गोविंद गुरु आमजन को भक्ति से जोड़ने का कार्य करते हुए मानगढ़ धाम पहुंचे थे। गोविंद गुरु के दो पुत्र हरिगर, अमरूगर थे। हरिगर के दो पुत्र मानसिंह व गणपत बांसिया गांव में ही रहे। मानसिंह के पुत्र करणगिरी बांसिया में स्थित धाम को संभाल रहे हैं। वहीं दूसरे पुत्र अमरूगर महाराज के दो पुत्र थे और उनका परिवार बांसवाड़ा जिले में त्रिपुरा सुंदरी के पास कालीभीत गांव में बस गया।
डूंगरपुर जिले के बांसिया में बंजारा परिवार में जन्मे गाेविंद गुरु ने आदिवासी बहुल इस क्षेत्र में कुरीतियां मिटाने के लिए 1890 के दशक में भगत आंदोलन आरंभ किया। इससे पहले लोगों को धर्म से जोड़कर शिक्षा के लिए प्रेरित किया। लोगों को शराब, मांस, व्यभिचार, शराब आदि छोड़ने को प्रेरित करने के लिए सम्प सभा की स्थापना की।
1903 से मार्गशीर्ष पूर्णिमा को सम्प सभा का वार्षिक मेला भरने लगा। सामाजिक सुधारक गोविंद गुरु अंग्रेजों को खटकने लगे। 17 नवम्बर, 1913 को मानगढ़ में वार्षिक मेला था। उन्होंने अकाल पीड़ित आदिवासियों का लगान कम करने, धार्मिक परम्पराओं का पालन करने देने तथा बेगार से मुक्ति के लिए अंग्रेजी शासन को पत्र लिखा। इसके विपरीत ब्रिटिश अधिकारियों ने मानगढ़ पहाड़ी को घेरकर गोविन्द गुरु को भक्तों सहित पहाड़ी छोड़ने का आदेश दिया। इसी दौरान कर्नल शटन के नेतृत्व में पुलिस ने गोलीबारी आरंभ कर दी। चंद मिनटों में पहाड़ी पर 1500 से अधिक आदिवासी शहीद हो गए और हजारों लोग घायल हुए।
अंग्रेज पुलिस ने गोविन्द गुरु को गिरफ्तार कर अहमदाबाद जेल भेज दिया। उन्हें पहले फांसी की सजा सुनाई, लेकिन अच्छे आचरण के कारण फांसी की सजा रोक दी गई। करीब दस वर्ष का कारावास पूर्ण होने के बाद 1923 में जनसेवा से जुड़ गए। 30 अक्तूबर 1931 को गुजरात के कम्बोई गांव में निधन हो गया।
मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की राज्य सरकार की मांग के बीच गत एक नवम्बर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मानगढ़ धाम पर आए थे।