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महाशिवरात्रि 2023 पर ये हैं शिव पूजा के पांच मुहूर्त (Mahashivratri Puja Muhurt)
1. सुबह का मुहूर्त -सुबह 8 बजकर 22 मिनट से 9 बजकर 46 मिनट तक शुभ का चौघडिय़ा है।
2. दोपहर का मुहूर्त – दोपहर 2.00 बजे से 3 बजकर 24 मिनट तक लाभ का चौघडिय़ा रहेगा।
3. अमृत काल मुहूर्त – दोपहर 3 बजकर 24 मिनट से 4 बजकर 49 मिनट अमृत का चौघडिय़ा है।
– यहां आपको बता दें कि अमृत काल को शिव पूजा के लिए उत्तम फलदायी माना गया है।
4. शाम का मुहूर्त – शाम 6 बजकर 13 मिनट से 7 बजकर 48 मिनट तक महादेव की उपासना का मुहूर्त बन रहा है।
5. निशिता काल मुहूर्त – महाशिवरात्रि की पूजा मध्यरात्रि में करने का भी विधान है।
– 18 फरवरी की रात 10 बजकर 58 मिनट से 19 फरवरी 2023 को प्रात: 1 बजकर 36 मिनट तक महानिशीथ काल में शिव पूजा पुण्यकारी होगी।
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महाशिवरात्रि के दिन शिवालय में शिवजी को तीन पत्तों वाला बेलपत्र अर्पित करें। वहीं यदि आप घर में पूजा करते हैं तो इस दिन नदी या सरोवर की पवित्र मिट्टी से 108 शिव जी के प्रतीक का निर्माण करें और फिर दूध, गंगाजल, शहद और दही से उनका अभिषेक करें। ध्यान रहे शिव जी के प्रतीक की लम्बाई हमारे हाथ के अंगूठे के ऊपर वाले पोर से ज्यादा बड़ी नहीं होनी चाहिए। महामृत्युंजय मंत्र का एक माला जाप करें। महाशिवरात्रि पर सुबह, दोपहर, शाम और रात, इन चारों प्रहर में रुद्राष्टाध्यायी पाठ करें। माना जाता है कि ऐसा करने से महादेव जल्द प्रसन्न होते हैं।
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यह भी जानें (Lord Shiva Birth Mystry)
– भगवान शिव को स्वयंभू कहा जाता है, इसका अर्थ है कि वह अजन्मा है। वह ना आदि हैं और ना अंत है। भोलेनाथ की उत्पत्ति को लेकर रहस्य आज भी कायम है। शिव पुराण में भगवान शिव को स्वयंभू माना गया है, तो वहीं विष्णु पुराण में भोलेनाथ को विष्णु के माथे के तेज से उत्पन्न हुआ बताया गया है।
– माना जाता है कि जिस पर शिव की कृपा दृष्टि हो जाए, उसके जीवन में कभी संकट नहीं आता।
– भगवान शिव की प्रतीक रूप में पूजा की जाती है।
– वहीं भोलेनाथ को खुश करने का तरीका यही है कि जितनी श्रद्धा से आप उनकी सेवा करेंगे, वे उतना ही जल्दी प्रसन्न होंगे और अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखेंगे।
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क्या आप जानते हैं शिव-पार्वती की प्रेम कथा
शिव और शिवा का महामिलन शिवरात्रि को हुआ इसीलिए यह दिन महाशिवरात्रि बन गया। मान्यता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए 107 जन्म लिए। हजारों साल तक कठोर तपस्या की, तब जाकर 108वें जन्म में भोले बाबा ने पार्वती जी को अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया। देवी पार्वती ने हर जन्म में भोले भंडारी के प्रेम के अतिरिक्त कोई धन, वैभव नहीं मांगा। वहीं कहा जाता है कि शिव जी भी उनकी भक्ति से प्रसन्न थे इसीलिए उन्होंने भी पार्वती की प्रतीक्षा की।