दरअसल दीपावली त्यौहार की रौनक धनतेरस से पूरे चरम पर आ जाती है। वहीं दिवाली की रात्रि को घरों व दुकानों पर काफी संख्या में दीपक, मोमबत्तियां और बल्ब जलाए जाते हैं।
दीपावली यह पर्व हिंदुओं के प्रमूख त्यौहारों में से एक है। वहीं दिवाली पर देवी लक्ष्मी के पूजन का विशेष विधान है। ऐसे में दीपावली के तीसरे दिन यानि दिवाली पर रात के समय सभी घरों में धन-धान्य की अधिष्ठात्री देवी महालक्ष्मी के साथ ही विघ्न-विनाशक गणेशजी के अलावा विद्या और कला की देवी मातेश्वरी सरस्वती की पूजा व आराधना की जाती है।
ब्रह्मपुराण के अनुसार कार्तिक अमावस्या की इस अंघेरी रात यानि अर्धरात्रि में महालक्ष्मी स्वयं भूलोक का विचरण करती हैं और प्रत्येक सद्गृहस्थ के घर में विचरण करती है।
वहीं यह भी माना जाता है कि जो घर हर प्रकार से स्वच्छ, शुद्ध और सुंदर तरीके से सुसज्जित और प्रकाशयुक्त होता है, वहां वे अंश रूप में ठहर जाती हैं और गंदे स्थानों की ओर देखती तक नहीं हैं। इसी कारण इस दिन घर बाहर को अच्छे से साफ सुथरा करने के बाद सजाया-संवारा जाता है।
माना जाता है कि दीवाली के दिन लक्ष्मी जी से वे आसानी से प्रसन्न होकर स्थायी रूप से सद्ग्रहस्थों के घर निवास करती हैं। वास्तव में धनतेरस, नरक चतुर्दशी और महालक्ष्मी पूजन के अलावा गोबर्धन व दूज पर्वों का मिश्रण ही दीपावली है।
जानकारों के अनुसार प्रत्येक आराधना,उपासना व अर्चना में अधिभौतिक, आध्यात्मिक और आधिदैविक इन तीनों रूपा का समंवित व्यवहार होता है। इस मान्यतानुसार इस उत्सव में भी सोने, चांदी, सिक्के आदि के रूप में आधिभौतिक लक्ष्मी का आधिदैविक लक्ष्मी से संबंध स्वीकार करके पूजन किया जाता है।
घरों को दीपमाला आदि से सजाना आदि कार्य लक्ष्मी के आध्यात्मिक स्वरूप की शोभा को आविर्भूत करने के लिए किए जाते है। इस तरह इस उत्सव में बजाए गए तीनों प्रकार से लक्ष्मी की उपासना हो जाती है।
धार्मिक ग्रथों के अनुसार कार्तिक अमावस्या के दिन भगवान श्री रामचंद्रजी चौदह साल का वनवास काटकर और आसुरी वृत्तियों के प्रतीक रावणादि का संहार करके अयोध्या लौटे थे। तब अयोध्यावासियों ने राम के राज्यारोहण पर दीपमालाएं जलाकर महोत्सव मनाया था।
इसी कारण दीपावली हिंदुओं के प्रमुख त्यौहारों में से एक है। यह पर्व अलग अलग नाम और विधानो से पूरी दुनिया में मनाया जाता है। इसका एक कारण ये भी है कि इस दिन अनेक विजयश्री युक्त कार्य हुए हैं।
वहीं बहुत से शुभ कार्यों की शुरुआत भी इसी तिथि से मानी जाती है। जैसे इसी तिथि पर उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य का राजतिलक हुुआ था। वहीं आज ही के दिन व्यापारी अपने बही खाते बदलते हैं और लाभ-हानि का ब्यौरा तैयार करते हैं।
दीपावली पर लक्ष्मी जी का पूजन घरों में ही नहीं, दुकानों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों में भी किया जाता है। कर्मचारियों को पूजन के बाद मिठाई, बर्तन और रुपए आदि भी दिए जाते हैं।
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दीपावली पर कहीं कहीं जुआ भी खेला जाता है। इसका प्रधान लक्ष्य वर्षभर के भाग्य की परीक्षा करना बताया जाता है। इस प्रथा के साथ भगवान शंकर और पार्वती के बीच हुए इस खेल के प्रसंग को भी जोड़ा जाता है, जिसमें भगवान शंकर पराजित हो गए थे।
जहां तक धार्मिक दृष्टि का सवाल है तो आज पूरे दिन व्रत रखना चाहिए और मध्यरात्रि में लक्ष्मी पूजन के बाद ही भोजन करना चाहिए। इस दिन तीन देवों – महालक्ष्मी, गणेशजी और सरस्वती जी के संयुक्त पूजन के बावजूद इस पूजा में त्यौहार का उल्लास ही अधिक रहता है। इस दिन प्रदोष काल में पूजन करके जो स्त्री पुरुष भोजन करते हैं, माना जाता है कि उनके नेत्र वर्ष भर निर्मल रहते हैं। इसी रात तंत्र-मंत्र के वेत्ता मंत्रों को जगाकर सुदृढ़ करते हैं।
