दरअसल इमिग्रेशन और कस्टम इनफोर्समेंट डिपार्टमेंट ने पिछले दिनों बयान जारी कर कहा था कि नॉनइमिग्रैंट F-1 और M -1 छात्रों को अमेरिका में प्रवेश नहीं दिया जाएगा । इसके बावजूद अगर वह अभी भी अमेरिका में रह रह हैं तो उन्हें अमेरिका छोड़कर अपने देश जाना होगा। ऐसा न करने पर यानि इस नियम को न मानने पर गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
ICE के अनुसार, F-1 के छात्र अकैडमिक कोर्स वर्क में हिस्सा लेते हैं जबकि M-1 स्टूडेंट ‘वोकेशनल कोर्सवर्क’ के छात्र होते हैं। डिपॉर्टमेंट के मुताबिक जिन छात्रों की आनलाइन क्लासेज चल रही है उन्हें अगले सेमेस्टर से वीजा नहं दिया जाएगा। जबकि यूनीवर्सिटीज ने अगले सेमेस्टर की योजना नहीं बताई है।
यूनीवर्सिटीज भी दायर कर चुकी है मुकदमा- हॉपकिन्स विश्वविद्यालय (John Hopkins University) हार्वर्ड (Havard) और एमआईटी (MIT) जैसे प्रतिष्ठित उच्च शिक्षण संस्थान भी अमेरिकी प्रशासन के खिलाफ मुकदमा दायर कर चुकी हैं।
कमाई का मौका है Bharat Bond ETF, कल से शुरू हो रहा है सब्सक्रिप्शन- 8:10pmH1B वीजा का भी विरोध कर चुकी है कंपनियां – स्टूडेंट वीजा ( us student visa ) के अलावा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ( Donald Trump ) की ओर से एच-1 बी वीजा समेत विदेशियों को जारी होने वाले काम से जुड़े वीजा को साल के अंत तक निलंबित करने के फैसले पर भी ट्रंप प्रशासन को इन कंपनियों का गुस्सा झेलना पड़ा था।
गूगल के सुंदर पिचई ( Google CEO Sundar Pichai ) ने ट्वीट कर कहा था कि अमेरिका की आर्थिक सफलता में अप्रवासियों का बहुत बड़ा योगदान है. उन्होंने देश को तकनीक में वैश्विक रूप से अग्रणी बनाया है। मैं इस घोषणा से निराश हूं। पिचई के बाद टेस्ला के एलन मस्क और माइक्रोसॉफ्ट के अध्यक्ष ब्रेड स्मिथ ने भी इसका विरोध किया था।