चुनावी मैदान में 21 उमीदवारों ने ठोकी ताल इतना ही नहीं इस विधानसभा सीट नौ बार कांग्रेस के प्रत्याशी विधायक बने, हांलकि मोदी-योगी लहर में 2017 में देवबंद सीट पर भी कमल खिला और बृजेश रावत विधायक बन विधानसभा पहुंचे। बीजेपी ने अपने विधायक बृजेश रावत पर भरोसा जताया है और उन्हें फिर से चुनाव मैदान में उतार दिया है। तो वहीं सपा ने पूर्व मंत्री स्वर्गीय राजेंद्र राणा के पुत्र कार्तिकेय राणा को प्रत्याशी बनाया है। इसके अलावा कांग्रेस ने राहत खलील को अपने प्रत्याशी के रुप में मैदान में उतारा है तो वहीं बसपा से चौधरी राजेंद्र सिंह चुनावी मौदान में हैं। इसके अलावा AIMIM के उमर मदनी भी चुनावी मौदान में ताल ठोक रहे हैं। आम आदमी पार्टी से प्रवीण कुमार और आजाद समाज पार्टी से योगेश प्रताप समेत कुल 21 उमीदवार चुनावी मैदान में हैं।
21 साल बाद 2017 में खिला था कमल जिले की देवबंद विधानसभा सीट पहला चुनाव सन 1952 में हुआ था। तब से लेकर 2017 तक बीजेपी इस सीट पर तीन बार जीतने में सफल रही है। मोदी-योगी लहर के बीच 21 साल बाद बीजेपी ने 2017 में फिर जीत दर्ज की थी और बृजेश रावत विधायक चुने गए थे। इससे पहले 1996 में बीजेपी प्रत्याशी सुखबीर सिंह पुंडीर इस सीट पर जीत दर्ज कर विधायक बने थे। तो वहीं 1993 में भी हुए चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट पर जीत दर्ज की थी।
क्या है इस सीट का इतिहास इस सीट का इतिहास देखा जाए तो यहां कांग्रेस का दबदबा रहा है। 1952 के पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के ठाकुर फूल सिंह विधायक चुने गए थे। तो वहीं 1957 के चुनाव में ठाकुर यशपाल सिंह यहां से निर्दलीय लड़े और चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंचे। इसके अलावा 1962 के चुनाव में कांग्रेस ने ठाकुर फूल सिंह को दोबारा चुनाव जीतकर दूसरी बार विधायक बनें। 1967 के चुनाव में कांग्रेस के ठाकुर फूल सिंह को तीसरी बार जीत कर अपना परचम फहराया था। तो वहीं 1969 और 1974 में कांग्रेस के ठाकुर महावीर सिंह विधायक बनें।
साल 1977 में हुए चुनाव में जनता पार्टी के मौलवी उस्मान जीत दर्ज कर विधायक बने। इसके बाद साल 1980 के चुनाव में कांग्रेस के महावीर सिंह ने सीट पर कब्जा किया और वह तीसरी बार विधायक बने। इसके बाद कांग्रेस के महावीर सिंह ने 1985 और 1989 में भी विधायक बने। साल 1991 में जनता दल के विरेंद्र ठाकुर विधायक बने तो वहीं 1993 में भारतीय जनता पार्टी की शशीबाला पुंडीर, 1996 में बीजेपी के सुखबीर सिंह पुंडीर जीत दर्ज कर विधायक बने।
तो वहीं साल 2002 में बहुजन समाज पार्टी के राजेंद्र सिंह राणा यहां से विधायक चुने गए। तो वहीं 2007 में बसपा के मनोज चौधरी जीत दर्ज विधानसभा पहुंचे। 2012 में समाजवादी पार्टी के राजेंद्र सिंह राणा ने जीत दर्ज क विधायक बने, हालांकि 2016 में राजेंद्र सिंह राणा की मौत हो गई। विधायक की मौत के बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी माविया अली जीत कर विधायक बने और 2017 के बीजेपी के बृजेश रावत इस सीट पर जीत दर्ज कर विधानसभा पहुंचे।
मुस्लिम मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक देवबंद एक मुस्लिम बहुल विधानसभा सीट है, लेकिन यहां के ठाकुर मतदाता निर्णायक की भूमिका निभाते रहे हैं। इस विधानसभा सीट पर कुल 3,34,126 मतदाता हैं। इनमें 1,80,375 पुरुष मतदाता, जबकि 1,53,735 महिला मतदाता हैं। जातिगत आंकड़ों की बात करें तो 1,10,000 मुस्लिम वोटर हैं। वहीं 70 हजार के करीब दलित वोटरों की संख्या है। इसके अलावा 57,000 ठाकुर, 30,000 गुर्जर, 35,000 ब्राह्मण मतदाता भी हैं।
देवबंद विधानसभा सीट के प्रमुख मुद्दे 1- देवबंद दारुल उलूम और मां बाला सुंदरी सिद्ध पीठ- इन दोनों धर्म स्थलों को लेकर देवबंद में अक्सर धर्म की राजनीति की जाती है। यह अलग बात है कि, देवबंद दारुल उलूम कभी भी राजनीतिक मसलों में हस्तक्षेप नहीं करता, लेकिन यहां हिंदू मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण करने के लिए आए दिनइन दोनों धार्मिक प्रमुख स्थलों का राजनीतिक भाषा में इस्तेमाल किया जाता है।
2- देवबंद में घोषित एटीएस कमांडो सेंटर हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एटीएस कमांडो सेंटर बनाए जाने की घोषणा की और उसका शिलान्यास भी किया है, हालांकि मुस्लिम लोग इसका खुलकर विरोध नहीं कर रहे, लेकिन कहीं ना कहीं यह एटीएस सेंटर हिंदू मुस्लिम राजनीति का ध्रुवीकरण कर रहा। हाल ही में नामांकन दाखिल करने के लिए पहुंचे देवबंद से भाजपा विधायक कुंवर बृजेश सिंह ने यह बयान दिया है कि देवबंद दारुल उलूम तालिबानी सोच का जन्मदाता है और इसीलिए मुख्यमंत्री ने देवबंद में एटीएस कमांडो सेंटर की घोषणा की है।