कार्तिक मास की अमावस्या के दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर की तरंग पर सुख से सोते हैं और लक्ष्मीजी भी दैत्य भय से विमुख होकर कमल के उदर में सुख से सोती हैं। ऐसे में माना जाता है कि व्यक्ति को सुख प्राप्ति का उत्सव विधिपूर्वक मनाना चाहिए।
लोक मान्यता के अनुसार इस दिन आंख में काजल न लगाने वाला व्यक्ति अगले जन्म में छछूंदर रूप में विचरण करता है।
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दिवाली की पूजन विधि-
लक्ष्मी के पूजन के लिए घर में साफ-सफाई करके दीवार को गेरू से पोतकर उस पर लक्ष्मी जी का चित्र बनाया जाता है। इसक अलावा लक्ष्मी का चित्र भी लगाया जा सकता है। वहीं शाम के समय भोजन में स्वादिष्ट व्यंजन, केला, पापड़ और अनेक प्रकार की मिठाइयां होनी चाहिए।
लक्ष्मी जी के चित्र के सामने एक चौकी रखकर उस पर मौली बांधनी चाहिए। इस पर गणेशजी की व लक्ष्मी जी की मिट्टी या चांदी की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए और उन्हें तिलक करना चाहिए। चौकी पर छ: चौमुखे व 26 छोटे दीपकर रखने चाहिए और तेल-बत्ती डालकर जलाना चाहिए। फिर जल, मौली,चावल,फल, गुड, अबीर,गुलाल, धूप आदि से विधिवत पूजन करना चाहिए। पूजा पहले पुरुष करें, बाद में स्त्रियां।
पूजन के पश्चात एक-एक दीपक घर के कोनों में जलाकर रखें। एक छोटा व एक चौमुखा दीपक रखकर लक्ष्मी जी का पूजन करें। इस पूजन के बाद तिजोरी में गणेशजी व लक्ष्मी जी की मूर्ति रखकर विधिवत पूजा करें। अपने व्यापार के स्थान पर बहीखातों की पूजा करें। इसके बाद जितनी श्रद्धा हो घर की बहू-बेटियों को रुपए दें। लक्ष्मी पूजन रात के समय बारह बजे करना चाहिए।
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इस दिन धन के देवता कुबेर जी, विघ्नविनाशक गणेश जी, राज्य सुख के दाता इंद्रदेव , समस्त मनोरथें को पूरा करने वाले भगवान विष्णु और विद्या की देवी मां सरस्वती जी की भी माता लक्ष्मी के साथ पूजा करें।
जहां दीवार पर गणेश, लक्ष्मी बनाएं हो वहां उनके आगे एक पट्टे पर चौमुखा दीपक और छ: छोटे दीपक में घी बत्ती डालकर रख दें और रात्रि के बारह बजे लक्ष्मी पूजन करें। इसके लिए एक पाट पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर एक जोड़ी लक्ष्मी और गणेश जी की मूर्ति रखें।
पास ही 101 रुपए, सवा सेर चावल, गुड़चार केले, हरी ग्वार की फली और पांच लड्डू रखकर, लक्ष्मी-गणेश का पूजन करके लड्डुओं से भोग लगाएं। फिर गणेश, लक्ष्मी, दीप,रुपए आदि सबकी पूजा करें। दीपकों का काजल सब स्त्री-पुरुषों को आंख में लगाना चाहिए और रात्रि जागरण करके गोपाल सहस्रनाम का पाठ करना चाहिए। यदि इस दिन घर में बिल्ली आए तो उसे भगाना नहीं चाहिए। पूजन की समाप्ति के बाद अपने से बडत्रों की चरण वंदना करनी चाहिए। दुकान की गद्दी की भी विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए।
रात को 12 बजे दिवाली पूजन के बाद चूने या गेरू में रूई भिगोकर चक्की, चूल्हा,सिल-बट्टा और सूप का तिलक करना चाहिए। रात्रि की ब्रह्मबेला यानि प्रात:काल चार बजे उठकर स्त्रियां पुराने सूप मे कूड़ा रखकर उसे दूर फेंकने के लिए जाती हैं और सूप पीटकर दरिद्रता भगाती हैं। सूप पीटने का तात्पर्य है- ‘ आज से लक्ष्मी जी का वास हो गया। दुख दरिद्रता का सर्वनाश हो।’
फिर घर आकर स्त्रियां कहती हैं- इस घर से दरिद्र चला गया है। हे लक्ष्मीजी! आप निर्भय होकर यहां निवास करिए।