प्रतिष्ठित राजपरिवार से ताल्लुक है राजाभैया कुंडा के विधायक रघुराज प्रताप सिंह ऊर्फ राजा भैया के दादा राजा बजरंग बहादुर सिंह, पंत नगर कृषि विश्वविद्यालय के उपकुलपति (वाइसचांसलर) थे। बाद में यह हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल बने। राजा भैया के पिता राजा उदय प्रताप सिंह विश्व हिंदू परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मानद पदाधिकारी रह चुके हैं। खुद राजा भैया विधि स्नातक हैं। आज इनकी पूर्वांचल की सियासत में अच्छी खासी दखलंदाजी हैं। राजा भैया पहली बार 1993 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में कुंडा विधानसभा से जीत हासिल की। अब तक यह 6 बार विधायक रह चुके हैं। यह 1993 और 1996 का विधानसभा चुनाव बीजेपी समर्थित, 2002 और 2007, 2012 का चुनाव एसपी समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीते। यूपी की दो सरकारों में यह मंत्री भी बने।
पांच बार के विधायक अतीक अहमद पूर्वांचल के ही एक और बाहुबली विधायक हैं अतीक अहमद। 1989 में यह इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा सीट से विधायक बने। इसके बाद 1989,1991, 1993,1996 और 2002 में विधायक निर्वाचित हुए। तीन बार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीते। 1996 में सपा और 2002 में अपना दल से जीते। सपा से यह फूलपुर से सांसद भी निर्वाचित हुए।
योगी आदित्यनाथ सरकार में उनके खिलाफ दर्ज मामलों में कार्रवाई चल रही है। सरकार अब तक करीब 355 करोड़ की संपत्ति जब्त कर ली है। इस बार औवेसी ने उन्हें प्रयागराज से टिकट देने की घोषणा की है। इनके पिता फिरोज इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर तांगा चलाते थे। पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक अतीक अहमद पर करीब 80 मामले दर्ज हैं।
सुशील सिंह को विरासत में मिली राजनीति एमएलसी बृजेश सिंह के भतीजे और दो बार एमएलसी रहे उदयनाथ सिंह उर्फ चुलबुल सिंह के पुत्र सुशील सिंह ने 2002 में बसपा के टिकट पर धानापुर विधानसभा सीट से राजनीतिक सफर शुरू किया पर हार गए। लेकिन पांच साल बाद 2007 में चंदौली की धानापुर विधानसभा से निर्वाचित हुए। उस दौरान दाखिल शपथ पत्र के अनुसार सुशील सिंह के खिलाफ 14 मुकदमे दर्ज थे। 2017 के मोदी लहर में सुशील सैयदराजा विधानसभा से दोबारा विधायक बने। तब उनके शपथ पत्र के अनुसार नई दिल्ली, भदोही, चंदौली और वाराणसी जिले में पांच मुकदमे दर्ज रहे।
विजय मिश्र जो थे कमलापति के शिष्य विजय मिश्र पूर्वांचल के दिग्गज राजनेता रहे पंडित कमलापति त्रिपाठी के शिष्य रहे हैं। बाद में वह सपा से जुड़ गए। सपा के टिकट पर तीन बार विधायक बने। 2017 में विजय को बाहुबली मानते हुए अखिलेश ने उनका टिकट काट दिया। वे निषाद पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े और जीते। मायावती सरकार में नंद कुमार नंदी पर हुए जानलेवा हमले में सबसे पहले विजय मिश्र का नाम आया। जेल में रहते हुए सपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत भी गए।