बैंक ऑफ इंटरनेशनल स्टैंडर्ड ( BIS ) द्वारा जारी किये गए आंकड़ों के मुताबिक, साल 2018 के दौरान भारतीयों द्वारा दक्षिण कोरिया में नॉन-बैंक डिपॉजिट में 900 फीसदी का इजाफा हुआ है। नॉन-बैंकिंग डिपॉजिट में कॉरपोरेट और व्यक्तिगत डिपॉजिट शामिल होता है। इसमें अंतर-बैंकिंग लेनदेन शामिल नहीं होता। विदेशों में कालेधन पर नरेंद्र मोदी सरकार के बचाव में पूर्व वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने साल 2018 में इसी नॉन बैंक डिपॉजिट का जिक्र किया था।
2018 में दुनियाभर के लोगों ने दक्षिण कोरिया में जमा किया पैसा
बैंक ऑफ इंटरेशनल स्टैंडर्ड के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2018 में भारतीय नागरिकों द्वारा नॉन बैंक लोन व डिपॉजिट के तौर पर कुल 90.4 करोड़ डॉलर (करीब 61.70 अरब रुपये) जमा किया गया। इसके पहले 2017 में यह आंकड़ा मात्र 10 लाख डॉलर (करीब 68.56 लाख रुपये रुपये) था। साल 2014 में जब मोदी सरकार पहली बार सत्ता में आई थी, तब भारतीयों ने दक्षिण कोरियाई बैंकों में केवल 40 लाख डॉलर (करीब 2.74 अरब रुपये) जमा किये थे। साल 2018 में तुलनात्मक रूप से पूरी दुनिया में भारतीयों द्वारा जमा की गई रकम 9.5 अरब डॉलर (करीब 6.5 खरब रुपये) थी जोकि पिछले साल से एक अरब डॉलर अधिक थी।
केवल भारत ही नहीं, बल्कि दुनियाभर के कई देशों के नागरिकों ने दक्षिण कोरिया में अपनी पूंजी जमा करने में जबरदस्त दिलचस्पी दिखाई। साल 2017 में दुनियाभर के लोगों ने दक्षिण कोरिया में 19 अरब डॉलर (करीब 13 खरब रुपये) जमा किए थे, जोकि साल 2018 में बढ़कर 37 अरब डॉलर (करीब 25.35 खरब रुपये) रहा।
मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद आई कमी
एक तरफ 2018 में भारतीयों ने दक्षिण कोरिया में तेजी से धन जमा किया। वहीं, दूसरी तरफ इस दौरान स्विस बैंक समेत अन्य टैक्स हैवेने से भी तेजी से अपनी पूंजी निकाला। बीआईएस की मुताबिक, साल 2018 तक भारतीय नागरिकों ने स्विस बैंक में नॉन-बैंक डिपॉजिट के तौर पर कुल 8.50 करोड़ डॉलर जमा कर रखा था। इसके पहले साल 2014 में जब मोदी सरकार सत्ता में आई थी तब यह रकम 34.7 करोड़ डॉलर था। साल 2014 के बाद इसमें लगातार कमी देखने को मिली।
स्विस बैंक से मोहभंग के बाद इन टैक्स हैवेन का भारतीयों ने किया रुख
स्विस बैंकों में पूंजी निकालने के शुरुआती दौर में भारतीयों ने हांगकांग का भी रुख किया था। हालांकि, अब इसमें भी कमी देखने को मिल रही है। साल 2015 में भारतीय नागरिकों ने हांगकांग में नॉन-बैंकिंग डिपॉजिट के तौर पर कुल 1.4 अरब डॉलर जमा किया था जोकि साल 2018 में घटकर 60 करोड़ डॉलर रह गया। 2015 में 1.4 अरब डॉलर का यह आंकड़ा बीते पांच साल में सबसे अधिक था। वहीं, Isle of Man और Jersey जैसे दूसरे टैक्स हैवेन की बात करें तो यहां भी भारतीय खाताधारकों द्वारा पूंजी जमा करने में कमी आई है।
क्यों है दक्षिण कोरिया भारतीयों की पसंद?
ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर क्यों भारतीय खाताधारक दक्षिण कोरिया में अपनी पूंजी रखने में इतनी दिलचस्पी दिखा रहे हैं? साल 2017 में पूरी दुनिया में क्रिप्टोकरंसी कारोबार सबसे अधिक तेजी दर्ज की गई थी। कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, दिसंबर 2017 तक दक्षिण कोरिया में क्रिप्टोकरंसी में निवेश करने के लिए लोगों में पागलपन की हद तक जुनून था। इस साल दक्षिण कोरिया की एक तिहाई वर्कफोर्स ने बिटकॉइन व इथेरियम समेत अन्य क्रिप्टोकरंसी में निवेश किया था। हालांकि, 2018 के पहली तिमाही में बैंक डिपॉजिट में पहली बार सबसे अधिक तेजी दर्ज की गई।
दक्षिण कोरिया में वर्चुअल करंसी पर शिकंजे के बाद भी भारतीय लोगों ने जमा किया पैसा
इस दौरान दक्षिण कोरियाई बैंक भी अपने ग्राहकों को वर्चुअल करंसी अकाउंट्स ऑफर कर रहे थे। हालांकि, 2018 में क्रिप्टोकरंसी की तेजी में अचानक गिरावट आ गई। यह गिरावट, दक्षिण कोरिया फाइनेंशियल सर्विस कमीशन द्वारा वर्चुअल कंरसी खातों से संबंधित जांच के बाद आई थी। चौंकाने वाली बात यह रही कि एक तरफ दक्षिण कोरिया में क्रिप्टोकरंसी में भारी गिरावट देखने को मिल रही थी, ठीक उसी दौरान भारतीयों ने दक्षिण कोरियाई बैंकों में तेजी से पैसा जमा किया। जनवरी 2018 से लेकर अप्रैल 2018 के बीच दक्षिण कोरिया में कुल डिपॉजिट 10 लाख डॉलर से बढ़कर 60 करोड़ डॉलर हो गया। अप्रैल से जुलाई के बीच यह आंकड़ा 80 करोड़ के पार जा चुका था। तीसरी तिमाही में स्थिर रहने के बाद सितंबर से दिसंबर 2018 के दौरान यह बढ़कर 1 अरब डॉलर के पार जा चुका था।
न्यूज एजेंसी रॉयटर्स की 8 जनवरी 2018 की रिपोर्ट में दक्षिण कोरियाई फाइनेंस के प्रमुख चोई जोंग-कू ने कहा था, “मौजूदा समय में वर्चुअल करंसी पेमेंट के तौर पर काम नहीं कर रहा है। इसे मनी लॉन्ड्रिंग, स्कैम और फ्रॉड निवेश विकल्पों के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है।”