अब सरकार वित्त वर्ष 2018-19 और 2019-20 में प्राप्त करीब 17,000 करोड़ रुपये की इस रकम को बुनियादी ढांचे में निवेश नहीं कर पायेगी।
सीआरआईएफ में नहीं जायेगी सारी रकम
आमतौर पर सेस से प्राप्त रकम केंद्रीय सड़क एवं बुनियादी ढांचा कोष (सीआरआईएफ) में जाती है। वित्त वर्ष 2018-19 में पेट्रोल-डीजल पर सेस लगने से सरकार को 1,13,000 करोड़ रुपये की कमाई हुई। वित्त वर्ष में 2019-20 में सरकार इससे 1,27,000 करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद है। लेकिन, अब यह पूरी रकम सीआरआईएफ में नही जायेगी।
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नई नीति की तैयारी में सरकार
ध्यान देने वाली बात यह है कि यह स्थित एक ऐसे समय में पैदा हुई है जब भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) और सड़क, ट्रांसपोर्ट एवं राजमार्ग मंत्रालय के पास इतनी रकम नहीं है कि वो अपने दम पर राष्ट्रीय राजमार्ग के लिए खर्च कर सके। पूंजी की इस भारी रकम को पूरा करने के लिए सरकार अब बनाओ-चलाओ और हस्तांतरित करो (बीओटी) और मौद्रिकरण के जरिये निजी निवेश की नीति पर अपनाना चाहती है।
क्या है जानकरों का कहना
इस मामले से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, चालू वित्त वर्ष में संग्रह से जुड़े आंकड़े फिलहाल अनुमानित हैं। एक अन्य जानकार का कहना है कि सेस लगाने से आई रकम सरकार काफी मात्रा में आवंटित कर रही है, जबकि आवंटित इंजीनियरिंग, खरीद एवं हाईब्रिड. एन्युटी परियोजनाओं के कारण एनएचएआई की पूंजीगत जरूरतें बढ़ गईं है।
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सरकार ने वित्त वर्ष 2018-19 में 9,013 करोड़ रुपये का इस्तेमाल किया था। अब माना जा रहा है कि दूसरी मांगो की पूर्ति के लिए वह वित्त वर्ष 2019-20 में 7,902.20 करोड़ रुपये का इस्तेमाल करेगा। एक्साइज ड्यूटी से प्राप्त रकम का इस्तेमाल किसी भी उद्देश्य के लिए किया जा सकता है। अब बुनियादी उत्पाद शुल्क सहित पेट्रोल पर कुल शुल्क बढ़कर 19.98 रुपये (ब्रांडेड पेट्रोल पर 21.23 रुपये) हो गया है। इसी तर? डीजल ल पर कुल उत्पाद शुल्क बढ़कर 15.83 रुपये (ब्रांडेड डीजल पर 18.19 रुपये) प्रति लीटर हो गया है। पेट्रोल और डीजल की प्रति लीटर बिक्री से सरकार को बुनियादी ढांचे में निवेश के लिए 9 रुपये मिलते हैं।