माना जाता है कि इस एकादशी का व्रत समस्त पापों का क्षय करके व्यक्ति के आकर्षण प्रभाव में वृद्धि करता है। मोहिनी एकादशी का व्रत स्मार्त मतानुसार 3 मई 2020, सोमवार को और वैष्णव मतानुसार 4 मई को किया जाएगा। वहीं 5 मई को प्रदोष व्रत रखा जाएगा।
मोहिनी एकादशी : ऐसे समझें
मान्यताओं के अनुसार हमारे द्वारा किए गए पाप कर्म के कारण ही हम अपने जीवन में मोह बंधन में बंध जाते हैं। मोहिनी एकादशी का व्रत करने से मनुष्य अपने सभी मोह बंधनों से मुक्त हो जाता है और उसके समस्त पापों का नाश होता है। जिसके कारण वह मृत्यु के बाद नर्क की यातनाओं से मुक्ति पाकर ईश्वर की शरण में चला जाता है।
MUST READ: विवाह से लेकर आर्थिक समस्या तक ऐसे दूर करते हैं भगवान विष्णु, बस अपनाए ये आसान उपाय
मोहिनी एकादशी के विषय में पुराण कथाओं में कहा गया है कि समुद्र मंथन के बाद अमृत कलश पाने के लिए दानवों और देवताओं के बीच जब विवाद हो गया तो भगवान विष्णु ने सुंदर स्त्री का रूप धारण कर दानवों को मोहित कर लिया था और उनसे अमृत कलश लेकर देवताओं को सारा अमृत पिला दिया था।
अमृत पीकर देवता अमर हो गए। यह वैशाख शुक्ल एकादशी का दिन था इसलिए इस दिन भगवान विष्णु के मोहिनी रूप की पूजा की जाती है। इस दिन भगवान का विशेष श्रृंगार किया जाता है।
मोहनी एकादशी की कथा…
कहा जाता है कि एक बार श्रीकृष्ण ने युधिष्ठर को वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी के बारे में बताते हुए कहा कि एक समय श्रीराम ने महर्षि वशिष्ठ से एक ऐसे व्रत के बारे में पुछा था, जिससे समस्त पाप और दुख का नाश हो जाए।
MUST READ : ये कार्य बदल कर रख देंगे आपका भाग्य! शनिवार को ये करें
इस पर महर्षि वशिष्ठ ने उन्हें वैशाख मास की एकादशी के बारे में बताते हुए कहा कि उसका नाम मोहिनी एकादशी है। इसका व्रत करने से मनुष्य सब पापों तथा दुखों से छूटकर मोहजाल से मुक्त हो जाता है। इस संबंध में कथा सुनाते हुए उन्होंने कहा कि…
सरस्वती नदी के तट पर भद्रावती नाम की एक नगरी में द्युतिमान नामक चंद्रवंशी राजा राज करता था। वहां धन-धान्य से संपन्न व पुण्यवान धनपाल नामक वैश्य भी रहता है। वह अत्यंत धर्मालु और विष्णु भक्त था। उसने नगर में अनेक भोजनालय, प्याऊ, कुएं, सरोवर, धर्मशाला आदि बनवाए थे।
सड़कों पर आम, जामुन, नीम आदि के अनेक वृक्ष भी लगवाए थे। उसके 5 पुत्र थे- सुमना, सद्बुद्धि, मेधावी, सुकृति और धृष्टबुद्धि।
इनमें से पांचवां पुत्र धृष्टबुद्धि महापापी था। वह पितर आदि को नहीं मानता था। वह वेश्या, दुराचारी मनुष्यों की संगति में रहकर जुआ खेलता और पर-स्त्री के साथ भोग-विलास करता तथा मद्य-मांस का सेवन करता था। इसी प्रकार अनेक कुकर्मों में वह पिता के धन को नष्ट करता रहता था।
MUST READ : गंगोत्री धाम / इस मंदिर के दर्शनों के बिना अधूरी है आपकी यात्रा
इन्हीं कारणों से त्रस्त होकर पिता ने उसे घर से निकाल दिया था। घर से बाहर निकलने के बाद वह अपने गहने-कपड़े बेचकर अपना निर्वाह करने लगा। जब सबकुछ नष्ट हो गया तो वेश्या और दुराचारी साथियों ने उसका साथ छोड़ दिया। अब वह भूख-प्यास से अति दुखी रहने लगा। कोई सहारा न देख चोरी करना सीख गया।
एक बार वह पकड़ा गया तो वैश्य का पुत्र जानकर चेतावनी देकर छोड़ दिया गया। मगर दूसरी बार फिर पकड़ में आ गया। राजाज्ञा से इस बार उसे कारागार में डाल दिया गया। कारागार में उसे अत्यंत दु:ख दिए गए। बाद में राजा ने उसे नगरी से निकल जाने का कहा।
वह नगरी से निकल वन में चला गया। वहां वन्य पशु-पक्षियों को मारकर खाने लगा। कुछ समय पश्चात वह बहेलिया बन गया और धनुष-बाण लेकर पशु-पक्षियों को मार-मारकर खाने लगा।
एक दिन भूख-प्यास से व्यथित होकर वह खाने की तलाश में घूमता हुआ कौडिन्य ऋषि के आश्रम में पहुंच गया। उस समय वैशाख मास था और ऋषि गंगा स्नान कर आ रहे थे। उनके भीगे वस्त्रों के छींटे उस पर पड़ने से उसे कुछ सद्बुद्धि प्राप्त हुई।
वह कौडिन्य मुनि से हाथ जोड़कर कहने लगा कि हे मुने! मैंने जीवन में बहुत पाप किए हैं। आप इन पापों से छूटने का कोई साधारण बिना धन का उपाय बताइए। उसके दीन वचन सुनकर मुनि ने प्रसन्न होकर कहा कि तुम वैशाख शुक्ल की मोहिनी नामक एकादशी का व्रत करो। इससे समस्त पाप नष्ट हो जाएंगे।