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रामनवमी: देश की इकलौती धरोहर, जहां कायम है आज भी रामराज

इस दूसरी अयोध्या में राजा राम को दिया जाता है गार्ड ऑफ ऑनर…
– श्रावण शुक्ल पंचमी के पुष्य नक्षत्र में महारानी अवधपुरी से रवाना हुई और चैत्र शुक्ल नवमी कोओरछा पहुंचीं

Apr 01, 2020 / 04:48 pm

दीपेश तिवारी

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चैत्र नवरात्र 2020 के नवें दिन यानि 2 अप्रैल 2020 को इस बार भी रामनवमी का पर्व मनाया जाएगा। ऐसे में आज हम आपको श्रीराम के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो केवल भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में निराला है।
जी हां, हम बात कर रहे हैं बुंदेलखंड की अयोध्या के तौर पर प्रसिद्ध ओरछा में दुनिया का ऐसा इकलौता मंदिर है, जहां मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की पूजा राजा राम के रूप में होती है।

उत्तर भारत के टीकमगढ जिले में प्रसिद्ध धार्मिक स्थल ओरछा में भगवान श्रीराम का मंदिर विशेष मान्यता रखता है। यहां राम भगवान नहीं वरन ओरछा राज्य के राजा के रूप में पूजे जाते हैं और आज भी यहां उन्हीं का शासन चलता है। यहां तक की पुलिस तक उन्हें सलामी देने हर रोज आती है।

जहां एक ओर दुनिया के अधिकतर मंदिरों में सुबह और शाम भगवान की आरती की जाती है, वहीं भारत में एक मंदिर ऐसा भी है, जहां पर आरती नहीं बल्कि भगवान को पुलिस सलामी देती है। यहां प्रभु राम को भगवान की तरह नहीं बल्कि एक राजा की तरह माना जाता है।

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दरअसल झांसी के पास में मध्य प्रदेश का एक छोटा-सा गांव है ओरछा… बुंदेलखंड के इतिहास को अपने में समेटे यह गांव मध्य प्रदेश टूरिज्म का प्रमुख हिस्सा है। यहां पर भगवान श्री राम का मंदिर है, जो कि राम राजा मंदिर कहलाता है।
लॉकडाउन के बावजूद पुलिस देने आती है सलामी…
ललितपुर-झांसी राजमार्ग पर स्थित इस मंदिर के पट भले ही इन दिनों कोरोना वायरस (Corona virus) के कारण देशव्यापी लॉकडाउन के चलते श्रद्धालुओं के लिए बंद हैं, लेकिन राजा राम की आरती, पूजा अर्चना, भोग लगना और प्रतिदिन सुबह व शाम उन्हें पुलिस द्वारा उन्हें सलामी देना आज भी जारी है। इस दौरान मंदिर में मात्र पूजा करने वाला पुजारी और द्वार पर सलामी देने वाला पुलिस का सिपाही ही मौजूद रहता है।
ओरछा धाम को दूसरी अयोध्या के रूप में मान्यता प्राप्त है। यहां पर रामराजा अपने बाल रूप में विराजमान हैं। जनश्रुति के अनुसार श्रीराम दिन में यहां दरबार लगाते हैं और रात्रि में अयोध्या में विश्राम करते हैं। शयन आरती के पश्चात उनकी ज्योति भगवान हनुमानजी को सौंपी जाती है, जो रात्रि विश्राम के लिए उन्हें अयोध्या ले जाते हैं।
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मान्यता है कि आदि मनु सतरूपा ने हजारों वर्षों तक शेषशायी भगवान विष्णु को बालरूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या की। भगवान विष्णु ने उन्हें प्रसन्न होकर आशीष दिया और त्रेता में श्रीराम, द्वापर में श्रीकृष्ण और कलियुग में ओरछा के श्रीराम ने राजा के रूप में अवतार लिया। मान्यता है कि मधुकर शाह और उनकी पत्नी गणेशकुंवर साक्षात दशरथ और कौशल्या के अवतार थे। त्रेता में दशरथ अपने पुत्र का राज्याभिषेक न कर सके थे, उनकी यह इच्छा कलियुग में पूर्ण हुई।
श्रीराम के ओरछा आने की कथा…
कथा के अनुसार एक दिन ओरछा नरेश मधुकरशाह ने अपनी पत्नी गणेशकुंवर से श्रीकृष्ण की उपासना के इरादे से वृंदावन चलने को कहा, लेकिन रानी रामभक्त थीं। उन्होंने वृंदावन जाने से मना कर दिया। क्रोध में आकर राजा ने उनसे यह कहा कि अगर तुम इतनी रामभक्त हो तो जाकर अपने श्रीराम को ओरछा ले आओ।
इस पर रानी ने अयोध्या पहुंचकर सरयू नदी के किनारे लक्ष्मण किले के पास अपनी कुटी बनाकर साधना आरंभ की। इन्हीं दिनों संत शिरोमणि तुलसीदास भी अयोध्या में साधना रत थे।

