scriptTeachers Day 2021: इन टीचर्स ने दी ऐसी नई सोच कि पूरे प्रदेश में छा गया इनका आइडिया, बच्चों से लेकर समाज के लिए बने मिसाल | Read story of innovative teachers of Durg district on Teacher's Day | Patrika News
दुर्ग

Teachers Day 2021: इन टीचर्स ने दी ऐसी नई सोच कि पूरे प्रदेश में छा गया इनका आइडिया, बच्चों से लेकर समाज के लिए बने मिसाल

Teachers Day 2021: सरकारी स्कूलों की तस्वीरों को बदलने की बात हो या स्मार्ट क्लास का कंपेस्पट या फिर बेटियों के लिए स्कूलों में सेनेटरी नैपकिन की मशीन लगाने की शुरुआत.. सबकुछ दुर्ग जिले से ही शुरू हुआ

दुर्गSep 05, 2021 / 11:16 am

Dakshi Sahu

Teachers Day 2021: इन टीचर्स ने दी ऐसी नई सोच कि पूरे प्रदेश में छा गया इनका आइडिया, बच्चों से लेकर समाज के लिए बने मिसाल

Teachers Day 2021: इन टीचर्स ने दी ऐसी नई सोच कि पूरे प्रदेश में छा गया इनका आइडिया, बच्चों से लेकर समाज के लिए बने मिसाल

