प्रसव के बाद यूट्रस कुछ समय में सिकुड़कर सामान्य अवस्था में आ जाता है। लेकिन जब ऐसा नहीं होता है तो यूट्रस से लगातार रक्तस्राव होता है। इसके कई कारण हो सकते हैं। इसमें प्लेटलेट डिसऑर्डर और ब्लड संबंधी समस्या होती है जिस वजह से रक्त जम नहीं पाता और बहता रहता है। ऐसी महिलाएं जिनके पहले से तीन चार बच्चे हैं और वे फिर से मां बनती हैं तो उनमें यूट्रस की झिल्ली काफी कमजोर हो जाती। इससे प्रसव बाद रक्तस्राव का खतरा रहता है।
पोस्टपार्टम एनीमिया की स्थिति में प्रसव के बाद रक्तस्राव होने और समय पर इलाज न मिलने से हीमोग्लोबिन की मात्रा 12 से कम हो जाती है। यह दिक्कत उन महिलाओं में अधिक होती है जिनका प्रसव संस्थागत (किसी चिकित्सा केंद्र में) नहीं होता है। ऐसे में प्रसव के बाद हीमोग्लोबिन जांच कराते रहें। नियमित रक्तस्राव और साथ में नवजात को स्तनपान कराने से प्रसूता कमजोर हो जाती है। खून की कमी से दूध न बनने की परेशानी भी हो सकती है।
– 100 में से 1 महिला को प्रसव बाद पोस्ट- पार्टम एनीमिया का खतरा रहता है।
– 24 घंटे प्रसव के बाद भी रक्तस्राव हो रहा है तो इसे नजरअंदाज न करें।
– मां को खून की कमी से बच्चे को भी तकलीफ हो सकती है।
काम में मन न लगना। दूध न उतरने की भी शिकायत होती है।इसमें कमजोरी आना, सिर भारी होना, चक्कर आना, थोड़ी देर चलने या खड़े रहने पर थकान महसूस होना, सांस फूलना, धड़कन बढ़ जाना आदि प्रमुख हैं। प्रसूता के स्वभाव में चिड़चिड़ापन भी महसूस होता है। भूख न लगना। कुछ खाते ही उल्टी करने का जी करना जैसा भी लगता है।
प्रसव के बाद जब प्रसूता को रक्तस्राव होता है तो समय पर इलाज जरूरी है। सबसे पहले दवा और कुछ इंजेक्शन देते हैं जिससे यूट्रस सिकुड़ जाए और रक्तस्राव बंद हो जाए। इससे भी आराम नहीं मिलता तो ‘बाय मैनुअल कंप्रेशन’ देते हैं। इसमें दोनों हाथों से महिला के पेट पर दबाव बनाते हैं जिससे यूट्रस में सिकुडऩ आ जाए। गंभीर मामलों में रक्तस्राव रोकने के लिए विशेष तरह के टांके लगाते हैं। इससे भी रक्तस्राव नहीं रुकता है तो यूट्रस को खून पहुंचाने वाली वाहिकाओं को ब्लॉक करते हैं। अंतिम विकल्प के तौर पर यूट्रस निकालना पड़ता है।