इसलिए मनाई जाती है जन्माष्टमी
सत्य और धर्म की स्थापना, असुरों का नाश करने के लिए ईश्वर की चेतना का अंश मानव रूर में युगों-युगों से इस धरती पर अवतरित होते रहे हैं, और आगे भी होते रहेंगे। इसी क्रम में भगवान श्री विष्णु ने द्वापर युग में कंस के आतंक को समाप्त करने के लिए कृष्ण के रूप में माता देवकी के गर्भ से भादो माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की मध्यरात्रि (आधी रात) में उत्तरप्रदेश के मथुरा में जन्म लेकर कंस का नाश किया था। तभी से हर्षोल्लस पूर्वक हर साल जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता है।
जन्माष्टमी पर ऐसे करें व्रत उपवास
जन्माष्मी पर्व से एक दिन पहले ही व्रत करने वाले भक्त ब्रह्चर्य का पालन करें। अब जन्माष्टमी वाले दिन सुबह सूर्योदय से पूर्व किसी पवित्र नदी, तीर्थ या अपने घर पर ही गंगाजल मिले जल से स्नान करें। स्वच्छ पीले रंग वस्त्र धारण करें। कुशा के आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ मुंह करके बैठ जाये। सबसे हाथ जोड़कर सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्पति, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और ब्रह्मादि सभी देवताओ का स्मरण करते हुए अपने हाथ में जल, अक्षत, पुष्प, कुश और गंध लेकर व्रत उपावस करने का संकल्प लें।
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सुबह की पूजा
संकल्प लेने के बाद विधिवत भगवान कृष्ण के बाल रूप का पूजन और ध्यान करें। पूजन करने के बाद इस मन्त्र का जप सुबह एवं रात में 108 बार जप करें। इस दिन प्रयास करें व्रती पूरे दिन पवित्र विचारों से अपने मन को स्नान कराते रहे। इस मंत्र के जप से अनेक प्रकार की मनोकामना पूरी होने लगती है।
मंत्र
ममखिलपापप्रशमनपूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्धये।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतमहं करिष्ये॥
दोपहर की पूजा
अब दोपहर के समय काले तिलों को पानी में डालकर माता देवकी जी स्नान के लिए ‘सूतिकागृह’ नियत करें और फिर भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें, इसे अलग से या अपने मंदिर में स्थापित कर सकते हैं। यदि चित्र या मूर्ति में माँ देवकी बाल रूप श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती हुई हों और लक्ष्मी जी उनके चरण स्पर्श किए हों अथवा ऐसे भाव अपने मन में बनाए रखें। यही भाव पूर्ण पूजा सबसे उत्तम पूजा मानी जाती है। इसके बाद विधि-विधान से पूजन अर्चना करें। पूजन पूर्ण होने के बाद निम्न मंत्र से पुष्पांजलि अर्पण करें।
मंत्र
‘प्रणमे देव जननी त्वया जातस्तु वामनः।
वसुदेवात तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नमः।
सुपुत्रार्घ्यं प्रदत्तं में गृहाणेमं नमोऽस्तुते।।
रात की पूजा
रात को मध्य रात्रि में ठीक 12 बजे किसी कृष्ण मंदिर में या अन्यत्र जहां उत्सव मनाया जा रहा हो, या फिर अपने घर पर ही जन्म समय से पूर्व कृष्ण भजन कीर्तन करने के बाद नियत समय पर पंचामृत से बाल गोपाल को स्नान कराकर विधिवत पूजन करें। कृष्ण जन्म की आरती करने के बाद उन्हें माखन मिश्री एवं पंजीरी का भोग लगावें। अब व्रत उपवास करने वाले व्रती कान्हा जी को भोग लगाने के बाद स्वयं भी भोग प्रसाद ग्रहण करके उपवास खोले। जन्माष्टमी के दिन उपरोक्त विधि से पूजन करने पर कृष्ण जी सभी मनोकामना पूरी कर देते हैं।
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