बता दें कि पिछले 2017 के विधानसभा चुनाव में नोटा ने अपनी ताकत का एहसास करा दिया है। खास तौर पर पूर्वांचल की बात करें तो पिछले चुनाव में मऊ की मोहम्मदाबाद गोहना विधानसभा की आरक्षित सीट पर बीजेपी प्रत्याशी श्रीराम और बसपा प्रत्याशी राजेंद्र कुमार के बीच हुए कांटे के मुकाबले में नोटा की भूमिका कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई थी। इस मुकाबले में बीजेपी प्रत्याशी श्रीराम को जीत भले मिली हो पर क्षेत्र के एक हजार 945 वोटरों ने इन दोनों सहित अन्य सभी प्रत्याशियों को खारिज करते हुए नोटा का बटन दबाया था। बता दें कि बीजेपी प्रत्याशी श्रीराम ने बीएसपी प्रत्याशी राजेंद्र कुमार को महज 538 मतों से हराया था। यानी हार-जीत के अंतर के तीन गुना से अधिक मत नोटा का रहा।
ऐसे ही आजमगढ़ के मुबारकपुर में बसपा प्रत्याशी शाह आलम ने सपा के अखिलेश यादव को मात्र 688 मतों से पराजित किया। यहां जब मतों की गणना हुई तो पता चला कि क्षेत्र के एक हजार 628 मतदाताओं ने इन सभी को खारिज करते हुए नोटा का बटन दबाया था।
इतना ही नहीं पूर्वांचल की 61 विधानसभा सीटों पर 499 प्रत्याशियों से ज्यादा मत नोटा को मिला था। इसमे वाराणसी की पिंडरा सीट पर 2888, अजगरा सीट पर 2347, रोहनिया सीट पर 2187, सेवापुरी में 1626 और शहर उत्तरी सीट पर 1114 मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया था। आंकड़े बताते हैं कि 2017 में बनारस की आठ विधानसभा सीटों पर कुल 127 प्रत्याशी मैदान में थे जिसमें से 84 प्रत्याशियों को जितना मत मिला उससे कहीं ज्यादा नोटा को मिला था। यानी 66.14 फीसद मतदाताओं ने प्रत्याशियों को नकार दिया था।