पंडित सुनील शर्मा के अनुसार मई 2020 में बगुलामुखी जयंती है। वहीं इस महीने में सीता जयंती भी मनाई जाएगी, जिसे जानकी जयंती के रूप जानते हैं। इनके अलावा श्री नृसिंह जयंती और वैशाख बुध पूर्णिमा भी मई में है।
इन सब के अलावा अपरा भद्रकाली एकादशी भी इसी माह होगी। वहीं स्त्रियों का प्रमुख त्योहार वट सावित्री व्रत भी इसी माह में है। इसके साथ ही पितरों के नाम का तर्पण किए जाने वाली जेष्ठ अमावस्या भी इस माह में है। जबकि शनि जयंती यानि भगवान् शनि देव का जन्म दिवस, रम्भा तृतीया व्रत और अरण्य पष्ठी भी मई माह में ही हैं।
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इसके अतिरिक्त विंधियाचल की मां विंध्यवासिनी की पूजा भी इसी माह में है। मेला क्षीर भवानी जो कश्मीर में मनाया जाता है और श्री दुर्गा अष्टमी, जिससे धूमावती जयंती भी कहते है मई 2020 के पावन महीने में ही है।1. बगुलामुखी जयंती : (श्री बगुलामुखी जयंती दिवस – 1 मई 2020 शुक्रवार )
दस महाविद्या में बगुलामुखी का 8वां स्वरुप माता के इस रूप का है। पीले रंग की आभा होने के कारण इन्हें पीताम्बरा भी कहा जाता है। यह हर साल शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाई जाती है। माता का प्राकट्य स्थान गुजरात कहा गया है।
माता अपने भक्तों की रक्षा करतीं हैं और सदा बुरी नज़र और बुरी शक्ति से बचाए रहती हैं। इन्हे पीला रंग बहुत ही पसंद है इसलिए इनकी पूजा में पीले रंग की सामग्री का अधिक प्रयोग होता है।
2. जानकी जयंती – 1 मई 2020 शुक्रवार
भगवती सीता का प्राकट्य वैशाख शुक्ल नवमी, पुष्य नक्षत्र कालीन,मंगलवार की मध्यहन – काल में हुआ था। उस समय राजा जनक संतान प्राप्ति की कामना से यज्ञ – भूमि तैयार करने के लिए हल से भूमि जोत रहे थे।
पंडित शर्मा के अनुसार इस दिन व्रत रखकर श्री जानकी – राम का संकल्प पूर्वक जन्मोत्सव तथा पूजन करना चाहिए। माता सीता का विवाह भगवान श्री राम के साथ हुआ था।
आधे नर और आधे शेर के रूप मे प्रकट हुए भगवान श्री विष्णु हरी का यह रूप नृसिंह अवतार है। हिरयणकश्यप के अहंकार को तोड़ने और भक्त प्रहलाद का मान और विशवास रखने के लिए भगवान् ने यह रूप लिया था। इसलिए यह नरसिंह जयंती के नाम से जानी जाती है।
4. वैशाख बुद्ध पूर्णिमा – 7 मई 2020 गुरुवार
भगवान् बुद्ध का जन्म आज के दिन हुआ था। और उन्हें ज्ञान की प्राप्ति भी आज के दिन बोध गया नमक स्थान पर मिली थी , और महापरिनिर्वाण का भी आज ही के दिन आरम्भ हुआ था। कहने का अर्थ है की आज का दिन बौद्ध धर्म में बहुत ही महत्त्व रखता है। आज के दिन लोग दान को भी विशेष मान देते है।
ज्येष्ठा महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी को ही अपरा एकादशी कहते है। इस एकादशी को अचला एकादशी, भद्रकाली एकादशी और जल क्रीड़ा एकादशी भी बोलते है।
वट सावित्री का व्रत सुहागिन महिलाएं अपने पति की लम्बी उम्र के लिए रखतीं है। बरगद के वृक्ष की पूजा करतीं है। बरगद के वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु, और शिव जी का वास होता है। इस व्रत को सावित्री ने अपने पति सत्यवान के लिए किया था। और अपने पति को दोबारा जीवित कर लिया था।
कृष्ण पक्ष के अंतिन दिन को अमावस्या कहते है। अमावस्या में सभी परिजनों को कर्तव्य बनता है की उनके जो भी परिवार के पितृ ईश्वर को प्राप्त हो गए है उनके नाम से तर्पण करें। आज के दिन उनके नाम से ब्राह्मण को भोजन करवाया जाता है। उनको दान दक्षिणा दी जाती और अपने पितरों की मोक्ष की कामना करते है।
शनि जयंती जिस दिन शनि देव का जन्म हुआ था। यह दिन उनके जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। भगवान् शनि न्याय प्रिय देवता है। इन्हे काली चीज़े बहुत प्रिय होती है। इसलिए इनकी पूजा में काले वस्त्र, काले तिल, काला कपडा, सरसो के तेल का दिया, नीले रंग के फूल की सामग्री का उपयोग होता है।
ज्येष्ठा मास की शुक्ल तृतीया को रम्भा तृतीया कहते है। इस दिन की पूजा विशेष रूप से अप्सरा रम्भा की पूजा होती है। समुंद्र मंथन के समय 14 रत्नों में से एक रम्भा भी थी। सुहागिन स्त्री ये व्रत और पूजा कर सकतीं है। ताकि उनका सुहाग सदा बना रहे और आगे जीवन में उन्हें एक अच्छी संतान का सुख प्राप्त हो। कुवारी कन्या भी इस व्रत को अपने जीवन में अच्छे पति की कामना के लिए करतीं हैं।
शुल्क पक्ष ने वाली षष्ठी और कृष्ण पक्ष में आने वाली षष्ठी को ही षष्ठी की तिथि कहा जाता है। इस दिन के स्वामी भगवान् शिव और माता पार्वती होते है। इनके पुत्र (स्कन्द कुमार) कार्तिकेय हैं।
11. विंध्यवासिनी पूजा – 28 मई 2020 गुरुवार
विंध्यांचल पर्वत पर सद्दा अपना वास करने वाली माँ विंधियवासनी माता की पूजा होती है। यह एक शक्तिपीठ है। कमल के आसान पर विजराज, तीन नैत्रों वाली, चार भुजाओं वाल,शंख, चक्र, वर और अभय मुद्रा धारण किए हुए हैं. मस्तक पर 16 कलाओं से परिपूर्ण चंद्र विराजमान है। इस देवी की सभी देवता और मनुष्य पूजा करते हैं। विंधियाचल पर निवास करने वाली चन्द्रमा के सामान मुख वाली इस देवी के पास सदा शिव जी भी विराजमान रहते है।
जेष्ठा अष्टमी के पावन अवसर पर जम्मू के भवानी नगर में स्थित मां राघेन्या की पूजा की जाती है। यह पूजा जमणु के कश्मीरी पंडितों की महा पूजा होती है। इस पूजा में घर और अपने राज्य की सुख शांति के लिए यह के लोग इससे करते है। और सदा माता उनके ऊपर अपने आशीर्वाद को बनाए रखे ऐसी प्रार्थना करते है।
10 महाविधियां जिसमे से 7वी विद्या की देवी माँ धूमावती है। जेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को यह जयंती मनाई जाती है। माँ लक्ष्मी का यह रूप है जो अपने भक्तों के दुःख, दरिद्रता को दूर करती है।