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देवरिया

जातिगत समीकरणों के आधार पर बसपा ने बिछाई चुनावी बिसात

जिले के सात विधानसभा में चुनाव के समीकरण को देखते हुए बसपा ने अलग अलग जातियों को टिकट दिया, अल्पसंख्यक समुदाय को टिकट नहीं मिलने से है नाराजगी

देवरियाJun 19, 2016 / 08:41 pm

अखिलेश त्रिपाठी

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देवरिया. आसन्न विधान सभा चुनाव के मद्देनजर हर राजनैतिक दल ने अपनी गणित के अनुसार गोटियां बिछाने की शुरूआत कर दी है । सबने मिशन 2017 का नारा देते हुए चुनाव को अपने पक्ष में मोड़ने की जुगत भी लगानी शुरु कर दी है । जिले में बहुजन समाज पार्टी ने भी इस दृस्टिकोण से अपनी चुनावी व्यवस्था को रंग रुप देना शुरु कर दिया है । वैसे तो बातचीत में सभी जातिगत राजनीति की बात से कतराते दिखते हैं लेकिन चुनावी बैतरणी को पार करने के लिए पार्टी जातिगत गणित के अनुसार ही राजनीतिक बिसात बिछाते दिख रही है । जिले के सात विधान सभाओं में चुनाव के समीकरण को देखते हुए पार्टी ने अलग अलग जातियों को टिकट दिया है।

ब्राम्हण , अहीर , सोनार , कुशवाहा , जायसवाल और दलित के समीकरण के सहारे चुनाव निकालने की गणित बसपा ने बनायी है । अभी तक घोसित किए जा चुके प्रत्याशियों की बात करें तो दिखता है कि देवरिया सदर से ब्राह्मण उम्मीदवार के रुप में अभय नाथ त्रिपाठी को उतारकर जहां ब्राह्मणों को अपने पक्ष में करने का सन्देश दिया है वहीँ बगल के रामपुर कारखाना कारखाना सीट से पिछड़ी जातियों तक सन्देश देते हुए अहीर जाति के कमलेश यादव को मैदान में उतार रखा है । देवरिया के पूर्व बसपा सांसद गोरख प्रसाद जायसवाल के नाती और बरहज सीट से बसपा के चर्चित विधायक राम प्रसाद जायसवाल के पुत्र मुरली मनोहर जायसवाल को बरहज सीट से ही पार्टी ने प्रत्याशी बना कर व्यवसायी समाज को अपने पक्ष में करने का प्रयास किया है । 

सलेमपुर सुरक्षित और रुद्रपुर सीट से दलित प्रत्याशियों शंकर प्रसाद और चन्द्रिका प्रसाद को टिकट देकर पार्टी ने जहां अपने दलित एजेंडे को हवा दी है वहीँ भाटपार सीट से कुशवाहा समाज से आने वाले अपने पुराने नेता सभा कुंवर पर ही भरोसा जताया है । हाल ही में पथरदेवा सीट पर प्रत्याशी का परिवर्तन करते हुए पार्टी ने स्वर्णकार जाति के नीरज वर्मा को मैदान में उतारने का फैसला किया है, नीरज की पहचान शिक्षा माफिया के रुप में भी कुछ लोग प्रचारित कर रहे हैं । पहले यहाँ सैंथवार जाति के संजय सिंह प्रत्याशी थे वो पिछली बार यहाँ चुनाव भी लड़े थे और तीसरे स्थान पर रहे थे । 

वोट की बहुलता के हिसाब से चुनावी गणित बैठाते हुए बसपा ने अपने प्रत्याशियों को पूरी ताकत से मैदान में उतार तो दिया है लेकिन जिले के किसी सीट पर अल्पसंख्यक समुदाय से किसी को प्रत्याशी नही बनाए जाने की कसक संगठन से जुड़े अल्पसंख्यक नेताओं के बीच आसानी से देखने को मिल जा रही है । संगठन में कड़े अनुशासन के वजह से कोई मुंह तो नही खोल रहा है लेकिन चुनाव में इसका ख़ासा असर होगा , ऐसा कहा जा रहा है ।

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