scriptनाग पंचमी पर इन मंत्रों से करें नाग देवता की पूजा, पढ़ें नाग पंचमी की कथा और महत्व | Nag Panchami Mantra nag devta ki puja on sawan shukl panchami katha mahatv Worship of snake with these mantras read importance of Nag Panchami story nag chaturthi vrat | Patrika News
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नाग पंचमी पर इन मंत्रों से करें नाग देवता की पूजा, पढ़ें नाग पंचमी की कथा और महत्व

Nag Panchami Mantra : हिंदू धर्म में नागों को देवता का दर्जा प्राप्त है। हर साल सावन शुक्ल पंचमी पर नागों की पूजा कर नाग पंचमी त्योहार मनाया जाता है। मान्यता है कि नाग पंचमी पर नाग की पूजा से काल सर्प दोष से राहत मिलती है, सुख समृद्धि आती है। भाइयों की रक्षा होती है। आइये जानते हैं नाग पंचमी पूजा मंत्र, नाग पंचमी कथा और महत्व (sawan shukl panchami katha)…

भोपालJul 29, 2024 / 10:48 am

Pravin Pandey

Nag Panchami Mantra: नाग पंचमी पर इन मंत्रों से करें नाग देवता की पूजा, यहां पढ़ें नाग पंचमी की कथा और महत्व

Nag Panchami Mantra : हिंदू धर्म मानने वाले हर साल हरियाली तीज यानी सावन शुक्ल तृतीया के दो दिन बाद नाग पंचमी का त्योहार मनाते हैं। इसे भैया पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। इस त्योहार पर स्त्रियां नाग देवता की पूजा करती हैं और सर्पों को दूध अर्पित करती हैं। इस दिन स्त्रियां अपने भाइयों और परिवार की सुरक्षा के लिए प्रार्थना भी करती हैं। मान्यता है कि इससे सुख समृद्धि भी आती है। माना जाता है कि सर्पों को अर्पित किया जाने वाला दूध और उनका पूजन नाग देवताओं के समक्ष पहुंच जाता है। इसलिए लोग नाग देवताओं के प्रतिनिधि के रूप में जीवित सर्पों की पूजा करते हैं।

नाग चतुर्थी (Nag Chaturthi)

देश के कुछ हिस्सों में नाग पंचमी से एक दिन पहले भी उपवास रखते हैं और इसे नाग चतुर्थी या नागुला चविथी व्रत कहते हैं। आंध्र प्रदेश में नाग चतुर्थी या नागुला चविथी दीपावली के ठीक बाद मनाई जाती है। तमिलनाडु में इसी तरह छह दिवसीय उत्सव सूर सम्हारम भी आयोजित होता है। वहीं गुजरात में अमांत कैलेंडर के अनुसार श्री कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव से तीन दिन पूर्व नाग पंचमी मनाई जाती है।

नाग पंचमी का महत्व

सावन शुक्ल पंचमी यानी नाग पंचमी हरियाली तीज के दो दिन बाद मनाया जाता है। यह तिथि अक्सर अंग्रेजी कैलेंडर के जुलाई और अगस्त महीने में पड़ती है। इस त्योहार पर स्त्रियां नाग देवता की पूजा करती हैं और सांप को दूध चढ़ाती हैं। साथ ही भाइयों और परिवार की सुरक्षा के लिए प्रार्थना करती हैं। मान्यता है कि श्रावण शुक्ल पंचमी को नाग देवताओं की पूजा और सर्प को दूध अर्पित करना नाग देवताओं को प्राप्त होता है। इससे घर में सुख समृद्धि आती है।
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Nag Panchami Mantra: नाग पंचमी पर इन मंत्रों से करें नाग देवता की पूजा, यहां पढ़ें नाग पंचमी की कथा और महत्व

नाग पंचमी पर इन नाग की करते हैं पूजा

श्रावण शुक्ल पंचमी के दिन 12 नाग की पूजा करते हैं। ये नाग अनंत, वासुकी, शेष, पद्म, कंबल, कर्कोटक, अश्वतर, धृतराष्ट्र, शंखपाल, कालिया, तक्षक, पिंगल हैं।

