लेकिन पीपल को घर में लगाने की मनाही है तो कई बार इसकी पूजा कर पाना संभव नहीं होता। खासतौर पर लॉक डाउन के इस पीरियड में। यानी कि जब बाहर जाना सेहत के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
वहीं दूसरी ओर प्राचीन भारतीय संस्कृति में दिनचर्या का शुभारंभ हवन, यज्ञ, अग्निहोत्र आदि से होता था। तपस्वी और ऋषि-मुनियों से लेकर सद्गृहस्थों, वटुक-ब्रह्मचारियों तक नित्य प्रति यज्ञ किया करते थे। प्रातः और सायं यज्ञ करके संसार के विविध रोगों का निवारण करते थे। ब्रह्मवर्चस शोधसंस्थान की किताब ‘यज्ञ चिकित्सा’ में बताया गया है कि यज्ञों का वैज्ञानिक आधार है।
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यज्ञ से वायरस का अंत!कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने को लेकर दुनिया भर में रिसर्च चल रही है। हालांकि इसके इलाज के लिए अभी तक कहीं भी कोई पुख्ता दवाई नहीं तैयार की जा सकी है। लेकिन इसकी रोकथाम के लिए और इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए आयुर्वेद के उपाय और प्राचीन चिकित्सा पद्धति का सहारा जरूर लिया जा रहा है।
वेदकाल से भारत में यज्ञ कर्म किए जाते हैं। भारतीय संस्कृति में यज्ञों का आध्यात्मिक लाभ तो है ही, परंतु वैज्ञानिक स्तर पर भी अनेक लाभ बताए गए हैं। सहज सरल और प्रतिदिन किया जाने वाला यज्ञ है ‘अग्निहोत्र’। अग्निहोत्र नियमित करने से वातावरण की शुद्धि होती है।
यज्ञ का धुंआ : करता है विषाणु नष्ट
यज्ञ के धुंए से युक्त वातावरण में विषाणु नष्ट होते हैं। अग्निहोत्र करने के लिए किसी भी पुरोहित को बुलाने की, दान धर्म करने की आवश्यकता नहीं होती। इसके लिए कोई भी बंधन नहीं है। सामान्य व्यक्ति यह घर, खेत, कार्यालय में मात्र 10 मिनट में कहीं भी कर सकता है। इसका खर्च भी बहुम कम है।
अग्निहोत्र नित्य करने से धर्माचरण तो होगा ही, साथ ही पर्यावरण के साथ ही समाज की भी रक्षा होती है। अग्निहोत्र के संदर्भ में अनेक वैज्ञानिक प्रयोग किए गए हैं। जो कि यह बताते हैं इसका धुंआ नेगेटिव एनर्जी को खत्म करने के साथ ही वातावरण से विषाणुओं का भी नाश करता है।
यज्ञ के लाभ
प्रदूषित हवा के घातक सल्फर डाइ ऑक्साइड का असर 10 गुना कम होता है। पौधों की वृद्धि नियमित की अपेक्षा अधिक होती है। अग्निहोत्र की विभूति कीटाणुनाशक होने से घाव, त्वचा रोग इत्यादि के लिए अत्यंत उपयुक्त है। पानी के कीटाणु और क्षारीयता भी कम होती है। वहीं ये भी माना जाता है कि यज्ञोपैथी का स्वास्थ्य पर बड़ा ही अनुकूल प्रभाव होता है।
कोरोना में शनि का प्रभाव: करें इस पौधे की पूजा :-
चूकिं इन दिनों कोरोना के संक्रमण में ज्योतिष शनि को भी एक कारण बता रहे हैं। ऐसे में ज्योतिष शास्त्र में शनि देव को प्रिय एक अन्य पौधे का जिक्र मिलता है। इसे आप अपने घर में लगाकर यदि नियमित रूप से पूजन-अर्चन करें तो शनि प्रकोप से राहत मिलती है। ऐसे समझें…
