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इटावा

कभी उसके नाम से बीहड़ कांपता था, अब घर-घर जोड़ रही हाथ

– नीलम आज इटावा नगर पालिका से अध्यक्ष पद का पर्चा भरेंगी – खूंखार दस्यु सरगना निर्भर गूज्जर की विधवा है नीलम गुप्ता
 

इटावाNov 03, 2017 / 04:47 pm

आलोक पाण्डेय

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आलोक पाण्डेय
इटावा . तेरह बरस पहले उसका नाम सुनकर बीहड़ कांपता था। इटावा-जालौन से भिंड-मुरैना के गांव में उसकी बादशाहत कायम थी। डकैतों के झुंड में उसे बीहड़ की महारानी की उपाधि मिली थी। एक आवाज पर सैकड़ों गांव के लोग हुक्म पर अमल करने के लिए तैयार रहते थे। अब वक्त बदल चुका है। बीहड़ की रानी राजनीति की महारानी बनने का ख्वाब देखने लगी है। निकाय चुनाव से राजनीति का अध्याय शुरू करना है। इसी नाते इटावा में नगर पालिका चुनाव में अध्यक्ष पद के लिए पर्चा दाखिल कर दिया है। बीहड़ की बादशाहत खत्म होने के कारण अब दस्यु सुंदरी को घर-घर जाकर वोटरों के आगे झोली फैलाकर मनुहार करना पड़ रहा है। बीहड़ की कुख्यात महारानी के लोकतंत्र में दखल की अनूठी कहानी का नाम है….
खूंखार रंगीनमिजाज डकैत निर्भर गूर्जर की तीसरी बीवी

नीलम की कहानी में जबरदस्त रोमांच है। बात वर्ष 2001 की है, जब यूपी के औरैया जिले के सरैंया गांव की खूबसूरत कमसिन 13 वर्ष की लडक़ी को स्कूल जाते वक्त कार सवार लोगों ने मंदिर का रास्ता पूछने के बहाने अगवा कर लिया था। होश आने पर लडक़ी ने खुद को जंगल में पाया। चारो ओर खूंखार डकैत रायफल लेकर खड़े थे। सामने एक चट्टान पर बड़ी-बड़ी दाढी-मूंछ वाला डकैतों का सरदार बैठा था, जिसका नाम निर्भर सिंह गूर्जर बताकर सलाम ठोंकने का हुक्म सुनाया गया। कुछ देर बाद निर्भर को छोडक़र शेष डकैत लौट गए। इसके बाद निर्भर मनमानी करता रहा और बीहड़ के सन्नाटे में नीलम की चीख गूंजती रही। अगली सुबह मालूम हुआ कि नीलम तो निर्भर की तीसरी बीवी है। पहली और दूसरी किसी और के साथ भाग चुकी थीं। किसी वक्त खूंखार डकैत सीमा परिहार भी निर्भर की बीवी थी। दूसरे डकैत भी नीलम के जिस्म को निहारने लगे तो निर्भर ने एक माला पहनाकर नीलम को अपनी बीवी घोषित कर दिया।
निर्भर गूर्जर की बीवी बनते ही नीलम बन गई बीहड़ की महारानी

नीलम बताती हैं कि निर्भर की बीवी बनते ही बीहड़ में बादशाहत कायम हो गई। अब तो डकैत भी हुक्म मानने लगे थे। कोसों दूर गांव में फरमान को सुनकर लोगों के रोंगटे खड़े होना सामान्य बात थी। इसी दरम्यान तीन साल गुजर गए। निर्भर ने अपने गैंग के जरिए अगवा किए एक बच्चे श्याम को पुत्र मान लिया था और उसकी शादी रचाने के बाद बहू सरला के साथ भी रात गुजारने लगा था। निर्भर की यह चरित्र देखकर नीलम को उससे चिढ़ होने लगी थी। एक दिन भागने का प्रयास किया, लेकिन पकड़ी गई। उस रात उसके साथ क्या-क्या हुआ, यह तो नीलम याद भी नहीं करना चाहती है। जुल्म की इंतहा देखकर नीलम और निर्भर का दत्तक पुत्र श्याम जाटव में करीबी बढऩे लगी थी।
मौका लगते ही श्याम के साथ भाग निकली नीलम ने किया समर्पण

अब नीलम और श्याम एक-दूसरे से अपने दर्द को बयान करते थे। श्याम को डकैतों के साथ रहते-रहते बीहड़ के सभी रास्ते मालूम थे। ऐसे में दोनों ने एक दिन निर्णय लिया और जुलाई 2004 में भाग निकले। निर्भर को यह बगावत ज्यादा खल गई, क्योंकि दत्तक पुत्र और तीसरी बीवी के रिश्ते ने उसे परेशान कर दिया था। उसने दोनों को मौत के घाट उतारने के लिए डकैतों को फरमान सुना दिया। ऐसे में 31 जुलाई 2004 को नीलम ने श्याम के साथ लखनऊ में एंटी डकैती कोर्ट के सामने समर्पण कर दिया। सलाखों के पीछे दोनों ज्यादा महफूज थे।
निर्भर को पुलिस ने मार डाला, अब राजनीति करना चाहती है नीलम

बाद में एक साल बाद एनकाउंटर में पुलिस की गोली से निर्भर की जिंदगी और आतंक का अंत हुआ। वर्ष 2016 में कोर्ट ने भी नीलम को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। अब नीलम अपनी जिंदगी का नया अध्याय शुरू करने के लिए राजनीति करना चाहती है। नीलम ने इटावा निकाय चुनाव में पालिका अध्यक्ष पद के लिए निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर प्रचार शुरू कर दिया है। नीलम का कहना है कि राजनीति में आने का मकसद केवल महिलाओं के साथ होने वाले शोषण को रोकना है। लक्ष्य है कि निर्भय जैसे लोगों द्वारा सताई गई महिलाओं का सहारा बन सकूं और उनकी आवाज बुलंद कर सकूं।

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