- जन्माष्टमी के एक दिन पूर्व केवल एक ही समय भोजन करते हैं। इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
- व्रत वाले दिन, स्नान आदि से निवृत्त हों।
- इसके बाद सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिग्पति, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और ब्रह्मादि को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर मुख बैठें।
- इसके बाद जल, फल, कुश और गंध लेकर संकल्प करें
ममखिलपापप्रशमनपूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्धये
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतमहं करिष्ये॥ - अब मध्याह्न के समय काले तिलों के जल से स्नान कर देवकीजी के लिए ‘सूतिकागृह’ नियत करें।
- इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
- मूर्ति में बालक श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती हुई देवकी हों और लक्ष्मीजी उनके चरण स्पर्श किए हों अथवा ऐसे भाव हो।
- इसके बाद विधि-विधान से पूजन करें।
पूजन में देवकी, वसुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी इन सबका नाम क्रमशः लेना चाहिए। - फिर निम्न मंत्र से पुष्पांजलि अर्पित करें
‘प्रणमे देव जननी त्वया जातस्तु वामनः।
वसुदेवात तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नमः।
सुपुत्रार्घ्यं प्रदत्तं में गृहाणेमं नमोऽस्तुते।’ - पूरे दिन उपवास रखकर, अगले दिन रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि के समाप्त होने के बाद व्रत कर पारण करें।
(कुछ कृष्ण-भक्त मात्र रोहिणी नक्षत्र अथवा मात्र अष्टमी तिथि के पश्चात व्रत का पारण कर लेते हैं। संकल्प प्रातःकाल के समय लिया जाता है और संकल्प के साथ ही अहोरात्र का व्रत प्रारम्भ हो जाता है।) - पारण से पहले जन्माष्टमी के दिन श्री कृष्ण पूजा विधि विधान से निशीथ समय (मध्य रात्रि) पर करना चाहिए और अंत में प्रसाद वितरण कर भजन-कीर्तन करते हुए रतजगा करना चाहिए।
कृष्ण जन्माष्टमी पर व्रत के नियम
Shri Krishna Janmashtami Vrat niyam: पुरोहितों के अनुसार एकादशी उपवास के दौरान पालन किए जाने वाले सभी नियम जन्माष्टमी उपवास के दौरान भी पालन करना चाहिए। जानें जन्माष्टमी व्रत के नियम- जन्माष्टमी व्रत के दौरान किसी भी प्रकार का अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए।
- जन्माष्टमी का व्रत अगले दिन सूर्योदय के बाद एक निश्चित समय पर तोड़ा जाता है, जिसे जन्माष्टमी के पारण समय से जाना जाता है।
- जन्माष्टमी का पारण सूर्योदय के पश्चात अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र समाप्त होने के बाद किया जाना चाहिए। यदि अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र सूर्यास्त तक समाप्त नहीं होते तो पारण किसी एक के समाप्त होने के बाद किया जा सकता है।
- यदि अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में से कोई भी सूर्यास्त तक समाप्त नहीं होता तब जन्माष्टमी का व्रत दिन के समय नहीं तोड़ा जा सकता। ऐसी स्थिति में व्रती को किसी एक के समाप्त होने के बाद ही व्रत तोड़ना चाहिए।
- कई बार अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के अंत समय के आधार पर कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत दो संपूर्ण दिनों तक प्रचलित हो सकता है। लेकिन जो श्रद्धालु लगातार दो दिनों तक व्रत करने में समर्थ नहीं है, वो जन्माष्टमी के अगले दिन ही सूर्योदय के बाद व्रत को तोड़ सकते हैं।
गृहस्थ और स्मार्त को कब मनाना चाहिए जन्माष्टमी
अधिकांशतया श्रीकृष्ण जन्माष्टमी दो अलग-अलग दिनों पर हो जाती है। ऐसे समय पहले दिन वाली जन्माष्टमी स्मार्त गृहस्थ संप्रदाय के लोगों के लिए और दूसरे दिन वाली जन्माष्टमी वैष्णव संप्रदाय के लोगों के लिए होती है। वैष्णव संप्रदाय के लोग व्रत के लिए अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र को प्राथमिकता देते हैं और वे कभी सप्तमी तिथि के दिन जन्माष्टमी नहीं मनाते हैं। वैष्णव नियमों के अनुसार हिंदी कैलेंडर में जन्माष्टमी का दिन अष्टमी अथवा नवमी तिथि पर ही पड़ता है।वहीं स्मार्त लोग निशिता काल (जो कि हिंदू अर्धरात्रि का समय है) को प्राथमिकता देते हैं। जिस दिन अष्टमी तिथि निशिता काल के समय व्याप्त होती है, उस दिन को प्राथमिकता दी जाती है। इन नियमों में रोहिणी नक्षत्र को सम्मिलित करने के लिए कुछ और नियम जोड़े जाते हैं। इस तरह जन्माष्टमी के दिन का अंतिम निर्धारण निशिता काल के समय, अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के शुभ संयोजन के आधार पर किया जाता है। स्मार्त नियमों के अनुसार हिंदू कैलेंडर में जन्माष्टमी का दिन हमेशा सप्तमी अथवा अष्टमी तिथि के दिन पड़ता है।