रूप से टसर की खेती करती हैं। मगर उनके इस हुनर को एक मुकाम देने के लिए साल 2017 में राज्य सरकार ने पहल की। इसके तहत टसर को बड़े पैमाने पर प्रमोट किया गया। इसमें वहां की महिलाओं को रोजगार के लिए एक हेक्टेयर जमीन दी गई, जिस पर वो टसर की खेती कर सकें। महिलाओं की मेहनत रंग लाई और कोकून का उत्पादन बढ़ गया। ऐसे में पिछले साल राज्य सरकार ने बागमुंडा टसर सिल्क पार्क की स्थापना की। इसका लक्ष्य टसर की खेती करने वालों को आर्थिक सहायता प्रदान करना है।
महिलाओं को मिलती है ट्रेनिंग
सिल्क पार्क का हिस्सा बनकर ज्यादा से ज्यादा आदिवासी महिलाएं कमाई कर सकें इसके लिए उन्हें टसर सिल्क से चीजें बनाया सिखाया जाता है। इसके लिए उन्हें ट्रेनिंग दी जाती है। जिसमें महिलाएं रॉ सिल्क से साड़ी, कपड़ा और अन्य प्रोडक्ट्स आदि बनाने की कला सीखती हैं। शुरुआत में यह काम गांव की 10 से 15 महिलाओं ने सीखा था। अब इन्हें देखकर दूसरी महिलाएं भी प्रेरित हुई हैं। वो भी इस मिशन का हिस्सा हैं।
सिल्क पार्क का हिस्सा बनकर ज्यादा से ज्यादा आदिवासी महिलाएं कमाई कर सकें इसके लिए उन्हें टसर सिल्क से चीजें बनाया सिखाया जाता है। इसके लिए उन्हें ट्रेनिंग दी जाती है। जिसमें महिलाएं रॉ सिल्क से साड़ी, कपड़ा और अन्य प्रोडक्ट्स आदि बनाने की कला सीखती हैं। शुरुआत में यह काम गांव की 10 से 15 महिलाओं ने सीखा था। अब इन्हें देखकर दूसरी महिलाएं भी प्रेरित हुई हैं। वो भी इस मिशन का हिस्सा हैं।
रोजाना करीब 30 मीटर बनाती हैं फैब्रिक
बताया जाता है कि सिल्क पार्क से जुड़ी महिलाएं रोजाना करीब 20 से 30 मीटर टसर फैब्रिक बनाती हैं। इसके लिए लगभग 12 से 15 किलो सिल्क के धागे का इस्तेमाल होता है। साड़ी बुनने के अलावा ये महिलाएं जैकेट्स, कुर्ते, स्टोल्स, धोती, मास्क और हैंडमेड पंखे भी बनाती हैं। अगस्त 2020 से ये साड़ियां ऑनलाइन उपलब्ध हैं। इन्हें ‘बीटीएसपी साड़ी’ के नाम से खरीदा जा सकता है।
बताया जाता है कि सिल्क पार्क से जुड़ी महिलाएं रोजाना करीब 20 से 30 मीटर टसर फैब्रिक बनाती हैं। इसके लिए लगभग 12 से 15 किलो सिल्क के धागे का इस्तेमाल होता है। साड़ी बुनने के अलावा ये महिलाएं जैकेट्स, कुर्ते, स्टोल्स, धोती, मास्क और हैंडमेड पंखे भी बनाती हैं। अगस्त 2020 से ये साड़ियां ऑनलाइन उपलब्ध हैं। इन्हें ‘बीटीएसपी साड़ी’ के नाम से खरीदा जा सकता है।