नाग पंचमी पूजा मंत्र

सर्वे नागाः प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथ्वीतले।
ये च हेलिमरीचिस्था येऽन्तरे दिवि संस्थिताः॥
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिनः।
ये च वापीतडगेषु तेषु सर्वेषु वै नमः॥

मंत्र का अर्थः इस संसार में, आकाश, स्वर्ग, झील, कुएं, तालाब और सूर्य किरणों में निवास करने वाले सर्प, हमें आशीर्वाद दें और हम सभी आपको बारम्बार नमन करते हैं।
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्।
शङ्ख पालं धृतराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा॥
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।
सायङ्काले पठेन्नित्यं प्रातःकाले विशेषतः।
तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्॥

मंत्र का अर्थः नौ नाग देवताओं के नाम अनंत, वासुकी, शेष, पद्मनाभ, कम्बल, शंखपाल, धृतराष्ट्र, तक्षक और कालिया हैं। यदि प्रतिदिन प्रातःकाल नियमित रूप से इनका जप किया जाता है तो नाग देवता आपको समस्त पापों से सुरक्षित रखेंगे और आपको जीवन में विजयी बनाएंगे।
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नाग पंचमी पूजा मंत्र, नाग पंचमी मुहूर्त, कथा

नाग पंचमी की कथा (Nag Panchami Katha)

पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक सेठजी थे, इनके सात बेटे थे। इन सातों का विवाह हो चुका था। इनमें सबसे छोटे बेटे की पत्नी सबसे सुशील और गुणवान थी, लेकिन उसको कोई भाई नहीं था। इससे वह अक्सर दुखी हो जाया करती थी। इस बीच एक दि सबसे बड़ी बहू घर लीपने के लिए पीली मिट्टी लाने के लिए सभी बहुओं के साथ डलिया और खुरपी लेकर मिट्टी लेने गई।