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संत से आशीर्वाद पाकर रानी की आराधना दृढ़ होती चली गई, लेकिन रानी को कई महीनों तक रामराजा के दर्शन नहीं हुए। अंतत: वह निराश होकर अपने प्राण त्यागने के उद्देश्य से सरयू की मझधार में कूद पड़ी।

यहीं जल की अतल गहराइयों में उन्हें रामराजा के दर्शन हुए। रानी ने उन्हें अपना मंतव्य बताया। रामराजा ने ओरछा चलना स्वीकार किया लेकिन उन्होंने तीन शर्तें रखीं, एक- यह यात्रा पैदल होगी, दूसरी यात्रा केवल पुख्य नक्षत्र में होगी, तीसरी रामराजा की मूर्ति जिस जगह रखी जाएगी वहां से पुन: नहीं उठेगी। खुशी से प्रफुल्लि होकर रानी गणेशकुंवर ने राजा नरेश मधुकरशाह को संदेश भेजा कि वो रामराजा को लेकर ओरछा आ रहीं हैं।

राजा मधुकरशाह ने रामराजा के विग्रह को स्थापित करने के लिए करोड़ों की लागत से चतुर्भुज मंदिर का निर्माण कराया। जब रानी ओरछा पहुंचीं तो उन्होंने यह मूर्ति अपने महल में रख दी। यह निश्चित हुआ था कि शुभ मुहूर्त में मूर्ति को चतुर्भुज मंदिर में रखकर इसकी प्राण-प्रतिष्ठा की जाएगी लेकिन राम के इस विग्रह ने चतुर्भुज जाने से मना कर दिया।

मान्यता है कि राम यहां बाल रूप में आए और अपनी मां का महल छोड़कर वो मंदिर में कैसे जा सकते थे। भगवान श्रीराम आज भी इसी महल में विराजमान हैं और उनके लिए बना करोड़ों का चतुर्भुज मंदिर आज भी वीरान पड़ा है। यह मंदिर आज भी मूर्ति विहीन है। यह भी एक संयोग है कि जिस संवत् 1631 को रामराजा का ओरछा में आगमन हुआ, उसी दिन रामचरित मानस का लेखन भी पूर्ण हुआ।
जो मूर्ति ओरछा में विद्यमान है उसके बारे में बताया जाता है कि जब राम वनवास जा रहे थे तो उन्होंने अपनी एक बाल मूर्ति मां कौशल्या को दी थी। मां कौशल्या उसी को बाल भोग लगाया करती थीं। जब राम अयोध्या लौटे तो कौशल्या ने यह मूर्ति सरयू नदी में विसर्जित कर दी थी। यही मूर्ति गणेशकुंवर को सरयू की मझधार में मिली थी। यहां राम ओरछाधीश के रूप में मान्य हैं।
उत्तर भारत : ओरछा के राम महोत्सव का विशेष स्थान
ओरछा का रामराजा मंदिर में भगवान राम, जानकी की मूल प्रतिमाओं के चलते यहां प्रतिवर्ष औसतन पांच लाख से अधिक धर्म जिज्ञासु स्वदेशी पर्यटक आते हैं और लगभग बीस हजार से अधिक विदेशी पर्यटक ओरछा की पुरातात्विक महत्व के खूबसूरत महलों, विशाल किले, शीश महल, जहांगीर महल, रायप्रवीण महल, लक्ष्मी मंदिर, चतुर्भुज मंदिर, बेतवा नदी के तट पर स्थित छतरियों और नदी किनारे के जंगल मे घूमने वाले जानवरों की अटखेलियां सहित अनेक ऐतिहासिक इमारतों को निहारने के लिए प्रतिवर्ष आते हैं।

ओरछा के रामराजा मंदिर में जडे शिलालेख के अनुसार भगवान श्री रामराजा सरकार को ओरछा की महारानी गणेश कुंअर चैत शुक्ल नवमी सोमवार वि.स. संवत 1631 अर्थात सोमवार सन् 1574 में अयोध्या से ओरछा तक पुख्य-पुख्य नक्षत्र के आठ माह 28 दिनों तक पैदल चलकर लाई थी और सोलह श्रृंगार कर उन्हें अपने रानीमहल मे विराजमान करा दिया था।

