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UP ASSEMBLY ELECTION 2022: दादा-पिता की विरासत संभालना होगी चुनौती, 2022 में होगी रालोद के नए मुखिया की परीक्षा

UP ASSEMBLY ELECTION 2022: पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को जाटों और किसानों का मसीहा माना जाता रहा है। कुछ ऐसा ही उनके जाने के बाद उनके बेटे अजित सिंह के साथ रहा।

Sep 20, 2021 / 09:39 am

Nitish Pandey

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UP ASSEMBLY ELECTION 2022: दादा पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह और पिता पूर्व सांसद चौधरी अजित सिंह की विरासत को जयंत चौधरी ने भारी जनसमूह के बीच रविवार को बागपत जिले के छपरौली में संभाल लिया। लेकिन रालोद के इस नए मुखिया चौधरी जयंत की आगामी 2022 की विधानसभा चुनाव में कड़ी परीक्षा होगा। रालोद के नए मुखिया को चौधरी का खिताब तो मिला, लेकिन इस चौधराहट को अपने जनाधार वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश से बढ़ाकर पूरे प्रदेश में भी फैलाने का दबाव होगा।
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जाटों को है चौधरी जयंत से उम्मीद

पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को जाटों और किसानों का मसीहा माना जाता रहा है। कुछ ऐसा ही उनके जाने के बाद उनके बेटे अजित सिंह के साथ रहा। हालांकि अजित सिंह जाटों और किसानों की उम्मीदों पर इतना खरा नहीं उतर पाए जितनी उम्मीदें उनसे बिरादरी ने लगाई थी। लेकिन उन्होंने जरूरत पड़ने पर कभी किसानों और जाटों को मायूस भी नहीं किया। आज कुछ ऐसा ही जाटों ने चौधरी जयंत से उम्मीद की है।
बाखूबी साथ निभाती रही है छपरौली

जिस छपरौली की धरती पर रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी को विरासत संभालने के लिए पगड़ी पहनाई गई, उसने पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चौधरी चरण सिंह व उनके बेटे पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी अजित सिंह का खूब साथ निभाया है। यही वजह है कि दादा और पिता की विरासत से अब जयंत चौधरी को बड़ी आस है। बागपत व बड़ौत ने भले ही कई बार रालोद का साथ छोड़ा है, लेकिन छपरौली के लोग उनके साथ खड़े रहे।
चौधरी चरण सिंह की कर्मभूमि है छपरौली

छपरौली को पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की कर्मभूमि ऐसे ही नहीं कहा जाता है। यहां से लोगों ने 84 साल पहले उनको विधानसभा में पहुंचाया था। छपरौली ने चौधरी चरण सिंह का साथ निभाना शुरू किया तो यह सिलसिला आज तक लगातार जारी है। अब वहां से चाहे चौधरी चरण के परिवार से कोई भी चुनाव लड़ा हो या उनकी पार्टी ने किसी अन्य को प्रत्याशी बनाकर उतारा हो, उसे लोगों ने हमेशा जीत दिलाकर ही भेजा है।
जयंत के लिए उमड़ा जनसैलाब

चौधरी चरण सिंह के निधन के बाद भी छपरौली के लोगों ने पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी अजित सिंह का हाथ थाम लिया और उनका भी पूरा साथ देते रहे। बड़ौत व बागपत ने कई बार इस परिवार का साथ छोड़ दिया और यह दोनों सीट कभी बसपा तो कभी भाजपा के खाते में पहुंचती रही। अब छपरौली से जयंत चौधरी को बड़ी उम्मीद है। रालोद अध्यक्ष बनने पर पहली बार छपरौली पहुंचे जयंत चौधरी को पगड़ी पहनाने के लिए जिस तरह से जनसैलाब उमड़ा है, उससे उनकी उम्मीद भी ज्यादा बढ़ गई है।
हिंदू-मुस्लिम भाईचारा कायम रखना चुनौती

रालोद को पिछले कई चुनावों में भारी नुकसान हो रहा है और उसका सबसे बड़ा कारण हिंदू-मुस्लिम भाईचारा बिगड़ना रहा है। जब तक यह भाईचारा कायम रहा, तब तक चौधरी अजित सिंह की राह भी आसान रही और उनके आखिरी दो चुनावों में भाईचारा बिगड़ा तो वह भी जीत की राह तक नहीं पहुंच सके। अब जयंत चौधरी के सामने भी सबसे बड़ी चुनौती यही होगी कि वह हिंदू-मुस्लिम भाईचारा किस तरह से कायम करते है। वह इसमें कामयाब हो जाते है तो यह रालोद के लिए बड़ी संजीवनी होगा।

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