मिट्टी को खोदने के लिए महिलाओं ने खुरपी चलाई तो पास के बिल से एक सांप निकल आया। डर के मारे बड़ी बहू ने सांप को मारने की कोशिश की तो सबसे छोटी बहू ने उसे रोक दिया और समझाया कि यह सर्प निरपराध है और इसे मारना पाप होगा। यह सुनकर बड़ी बहू ने सांप को छोड़ दिया और उसे जाने दिया। इसके बाद सांप एक ओर जाकर बैठ गया। छोटी बहू ने इस सांप को देखकर कहा कि मैं अभी लौटकर आऊंगी इसलिए तुम यहां से मत जाना। छोटी बहू बाकी बहुओं के साथ घर चली गई लेकिन घर जाने के बाद वह घर के कामों में उलझ गई और सांप से किया हुआ वादा भूल गई। अपना वादा छोटी बहू को अगले दिन याद आया।
छोटी बहू को याद आया कि उसने सांप से कुछ वादा किया था और उसे वहां रूकने के लिए कहा था। वह जंगल की तरफ भागकर गई तो छोटी बहू ने देखा कि सांप अभी भी उसी स्थान पर बैठा है जहां उसने उसे रूकने के लिए कहा था। उसने सर्प से कहा कि सर्प भईया प्रणाम। यह सुनकर सर्प बोल पड़ा, उसने कहा कि मैं तुझे झूठ कहने पर डस लेता लेकिन तूने मुझे भाई कहा है इसलिए छोड़ रहा हूं। इसपर छोटी बहू ने माफी मांगी, सर्प ने उसे क्षमा कर दिया और कहा कि आज से तू मेरी बहन और मैं तेरा भाई।
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नाग पंचमी की प्राचीन कथा
छोटी बहू ने सर्प को बताया कि उसका कोई भाई नहीं है और आज उसे एक भाई मिल गया, उसके जीवन में एक ही कमी थी जो पूरी हो गई। इसके बाद एक दिन सर्प लड़के का रूप धारण करके छोटी बहू के ससुराल पहुंचा और अपना परिचय छोटी बहू के भाई के रूप में दिया। सांप ने बताया कि मैं बचपन में ही घर से दूर चला गया था और अब अपनी बहन को कुछ दिन के लिए लेने आया हूं। यह सुनकर छोटी बहू को घरवालों ने उसके साथ जाने दिया, छोटी बहू को अब भी इस लड़के के बारे में कुछ नहीं पता था। रास्ते में सांप ने बताया कि मैं वही सांप हूं जो उसदिन मिला था, यह सुनकर छोटी बहू खुश हुई और सांप के साथ चली गई।
सांप के घर में छोटी बहू को ढेर सारा धन दिखा, छोटी बहू वहीं रहने लगी। एक दिन सर्प की माता ने छोटी बहू से कहा कि मैं बाहर जा रही हूं और तू अपने भाई को ठंडा दूध पिला देना। छोटी बहू को ठंडे दूध वाली बात याद नहीं रही और उसने सांप को गलती से गर्म दूध पिला दिया। इससे सांप का मुंह जल गया और उसकी माता अत्यधिक क्रोधित हो गई। लेकिन बीच में सांप आ गया और माफ करने के लिए कहने लगा। आखिरकार सांप के कहने पर मां का गुस्सा तो दूर हुआ लेकिन उसने छोटी बहू को उसके घर लौट जाने के लिए कह दिया। सर्प और उसके पिता ने छोटी बहू को ढेर सारा धन देकर साथ भेजा।
घर लौटी छोटी बहू के पास इतना धन देखकर बड़ी बहू ने कहा कि तेरा भाई इतना धनवान है तो और धन लाकर दे। यह बात सर्प को पता लगी तो वह धन ला-लाकर छोटी बहू के घर देने लगा, एक दिन सर्प ने अपनी बहन को हीरे और मणियों का हार लाकर दिया। इस हार की अद्भुत सुंदरता की बात राजा और रानी तक भी पहुंच गई।
इस पर राजा ने सेठ को हार के साथ बुलावाया। यहां सेठ ने राजा से डर कर छोटी बहू का हार रानी को दे दिया. इसपर छोटी बहू बहुत निराश हुई और अपने सर्प भाई को बोली कि रानी ने मेरा हार छीन लिया है, कुछ ऐसा करो कि रानी जब मेरा हार पहने तो हार सांप बन जाए और जब मैं वो हार पहनूं तो वो फिर से हीरे का हो जाए। सर्प ने बहन की प्रार्थना सुनकर ऐसा ही किया।
जब रानी ने उस हार को पहना तो हार सांप बन गया जिसे देखकर रानी डर के मारे चिल्लाने और चीखने लगी। राजा को यह देखकर छोटी बहू की चाल समझ आ गई और उसे बुलवाकर कहा कि अगर तूने जादू किया है तो वापस ले ले, नहीं तो तुझे दंड दिया जाएगा। छोटी बहू ने बताया कि यह वही हार है और उस हार को गले में डाल लिया। छोटी बहू के गले में जाते ही हार फिर से हीरे और मणियों का हो गया। छोटी बहू ने बताया कि मेरे अलावा कोई और इस हार को पहनता है तो हार खुद ही सांप बन जाता है।

यह जानकर राजा प्रसन्न हुआ और छोटी बहू को उन्होंने कई उपहार पुरस्कार में दिए। यह सब देखकर बड़ी बहू को ईर्ष्या होने लगी। बड़ी बहू ने छोटी बहू के पति के कान भरने शुरू किए और उसे भड़काया कि तेरी पत्नी ना जाने कहां से धन लाती है। छोटी बहू का पति उससे सवाल-जवाब करने लगा तो सर्प भाई वहां प्रकट हुआ और पूरी कहानी सुनाई। सर्प ने यह भी कहा कि अगर मेरी बहन को किसी ने तकलीफ दी तो मैं उसे डस लूंगा। यह सुनकर छोटी बहू भाई के प्रति और भी कृतज्ञ हो गई। इसके बाद से ही हर साल वह नाग पंचमी का त्योहार मनाने लगी और तभी से सभी स्त्रियां सर्प को भाई मानकर पूजा करने लगीं।

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