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शनि को प्रिय यह पौधा
यदि किसी जातक की राशि में शनि का दोष है तो इसकी शांति के लिए ज्योतिष शास्त्र में शमी पौधे का जिक्र मिलता है। मान्यता है कि इस पौधे में स्वयं शनि देव का वास होता है। इसलिए शनिवार के दिन इस पौधे को रोपना अत्यंत शुभ होता है। लेकिन ध्यान रखें कि यह पौधा घर के मुख्य द्वार के बाईं ओर गमले में या फिर जमीन में रोपें। इसे भी घर के अंदर नहीं लगाया जाता है। बता दें कि शनि देव के वास के ही चलते शमी का पौधा किसी भी मौसम में जीवित रह सकता है।
शनिवार : इस तरह करें पूजा
वैसे तो शमी की पूजा नियमित रूप से करनी चाहिए। लेकिन अगर किसी कारणवश आप पूजा नहीं कर पाते तो शनिवार के दिन शमी के नीचे दीपक जरूर जलाएं। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक सरसों के तेल का दीपक जलाएं तो यह अत्यंत शुभ होता है। इससे शनि की साढ़े साती और ढैय्या दोनों से ही राहत मिलती है।
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इसके अलावा सुबह-सवेरे शमी में जल चढ़ाना भी लाभदायक होता है। इससे शमी की पत्तियां हरी बनी रहती हैं। ज्योतिष कहता है कि इस पौधे की पत्तियां जितनी हरी होती हैं, जीवन में सुख-समृद्धि भी उतनी ही बढ़ती है।
सेहत जैसी परेशानियां हों तो
ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक शनि के प्रकोप के चलते कई बार एक्सीडेंट्स या फिर सेहत संबंधी परेशानियां भी लगी ही रहती हैं। यदि किसी के साथ यह दिक्कतें हों तो वह शमी की लकड़ी का प्रयोग कर सकते हैं।
इसके लिए किसी भी शनिवार को शमी के पौधे से थोड़ी सी लकड़ी तोड़कर काले धागे में लपेटकर धारण कर लें। साथ ही मन ही मन शनि देव से प्रार्थना करें कि जो भी अपराध या गलतियां जाने-अंजाने में आपसे हुई हैं। उनके लिए क्षमा करें और अपनी कृपा दृष्टि बनाएं। इसके अलावा शनि की शांति के लिए आप शमी की लकड़ी पर काले तिल से पूजन-हवन कर सकते हैं। इससे भी शनि देव प्रसन्न होते हैं।
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यज्ञ लाभ : वायरल रोग Yagya Benefits Viral Disease
जानकारों की मानें तो यज्ञों के माध्यम से शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ उठाया जा सकता है और विभिन्न रोगों से छुटकारा भी पाया जा सकता है। इतना ही नहीं संपूर्ण वैज्ञानिक एवं वैदिक विधि से किए गए यज्ञ से वृक्ष-वनस्पतियों की अभिवृद्धि भी की जा सकती है। यज्ञ अनुसंधान वैज्ञानिक अध्यात्मवाद की एक शोध शाखा है।
शारीरिक रोगों के साथ ही मानसिक रोगों मनोविकृतियों से उत्पन्न विपन्नता से छुटकारा पाने के लिए यज्ञ चिकित्सा से बढ़कर अन्य कोई उपयुक्त उपाय-उपचार नहीं है। विविध अध्ययन, अनुसंधानों एवं प्रयोग परीक्षणों द्वारा ऋषि प्रणीत यह तथ्य अब सुनिश्चित होता जा रहा है।
