खतरनाक और खूंखार गैंगस्टर सातवें चरण का रण पूर्वांचल के उन नौ जिलों में लड़ा जा रहा है, जो खतरनाक और गैंगस्टरों से भरे राज्य की पहचान कराता है। मिर्जापुर, रक्तांचल, रंगबाज और असुर जैसी वेब सीरीज के लिए मसाला यहीं मिलता है। मुख्तार अंसारी से लेकर धनंजय सिंह और विजय मिश्र जैसे माफिया सरगना काशी की सरजमीं में ही पनपते हैं। प्याज की तरह कई परतें और कई तरह की पहचान यहां अस्तित्व में है। बाबा विश्वनाथ हैं, तो गौतम बुद्ध की पहली उपदेश स्थली सारनाथ भी यहीं है। फिर भी न तो यहां की जनता का धार्मिक उत्थान हुआ न आर्थिक समृद्धि आयी।
यूपी का एकमात्र नक्सल प्रभावित जिला यूपी में कुल 37 भाषाएं बोली जाती हैं। इनमें से एक दर्जन से करीब इन्हीं 9 जिलों में बोली जाती हैं, जहां चुनाव होने हैं। आजमगढ़ से चलकर मऊ, गाजीपुर, जौनपुर, संत कबीर नगर, वाराणसी होते हुए मिर्जापुर, चंदौली और सोनभद्र तक पहुंचते-पहुंचते खान-पान और बोली-भाषा सब बदल जाती है। यूपी का सबसे बड़ा आदिवासी इलाका और प्रदेश का एकमात्र नक्सल प्रभावित जिला सोनभद्र है। …तो केवल इसलिए यहां चुनाव कभी विकास के नाम पर हुए ही नहीं। इस बार भी इस पर कोई चर्चा नहीं।
सब निस्तेज, एक चेहरे पर ही तेज आŸचयजनक किंतु सत्य यह है कि इन जिलों में अकेले पीएम मोदी ही मुस्करा रहे हैं। विपक्षी पार्टियों के बैनर-पोस्टर कम दिखते हैं। बड़ी बात यह है कि भाजपा के पोस्टरों से उनके प्रत्याशियों के चेहरे गायब हैं। यहां तक कि सीएम योगी का चेहरा भी कहीं नमूदार नहीं होता। लगता है अंतिम चरण में उम्मीदवारों की नहीं, पीएम के प्रभुत्व का इम्तिहान है। यही वजह है कि हर दिन पीएम मोदी यहां रैलियां कर रहे हैं। शुक्रवार को वह पूरी दुनिया में धार्मिक आस्था के केंद्र काशी में अब तक सबसे लंबा रोड शो करेंगे। पीएम मोदी के जरिए भारतीय जनता पार्टी पूरे देश की पहचान को भारत के सबसे बड़े राज्य की पहचान से जोड़कर रखना चाहती है। भाजपा की रैलियों में जय श्रीराम का नारा देश में हिदुत्व को बढ़ावा दे रहा तो काशी कॉरिडोर राष्ट्रीयता की नयी पहचान का प्रतीक बनकर उभर रहा है।
छोटे दलों की उर्वरा भूमि अंतिम चरण की जिन 54 सीटों के लिए चुनाव हो रहा है वह यूपी में छोटे दलों की उर्वरा भूमि भी है। हर जिले में गरीब पिछड़ी जातियां और उनके छत्रप हैं। लोनिया, राजभर, निषाद, गड़रिया और कुर्मियों की अच्छी आबादी है। 2017 के चुनाव में अपना दल ने यहां 04, सुभासपा ने 03 और निषाद पार्टी ने एक सीट जीती थी। इस बार क्षेत्रीय क्षत्रपों की निष्ठाएं बदली हैं। लेकिन वोटरों का मन भी बदला इसका पता तो 10 मार्च को चलेगा जब मतपेटियां खुलेंगी। तब तक तो सभी को अपनी-अपनी जीत का इंतजार है।