सैन महाराज
भक्तमाल के प्रसिद्ध टीकाकार प्रियदास के अनुसार सैन महाराज का जन्म विक्रम संवत 1557 में वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को बांधवगढ़ में एक नाई परिवार में हुआ था। बचपन में इनका नाम नंदा था, आगे चलकर ये सैन महाराज के नाम से मशहूर हुआ। सैन महाराज ने गृहस्थ जीवन के साथ-साथ भक्ति के मार्ग पर चलकर समाज के सामने एक नया उदाहरण प्रस्तुत कर दिखाया। सेन महाराज ने यह संदेश दिया की मनुष्य संसार के सारे कामों को करते हुए भी प्रभु की सेवा कर प्रभु की कृपा का अधिकारी बना जा सकता है।
मध्यकाल के संतों में सेन महाराज का नाम अग्रणी है, उन्होंने पवित्रता और सात्विकता पर ज़ोर दिया। लोगों को सत्य, अहिंसा और प्रेम का संदेश दिया। संत महाराज सभी मनुष्यों में ईश्वर के दर्शन करते थे। लोग उनके उपदेशों से इतने प्रभावित होते थे कि दूर-दूर से उनके पास खींचे चले आते थे। वृद्धावस्था में सेन महाराज काशी चले गए और वहीं उपदेश देने लगे। काशी नगरी में सेन महाराज जिस स्थान पर निवास करते थे, वर्तमान समय उस स्थान को सेनपुरा के नाम से जाना जाता है।
संत सेन महाराज की कथा
सैन महाराज को लेकर एक कथा प्रचलित है, मान्यता है की वे एक राजा के पास काम करते थ। उनका काम राजा की मालिश करना, बाल और नाखून काटना था। उन दिनों भक्त मंडलियों का जोर था। ये मंडलियां जगह-जगह जाकर पूरी रात भजन कीर्तन के आयोजन किया करती थी। एक दिन संत मंडली सैन जी के घर आई सैन जी ईश्वर भक्ति में इस तरह लीन हो गए कि सुबह राजा के पास जाना ही भूल गए। कहा जाता है कि स्वयं ईश्वर सैन जी का रूप धारण करके राजा के पास पहुंच गए।
भगवान ने राजा की सेवा इतनी श्रद्धा के साथ की कि राजा प्रसन्न हो गया और उसने अपने गले का हार उनके गले में डाल दिया। अपनी माया शक्ति से भगवान ने वो हार सैन जी के गले में डाल दिया और उन्हें पता तक नहीं चला। बाद में जब सैन जी को होश आया तो वो डरते-डरते महल में गए, उन्हें लग रहा था कि समय पर न पहुंचने की वजह से राजा उन्हें बहुत डांटेगा। सैन जी को देखकर राजा ने कहा, ‘अब आप फिर क्यों आए हैं? हम आपकी सेवा से बहुत खुश हुए. क्या कुछ और चाहिए?
राजा की बात सुनकर सैन महाराज बोले, ‘मुझे क्षमा कर दीजिए राजन, पूरी रात कीर्तन होता रहा इसलिए मैं समय से नहीं आ सका। इस बात को सुनकर राजा को बड़ी हैरानी हुई। राजा ने कहा, ‘अरे आप तो आए थे, आपकी सेवा से प्रसन्न होकर मैंने आपको हार दिया था और वो अभी आपके गले में भी है। सैन हार देखकर चौंक गए उन्हें एहसास हो गया कि स्वयं भगवान उनका रूप धारण करके आए और मेरी जगह राजा की सेवा की। संत सेन महाराज की बात सुनकर राजा उनके चरणों में नतमस्तक हो गया।
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