यज्ञोपैथी: यह एक समग्र चिकित्सा की विशुद्ध वैज्ञानिक पद्धति है, जो एलोपैथी, होम्योपैथी आदि की तरह सफल सिद्ध हुई है। ब्रह्मवर्चस ने लिखा है, ‘भिन्न भिन्न रोगों के लिए विशेष प्रकार की हवन सामग्री प्रयुक्त करने पर उनके जो परिणाम सामने आए हैं, वे बहुत ही उत्साहजनक हैं।
यज्ञोपैथी में इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है कि आयुर्वेद में जिस रोग की जो औषधि बताई गई है, उसे खाने के साथ ही उन वनौषधियों को पलाश, उदुम्बर, आम, पीपल आदि की समिधाओं के साथ नियमित रूप से हवन किया जाता रहे, तो कम समय में अधिक लाभ मिलता है।
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भैषज यज्ञ–आरोग्य वृद्धि और रोग निवारण के लिए किए गए यज्ञों को ‘भैषज्ञ यज्ञ’ कहते हैं। इसके तहत रोगी के शरीर में कौन सी व्याधि बढ़ी हुई है और कौन से तत्व घट या बढ़ गए हैंॽ उनकी पूर्ति करके शरीर की धातुओं का संतुलन ठीक करने के लिए किन औषधियों की आवश्यकता हैॽ
ऐसा निर्णय करके वनौषधियों की हवन सामग्री बनाकर उसी प्रकृति के वेद मंत्रों से आहुतियां दिलाकर हवन कराया जाता है। माना जाता है कि यज्ञ के धुएं में रहने और उसी वायु से सुवासित जल, वायु एवं आहार का सेवन करने से रोगी को बड़ा आराम मिलता है।
जानकारों की मानें तो अगर, तगर, जटामांसी, हाउबेर Hauber (Juniperus Communis), नीम पत्ती या छाल, तुलसी, गिलोय, कालमेघ, भुई आंवला, जायफल, जावित्री, आज्ञाघास, कड़वी बछ, नागरमोथा, सुगध बाला, लौंग, कपूर, कपूर तुलसी, देवदारु, शीतल चीनी, सफेद चंदन, दारुहल्दी। इन सभी सामग्री को समान मात्रा में मिला कर उपयोग करें। इस सामग्री का औषधियुक्त हवन सामग्री बनाने में उपयोग किया जा सकता है।
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औषधीय हवन सामग्री जिसमें कपूर, गौघृत अवश्य हो, को लेकर गायत्री एवं महामृत्युंजय मंत्र की आहुति अवश्य दी जाए। वहीं जानकार ये भी कहते हैं कि यदि यह सामग्री न भी मिले तो सामान्य हवन सामग्री का प्रयोग करें। माना जाता है कि इससे घर में विषाणु नष्ट होंगे, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढे़गी एवं सकारात्मकता बढे़गी।
अन्य विधियों से ज्यादा असरकारक
यज्ञ चिकित्सा के जानकार कहते हैं कि वे इसके सूक्ष्म परमाणु सीधे रक्त प्रवाह में पहुंचते हैं और पाचन शक्ति पर बोझ नहीं पड़ता जबकि मुख द्वारा ज्यादा पौष्टिक पदार्थ पाचन प्रणाली को लड़खड़ा सकते हैं। मुख द्वारा दी गई औषधि का कुछ अंश रक्त में जाकर शेष मल-मूत्र मार्ग से बाहर निकल जाता है, इस प्रकार कुछ ही मांग इच्छित अवयवों तक पहुंचता है।
इंजेक्शन द्वारा दी गई औषधि ज्यादा असर करती है, लेकिन इसकी भी सीमाएं हैं। कई दवाएं इन्हेलेशन थेरेपी से दी जाती हैं, ये जल्दी असर करती है। इसी तरह यज्ञोपैथी में फ्यूमीगेशन द्वारा धुएं में मौजूद दवाइयां श्वास मार्ग से एवं रोमकूपों से सीधे शरीर में प्रविष्ट करती है। रोगों के आधार पर वनौषधियों, जड़ियों, समधि सामग्री एवं हवनकुण्ड के आकार आदि का निर्णय लिया जाता है।