ओरछा सहित उत्तर भारत मे प्रचलित जनश्रुति और अनेक धार्मिक पुस्तकों में लिखे अनुसार सतयुगी राजा दशरथ के पुत्र भगवान श्रीराम का विवाह पश्चात राजतिलक नहीं हो पाया था और उन्हें वनगमन करना पडा था। उनके वियोग मे उनके पिता राजा दशरथ की मृत्यु हो गई थी। उत्तर भारत के धार्मिक क्षेत्रों सहित साधुसंत समाज मे ऐसी मान्यता है कि ओरछा के तत्कालीन शासक महाराज मधुकर शाह को राजा दशरथ और उनकी पत्नी महारानी गणेश कुंअर को महारानी कौशल्या के रूप में मान्यता प्राप्त है।

ओरछा के राजा ने भगवान राम को भेंट किया था अपना राज्य
विवाह पंचमी के दिन रीति-रिवाज अनुसार सम्पूर्ण वैभब के साथ उनका विवाह करने पश्चात ओरछा के तत्कालीन शासक मधुकरशाह ने, उनकी पत्नी द्वारा दिए गये वचन का पालन करते हुए उनका राजतिलक कर दिया था। बुंदेलखंड में ओरछा के तत्कालीन शासक मधुकरशाह को भगवान श्रीराम के पिता और महारानी गणेश कुंअर को मां का दर्जा प्राप्त है।

शास्त्रोक्ति के अनुसार ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीराम के पिता महाराज दशरथ का वचन घर्म निभाने के दौरान निधन हो गया था और उनका वहां राजतिलक नहीं हो सका था। तब ओरछा के तत्कालीन शासक मधुकर शाह और महारानी गणेश कुंअर ने माता-पिता होने का धर्म निभाते हुए ओरछा में भगवान श्रीराम का राजतिलक कर पिता होने का दायित्व पूरा कर ओरछा नगरी को राजतिलक में भेट कर दी थी और तभी से उनके वंशज इस परम्परा को निभाते चले आ रहे हैं।

हर वर्ष : गार्ड ऑफ ऑनर
राजतिलक करने के पश्चात भगवान श्रीराम को ओरछा के तत्कालीन शासक मधुकर शाह अपना राज्य सौंप दिया था और तभी से भगवान श्रीराम ओरछा के राजा हैं और रामराजा कहलाते हैं। करीब 446 वर्ष प्राचीन परम्परा के अनुसार भगवान श्रीराम को प्रतिदिन सुबह और शाम सशस्त्र बल द्वारा उन्हें ‘‘गार्ड आफ ऑनर‘’ देने की परम्परा का पालन आज भी राज्य सरकार द्वारा किया जा रहा है। रामनवमी और विवाह पंचमी के तीन दिनों तक के लिए भगवान श्रीराम प्रभु और सीता सिंहासन को छोडकर दालान मे झूला पर बिराजमान होकर सामान्य लोगों के लिए आसानी से दर्शन देते हैं और इन्हीं तीन दिन सुबह पांच बजे मंगला आरती में हजारों लोग आते हैं।

देश के सभी मंदिरो से इतर रामराजा मंदिर से प्रतिदिन सुबह और शाम की आरती के बाद दर्शनार्थी को भगवान के प्रसाद के रूप मे पान का बीडा और इत्र की कली वितरित किए जाने की परम्परा आदिकाल से निभाई जा रही है।

पन्द्रहवीं शताव्दी मे निर्मित इस मंदिर की चौखट मे जडे शिलालेख मे लिखा है ‘मधुकरशाह महाराज की रानी कुंअर गनेश’ अवधपुरी से ओरछा लायीं कुंअर गनेश‘’ लेख के विवरण अनुसार वि.सं. 1630 श्रावण शुक्ल पंचमी के पुष्य नक्षत्र में महारानी अवधपुरी से रवाना हुई और चैत्र शुक्ल नवमी वि.स. संवत 1631 अर्थात सोमवार सन् 1574 में ओरछा पहुंचीं। उनकी टोली में महिलाओ के साथ साधु संतों के साथ होने का भी उल्लेख है।

ऐसे पहुंचे यहां…
आप यहां ट्रेन से आना चाहते हैं, तो झांसी रेलवे स्टेशन सबसे नजदीक है. आप यहां कैब, टैक्सी से ओरछा के राजा राम मंदिर में पहुंच सकते हैं. वहीं फ्लाइट से आने के लिए खजुराहो एयरपोर्ट सबसे नजदीक है.

घूमने के लिए बेस्ट टाइम
आप यहां साल के किसी भी महिने में आ सकते हैं।

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