क्यासनूर फॉरेस्ट डिजीज (KFD), जिसे आमतौर पर ’Monkey Fever’ के रूप में जाना जाता है, एक टिक-जनित जूनोटिक बीमारी है जो भारत में पहली बार 1957 में शिवमोग्गा जिले में रिपोर्ट की गई थी। इसके बाद यह राज्य के अन्य हिस्सों और कर्नाटक के बाहर फैल गई । तब से यह तमिलनाडु, वायलनाड और मलप्पुरम जिलों में केरल, उत्तरी गोवा और महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले में नीलगिरी में देखा गया है।
वायरस जो KFD का कारण बनता है वह फ्लेववायरस जीनस ( Flavivirus genus ) का एक सदस्य है। यह संक्रमित टिक्स ( एक प्रकार का कीड़ा जिसे पिस्सू भी कहा जाता है ) के माध्यम से मनुष्यों में फैलता है। इसे आमतौर पर Monkey Virus या बंदर बुखार कहा जाता है क्योंकि यह जंगली में बंदरों की मौत के साथ जुड़ा हुआ है। संक्रमित टिक बंदरों के शरीर में घुसकर उसे संक्रमित कर देते हैं।जब बंदर संक्रमण से मर जाते हैं, तो उनके शरीर से टिक निकल जाते हैं, जिससे संक्रामक टिक्सेस का एक हॉटस्पॉट बन जाता है। मुनष्य में यह बीमारी संक्रामक टिक के काटने या संक्रमित बंदर या बीमारी से मरे हुए बंदर के सम्पर्क में आने से हाेती है।
लोगों में संक्रमण के लक्षणों में अचानक उच्च ग्रेड बुखार, संभव मतली और उल्टी, दस्त के साथ-साथ रक्तस्रावी (रक्तस्राव) की प्रवृत्ति शामिल है। संक्रमण का कोई विशिष्ट उपचार ( kyasanur Forest Disease Treatment ) नहीं है। डॉक्टर लक्षणों के आधार पर प्रभावित लोगों का इलाज करते हैं और सुनिश्चित करते हैं कि उनकी रक्त रिपोर्ट सामान्य सीमा के भीतर हो ताकि रक्तस्रावी प्रवृत्तियाँ ( Haemorrhagic Tendencies ) उत्पन्न न हों।