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धौलपुर

खुद यतीम, मेहनत की और बने डॉक्टर, गरीब बच्चों को दान किया पहला वेतन

– युवाओं की बदलती सोच का अनूठा उदाहरण डॉ. मनोज कुमार मीना
– बोले – सफलता के लिए सिर्फ कल्पना ही नहीं, सार्थक कर्म भी जरूरी

धौलपुरDec 10, 2022 / 06:23 pm

Naresh

Orphan himself, worked hard and became a doctor, donated first salary to poor children

खुद यतीम, मेहनत की और बने डॉक्टर, गरीब बच्चों को दान किया पहला वेतन

खुद यतीम, मेहनत की और बने डॉक्टर, गरीब बच्चों को दान किया पहला वेतन


– युवाओं की बदलती सोच का अनूठा उदाहरण डॉ. मनोज कुमार मीना

– बोले – सफलता के लिए सिर्फ कल्पना ही नहीं, सार्थक कर्म भी जरूरी
धौलपुर. जीवन की तमाम विपरीत परिस्थितियों को मात देकर सफलता की इबारत लिखने का उम्दा उदाहरण हैं भूरेकापुरा निवासी डॉ. मनोज कुमार मीना।

पथरीले डांग में जन्म, बचपन में ही पिता का साया सिर से उठने जैसी तमाम विपरीत परिस्थितियों को पीछे छोड़ आज डॉ. मीना नई दिल्ली के प्रतिष्ठित सफदरजंग अस्पताल में मेडिकल विभाग में चिकित्सक के पद पर कार्यरत हैं।
डॉ. मीना का कहना है कि सफलता के लिए सिर्फ कल्पना ही नहीं, सार्थक कर्म भी जरूरी है। सीढिय़ों को देखते रहना पर्याप्त नहीं, बल्कि उन पर चढऩा भी जरूरी है। डॉ. मीना का कहना है कि ईश्वर ने बचपन में ही मेरे सिर से पिता का साया छीन लिया लेकिन, उसी ईश्वर ने मेरी पतवार एक नेक व रहमदिल इन्सान मेरे चाचा रमेश के हाथों में सौंप दी। मैंने भी अपने कष्टों को कर्म की धारा में पिरोकर मुकाम हासिल करने का लक्ष्य साधा।
सिलिकोसिस ने छीना पिता का साया

मनोज का जन्म डांग क्षेत्र के एक पथरीले पठार की चोटी पर बसे छोटे से गांव भूरेकापुरा में हुआ। इस क्षेत्र में रोजी रोटी का एकमात्र साधन खनन कार्य है। मनोज के पिता रामगोपाल मीना भी खनन श्रमिक थे। खनन कार्य ने उन्हें सिलकोसिस बीमारी का शिकार बना दिया। 8 साल की उम्र में मनोज के सिर से पिता का साया उठ गया। मनोज के पिता के बड़े भाई भी पूर्व में ही सिलकोशिस का शिकार हो गए थे।
चाचा ने पाले तीन परिवार

मनोज ने बताया कि उनके व ताऊ के परिवारों सहित तीन परिवारों के जीवन निर्वाह का भार उनके चाचा रमेशचन्द ने उठाया। ऐसे में दो वक्त की रोटी जुटाना भी आसान काम नहीं था।
बचपन से थे प्रतिभाशाली

मनोज बचपन से ही प्रतिभाशाली छात्र रहे। हृदय विदारक दुखों और पहाड़ जैसी पारिवारिक जिम्मेदारियों के बावजूद इरादों पर अडिग हो, अपने चाचा रमेश चन्द के ख्वाबों को पूरा किया। जिन्दगी के तमाम अवरोधकों को चकनाचूर करते अपनी मंजिल को हासिल किया।
अपने जैसों को समर्पित किया पहला वेतन

‘सोच बदलो गांव बदलो’ टीम की विचारधारा और सामाजिक उत्थान में अग्रणी भूमिका से प्रेरित होकर डॉ. मीना ने अपना पहला वेतन संस्था की ओर से सरमथुरा में संचालित उत्थान कोचिंग को समर्पित की है। इस कोचिंग में गरीब बच्चों को प्रतियोगी परीक्षाओं का नि:शुल्क प्रशिक्षण दिया जाता है।

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