छोटे दलों के साथ गठबंधन में भाजपा का अनुभव काफी अच्छा रहा है। 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्हें इसका फायदा मिल चुका है। 2017 में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, अपना दल के साथ गठबंधन कर 403 में से 324 सीटें हासिल की। इस चुनाव में अपना दल को 11 सीटें और सुभासपा को 8 सीटें दी गईं, वहीं चुनाव में अपना दल को 9 सीटों पर जीत मिली तो ओमप्रकाश राजभर को 4 सीटों पर जीत मिली। 2019 के चुनाव में निषाद पार्टी से भी गठबंधन किया तो इसका बड़ा फायदा मिला। इस बार भी भारतीय जनता पार्टी छोटे दलों को पूरा सम्मान देने की तैयारी में है। इसी कारण इस बार अपना दल और निषाद पार्टी के साथ भाजपा का गठबंधन बरकार है। इसके अलावा हिस्सेदारी मोर्चा के सात घटक दल भाजपा के साथ आ गए। भाजपा के साथ गठबंधन करने वालों में भारतीय मानव समाज पार्टी, मुसहर आंदोलन मंच (गरीब पार्टी), शोषित समाज पार्टी, मानवहित पार्टी, भारतीय सुहेलदेव जनता पार्टी, पृथ्वीराज जनशक्ति पार्टी और भारतीय समता समाज पार्टी ने अपना समर्थन भाजपा को दिया है।
कांग्रेस पार्टी ने अपनी सक्रियता को तेज कर दिया है। वह लखीमपुर, किसान आंदोलन का फायदा लेने के मूड में दिख रही है। बसपा भी जमीनी रूप से अपना काम धीरे-धीरे करने में जुटी है।
राजनीतिक विष्लेष्कों की मानें तो सत्तारूढ़ दल भाजपा और सपा को चुनावी रणनीति में छोटे दलों की अनदेखी कर पाना मुश्किल होगा। इसकी वजह राजनीतिक और समाजिक हालात है। साथ जातीय समीकरण की गोट में भी इन दलों की अच्छी भूमिका होती है।
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राजनीति में सबका अपना स्थान, कोई छोड़ा बड़ा नहीं : भाजपा
भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी मनीष दीक्षित का कहना है कि भाजपा सबका साथ सबका विकास की राजनीति पर काम करती है। विकास और राष्ट्र निर्माण के लिए जो भी साथ आना चाहता उसे साथ लेकर चलती है। राजनीति में सबका अपना स्थान है। इसमें कोई छोटा बड़ा नहीं होता है।
सपा के प्रवक्ता डॉ. आशुतोष वर्मा का कहना है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष कई बार कह चुके हैं उनका बड़े दलों के साथ अनुभव अच्छा नहीं रहा है। देखा गया है कि हर चुनाव में इनका रोल हर जगह अहम रहा है। इनका अपना-अपना स्थायित्व है। अपने-अपने क्षेत्रों में इनकी अच्छी पकड़ है।