scriptUP Assembly Elections 2022 : बुंदेलखंड का वीरप्पन तो नहीं रहा, लेकिन अब भी कायम है ददुआ का जलवा, बेटे-भतीजे दोनों को सपा ने बनाया उम्मीदवार | Bandit Dadua Son Nephew SP candidate from Pratapgarh and Chitrakoot | Patrika News
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UP Assembly Elections 2022 : बुंदेलखंड का वीरप्पन तो नहीं रहा, लेकिन अब भी कायम है ददुआ का जलवा, बेटे-भतीजे दोनों को सपा ने बनाया उम्मीदवार

UP Assembly Elections 2022 : बंदुलेखंड की सियासत में एक समय डाकू ददुआ उर्फ शिव कुमार पटेल की तूती बोलती थी। उसके बिना बुंदेलखंड में एक पत्ता भी नहीं हीलता था। पाठा के जंगलों में पुलिस कभी उसे छू नहीं सकी थी। ददुआ के बिना आशीर्वाद के पंचायत से लेकर विधानसभा और लोकसभा तक के चुनाव नहीं लड़े जाते थे। ददुआ को ‘बुंदेलखंड का वीरप्पन’ भी कहा जाता था, लेकिन सियासत में अति महत्वकांक्षा उसे ले डूबी और बसपा सरकार में एसटीएफ ने उसे मार गिराया था।

Feb 03, 2022 / 05:37 pm

Amit Tiwari

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UP Assembly Elections 2022 : बुंदेलखंड का वीरप्पन तो मर गया लेकिन आज भी उसका जलवा कायम है। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने दस्यु सम्राट ददुआ के बेटे वीर सिंह पटेल को चित्रकूट के मानिकपुर सीट से प्रत्याशी बनाया है। जबकि भतीजे राम सिंह पटेल को प्रतापगढ़ की पट्टी सीट से टिकट दिया है। समाजवादी पार्टी ने चित्रकूट की दोनों विधानसभाओं सीट पर बड़ा दांव खेला है। हालांकि अब तक भारतीय जनता पार्टी ने मानिकपुर सीट से अपना प्रत्याशी घोषित नहीं किया है। कभी बदूंक के बल पर जंगल से वोट उगाने वाले और बुंदेलखंड के वीरप्पन कहे जाने वाले दस्यू सम्राट ददुआ के बेटे वीर सिंह को सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अब पटेल बिरादरी और डकैत ददुआ की सहानुभूति को देखते हुए शायद फिर से टिकट दिया है।
2006 में निर्विरोध वीर सिंह बने थे जिला पंचायत अध्यक्ष

ददुआ के बेटे वीर सिंह पटेल ने पहला चुनाव वर्ष 2006 में मानिकपुर विधानसभा के चुरेह केसरुआ वार्ड से जिला पंचायत सदस्य के रुप में लड़ा था। तह ददुआ का इतना आतंक था कि जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर किसी प्रत्याशी ने पर्चा दाखिल नहीं किया और वीर सिंह पटेल निर्विरोध जिला पंचायत अध्यक्ष बन गए थे।
ददुआ की मौत के बाद 2012 में बने थे विधायक

वीर सिंह पटेल के अध्यक्ष बनने के बाद सत्ता परिवर्तन हुआ और बीएसपी की सरकार में मायावती के इशारे में एसटीएफ ने डकैत ददुआ को साल 2007 में एनकाउंटर कर ढेर कर दिया। जिसके बाद डकैत ददुआ की सहानुभूति में वीर सिंह को सपा ने 2012 में विधायकी का टिकट दिया और जनता ने ददुआ की सहानुभूति में वीर सिंह को विधायक भी बनाया। वीर सिंह पटेल फिलहाल बतौर पूर्व विधायक जनता के बीच सदर क्षेत्र में सक्रिय थे। लेकिन अखिलेश यादव ने वीर सिंह को मानिकपुर से टिकट दिया है।
भाजपा ने अभी नहीं उतारा है प्रत्याशी

फिलहाल बीहड़ के इस संवेदनशील सीट पर हार-जीत का गणित तभी लग सकेगा जब बीजेपी अपना उम्मीदवार उतारेगी। वीर सिंह पटेल ने हमेशा खुद को पिता के कार्यों से इतर ही बताया है। वीर सिंह का कहना रहा है कि मुझपर उनका उतना ही अधिकार रहा है, जितना एक पिता पुत्र के रिश्ते में होता है। वो जंगल में रहे और मैं हमेशा उनसे अलग रहकर जनता की सेवा में जुटा रहा हूं। उनके बारे में बहुत कुछ नहीं कह सकते। मैं समाजवादी पार्टी का सच्चा सिपाही हूं और पार्टी के लिए सच्ची निष्ठा से कार्य कर रहा हूं।
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आखिर कौन था शिवकुमार पटेल उर्फ ददुआ

चित्रकूट-बांदा क्षेत्र का एक ऐसा नाम है, जिसे लगभग हर कोई जानता है। चित्रकूट-बांदा क्षेत्र के बच्चे-बच्चे की जुबान पर ददुआ का नाम चढ़ा हुआ है। क्षेत्र के पाठा जंगलों में ददुआ नाम खौफ और आतंक का पर्याय था। हालांकि, ददुआ को लेकर कभी भी लोग एकमत नहीं रहे। लेकिन आज भी लोगों का कहना है कि वह गरीबों के लिए मसीहा था। वहीं व्यापारियों और धनी लोगों के लिए ददुआ उनके लिए वह चेहरा बन गया था, जिसके मिट जाने पर इनमें खुशी का माहौल था।
22 साल की सामूहिक हत्याकांड को दिया था अंजाम

दस्यु ददुआ उस वक्त सुर्खियों में छा गया था, जब उसने 22 साल की उम्र में अपने ही गांव के आठ लोगों की हत्या कर दी और गांव से फरार हो गया था। इसके बाद तो जैसे लोगों के लिए शिवकुमार पटेल मर ही गया और एक नया नाम ‘ददुआ’ लोगों के लिए आतंक बन कर छा गया था।
भैंस चोरी का पहला मामला हुआ था दर्ज

ददुआ ऐसा खतरनाक डकैत था, जिसके खिलाफ मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के थानों में हत्या, लूट और डकैती जैसे 400 से भी ज्यादा मामले दर्ज थे। ददुआ के खिलाफ पहला मामला 1975 में दर्ज हुआ था, जिसमें उसके खिलाफ भैंस चोरी का आरोप था।
2007 में एसटीएफ ने किया था ढेर

साल 1978 में अपने ही परिवार के एक सदस्य की हत्या करने के बाद वह घर से भाग गया था। ददुआ ने करीब 32 सालों तक मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ इलाकों में अपना आतंक जमाए रखा। लेकिन पुलिस उसकी परछाई तक को नहीं छू पाई। ऐसे में एसटीएफ को यह काम सौंपा गया था। एसटीएफ की टीम ने 2007 में मानिकपुर जनपद चित्रकूट के क्षेत्र में 20 सदस्यीय टीम के साथ ददुआ गैंग को घेर लिया और अंततः ददुआ और उसके कई साथियों को मार गिराया था।

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