दरअसल फरवरी 2007 को धौलपुर के नजदीक मथुरा में खेरागढ़ इलाके में वकील रवि गर्ग अपने भाई और अपने छह साल के बेटे के साथ घर के नजदीक ही एक दुकान पर बैठे थे। इसी दौरान चंबल के दस्युं डकैत गुड्डन और राजकुमार अपने साथियों के साथ वहां आ गए। वे जीप में थे और तड़ातड़ फायरिंग किए जा रहे थे। वहां भगदड़ मच गई। डकैतों ने बच्चे के अपहरण का प्लान पहले ही बना लिया था।
छह साल का हर्ष उनका टारगेट था। हर्ष को उसके पिता रवि की गोद से छीनने की डकैतों ने कोशिश की और इस कोशिश में बीच में आ रहे हर्ष के पिता रवि को डकैतों ने गोली मार दी। गोली पैर में लगी और उसके बाद डकैत हर्ष को लेकर फरार हो गए। करीब बीस दिन डकैतों के चंगुल में रहने के बाद मथुरा पुलिस ने डकैतों को काबू किया और हर्ष को सुरक्षित छुड़ा लिया।
लेकिन हर्ष के पिता रवि काफी दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहे। पिता की हालत देखकर बेटे ने डकैतों को सबक सिखाने की ठान ली। उसने बारहवीं के साथ ही वकालात की पढ़ाई भी शुरू कर दी। वकील बनने के साथ ही वह केस लड़ रहे वकीलों के साथ कोर्ट जाने लगा और फिर खुद के केस में उसने पैरवी शुरू कर दी। हाल ही में इस मामले में फैसला आया है। कोर्ट ने दोनो डकैतों और उनके साथियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है।