कोमल धनेसर@भिलाई. शिक्षक…ज्ञान का ऐसा दीपक जो स्वयं जलकर विद्यार्थियों के जीवन को रोशन तो करते है, लेकिन अपनी रचनात्मक के जरिए दूसरों के लिए भी प्रेरणा बन जाते हैं। ऐसे ही शिक्षक हमारे दुर्ग जिले के हैं, जिनके अनूठे प्रयास और इनोवेशन का फायदा न केवल दुर्ग जिले बल्कि पूरे प्रदेश को मिल रहा है। सरकारी स्कूलों की तस्वीरों को बदलने की बात हो या स्मार्ट क्लास का कंपेस्पट या फिर बेटियों के लिए स्कूलों में सेनेटरी नैपकिन की मशीन लगाने की शुरुआत.. सबकुछ दुर्ग जिले से ही शुरू हुआ और पूरे प्रदेश में पॉयटल प्रोजक्ट बनकर छा गए। शिक्षक दिवस पर ऐसे ही पर्दे के पीछे रहकर काम करने वाले कुछ शिक्षकों की कहानी उनकी जुबानी
Teachers Day 2021: इन टीचर्स ने दी ऐसी नई सोच कि पूरे प्रदेश में छा गया इनका आइडिया, बच्चों से लेकर समाज के लिए बने मिसाल
सेमरिया स्कूल में लगी सैनटरी नैपकिन मशीन तो सरकार ने बना दी पूरी योजना
धमधा विकासखंड का सेमरिया स्कूल जहां अक्सर बेटियों की उपस्थिति महीने के उन दिनों में कम हो जाती थी। तो कभी स्कूल आकर इमरजेंसी छुट्टी मांगना उनकी मजबूरी होती थी, क्योंकि अगर स्कूल में अचानक पीरियड्स शुरू हो गए तो उनके पास घर जाने के अलावा कोई चारा नहीं होता था। बेटियों के दर्द को स्कूल की हिन्दी व्याख्याता संगीता पाटिल बखूबी समझती थी, पर क्या करें? इसी बीच स्कूल के पास स्थापित जेके लक्ष्मी सीमेंट की सीएसआर की टीम स्कूल पहुंची और बेटियों के लिए कुछ करने की इच्छा जताई। बस क्या था संगीता मेडम ने झट से कह दिया अगर सेनेटरी नैपकिन की मशीन लग जाए तो अच्छा होता। फ्रैक्ट्री के अधिकारियों को बात जंच गई और चंद महीनों में बेटियो ंके लिए नैपकिन की मशीन लग गई। शिक्षक संगीता बताती हैं कि मशीन लगने के बाद बेटियों को पीरियड्स के दौरन चेंज करने और नैपकिन की जरूरतों की दिक्कत तो दूर हो गई, वहीं उनकी चुप्पी भी टूटी और उन्होंने अपनी हाईजीन को लेकर बात करना भी सीख लिया। तो लड़कों को भी समझाया गया कि आखिर स्कूल में सैनेटरी नैपकिन की मशीन क्यों जरूरी है। वे बताती हैं कि इस मशीन के लगने के बाद पॉयलट प्रोजक्ट के रूप में छत्तीसगढ़ शासन ने इसे स्वीकारा और महिला एवं बाल विकास विभाग ने सुचिता योजना में इसे शामिल कर पूरे प्रदेश के हाई और हायर सेकंडरी स्कूलों में यह मशीन लगवाई।
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पोटिया स्कूल का प्रिंट रिच और बाल केबिनेट छा गया प्रदेशभर में
टूटी फूटी दीवारों के बीच उखड़ते प्लॉस्टर और रंग छोड़ती दीवारें.. अक्सर सरकारी स्कूलों की यह तस्वीर हर जगह देखने मिल जाएगी। नाममात्र के बजट में शिक्षक करें भी तो क्या,लेकिन दुर्ग के धमधा विकासखंड के पोटिया के प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल ने निजी स्कूलों को पीछे छोड़ अपनी अलग पहचान बनाई। 2011 में शिक्षक पवन सिहं ने दोनों स्कूलों के प्रधानपाठक के साथ मिलकर स्कूल की तस्वीर बदलने का बीड़ा उठाया। जनसहयोग से पहले दीवारों को प्रिंट रिच बनाया और फिर स्कूल में बाल केबिनेट का कंसेप्ट ला कर उसे अलग पहचान दी। छोटे बच्चों में नेतृत्व क्षमता और उन्हें जिम्मेदार बनाने उन्हें स्कूल का प्रधानमंत्री से लेकर अलग-अलग मंत्रीपद की जिम्मेदारी दी। इतना ही नहीं इनका चयन बच्चों ने मतदान के जरिए किया। स्कूल में लोकतांत्रिक व्यवस्था को समझाने बनी बाल केबिनेट को 2014 में पंच प्रधान का नाम दिया गया। जब एनसीईआरटी के चर्चा पपत्र में जब इसे प्रमुखता से लिया गया तो यह कंसेप्ट पूरे प्रदेश के स्कूलों में लागू किया गया। वही प्रदेश का यह पहला स्कूल है जिसे केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्रालय ने 2017 में स्वच्छ स्कूल के लिए पुरस्कृत किया था।
आट्र्स के बच्चे भी कर सकें प्रैक्टिकल इसलिए बना दिया सोशल लैब
हाल ही में सेवानिवृत्त हुई घुघवा हायर सेकंडरी स्कूल की प्राचार्य किरण बाला वर्मा स्वयं एक बॉयोलॉजी की स्टूडेंट थी, लेकिन जब वे आट्र्स के बच्चों को साइंस प्रैक्टिकल रूम के सामने खड़े होकर दूसरे बच्चों को लैब में काम करते देखती तो उन्हें बुरा लगता। तब उन्होंने अपने शिक्षक संतोष बघेल और मारिया जास्मिन के साथ मिलकर सामाजिक विज्ञान का लैब ही तैयार कर लिया। भूगोल, इतिहास के साथ कला और संस्कृति को शामिल कर उन्होंने इस लैब को प्रदेश में पहचान दिलाई। यह पहला स्कूल था जो आट्र्स के विषयों के लिए अपना लैब तैयार कर चुका था। सेवानिवृत्त प्राचार्य किरणबाला बताती हैं कि इस लैब को स्वयं बच्चों ने ही तैयार किया। भूगोल में पढ़ाए जाने वाले नदी, पहाड़, जंगल, नक्शे, इतिहास में हडप्पा की संस्कृति जैसे विषयों के मॉडल तैयार होने लगे। अब तो स्कूल के एनुवल फंक्शन में साइंस स्टूडेट्स के साथ आट्र्स स्टूडेंट्स के मॉडल्स का मुकाबला होने लगा और बच्चों को भी पढऩे में मजा आने लगा कि वे भी लैब में प्रैक्टिकल करते हैं। वे बताती हैं।

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