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इसलिए रूठ जाती है माता लक्ष्मी
जगन्नाथ जी अपनी मौसी के घर में तरह-तरह के स्वादिष्ट पकवानों को खाकर बीमार हो जाते हैं, बीमार होने पर भगवान को पथ्य का भोग लगाया जाता है जिससे खाकर भगवान शीघ्र स्वस्थ भी हो जाते हैं। रथयात्रा के तीसरे दिन पंचमी तिथि को माता लक्ष्मी भगवान श्री जगन्नाथ को ढूंढ़ते हुये यहां आती है। लेकिन भगवान के द्वारपाल द्वैतापति दरवाज़ा बंद कर देते हैं और माता लक्ष्मी को श्री भगवान से मिलने नहीं देते। इस बात से नाराज़ होकर माता लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ के रथ का पहिया तोड़ देती है। नाराज होकर माता लक्ष्मी वहां से हेरा गोहिरी साही पुरी में स्थित अपने मंदिर में लौट जाती है।
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ऐसे मनाते हैं भगवान माता लक्ष्मी को
रूठी हुई माता लक्ष्मी को मनाने के लिए भगवान जगन्नाथ स्वयं उनके मंदिर में जाते हैं और अनेक प्रकार के उपहार देकर उन्हें प्रसन्न करने की कोशिश करते हुए माता लक्ष्मी जी से क्षमा भी मांगते हैं। रूठने और मनाने के इस पूरे क्रम में भगवान के प्रतिनिधि के रूप में द्वैताधिपति संवाद बोलते हैं, तो दूसरी ओर देवदासी महालक्ष्मी जी की भूमिका में संवाद करती है। इस पूरे घटनाक्रम में को सुनकर वहां मौजूद श्रद्धालु लोग अनंत आनंद में खुश होकर झूम उठते हैं, और चारों ओर भगवान श्री जगन्नाथ जी एवं महालक्ष्मी जी की जय कारों के नारों से गूँजने लगता है।
rath yatra puri : मनोकामना पूर्ति श्री जगन्नाथ स्तोत्र
भगवान जगन्नाथ जी के द्वारा महालक्ष्मी को इस तरह मनाएं जाने से माता महालक्ष्मी जी प्रसन्न होकर मान जाती है। भगवान जगन्नाथ के द्वारा मना लिए जाने को विजय का प्रतीक मानकर इस दिन को विजयादशमी और वापसी को बोहतड़ी गोंचा कहा जाता है।
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