साल में दो बार शनि जयंती मनाने की वजह
दरअसल भारत में दो तरह के कैलेंडर प्रचलित हैं। इनके महीनों के नाम एक ही हैं, लेकिन समय में थोड़ा अंतर है। इस कारण देश के अलग-अलग हिस्से में इनके समय में थोड़ा अंतर हो जाता है। इसका असर शनि जयंती उत्सव सेलिब्रेशन पर भी पड़ता है। उज्जैन के पंचांगकर्ता पं. चंदन श्याम नारायण व्यास के अनुसार उत्तर भारत में पूर्णिमांत और दक्षिण भारत में अमावस्यांत कैलेंडर का प्रचलन है। दोनों में महीनों के नाम एक ही हैं, लेकिन अमावस्या और पूर्णिमा के बाद से महीने शुरू होने के चलते 15-15 दिन मिलाकर कैलेंडर में एक माह का फर्क आ जाता है।व्यास के अनुसार उत्तर भारत के पूर्णिमांत कैलेंडर के अनुसार शनिदेव का जन्म ज्येष्ठ महीने की अमावस्या को मनाया जाता है, जबकि दक्षिण भारत के अमावस्यांत कैलेंडर के कारण यह तिथि वैशाख अमावस्या (उत्तर भारत के अनुसार) के दिन ही पड़ जाती है। हालांकि कुछ ग्रंथों में शनि देव का जन्म भाद्रपद की शनि अमावस्या के दिन माना गया है।
हनुमान जन्मोत्सव क्यों मनाते हैं दो बार
इसी तरह हनुमान जयंती भी साल में दो बार मनाई जाती है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार उत्तर भारत में चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को यानी ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक मार्च या अप्रैल के बीच और कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी अर्थात नरक चतुर्दशी को यानी सितंबर-अक्टूबर के बीच हनुमान जन्मोत्सव मनाया जाता है। इसके अलावा तमिलानाडु और केरल में हनुमान जयंती मार्गशीर्ष माह की अमावस्या को और ओडिशा में वैशाख के पहले दिन मनाई जाती है। जानिए इसकी वजहदरअसल, मान्यता है कि चैत्र पूर्णिमा को मेष लग्न और चित्रा नक्षत्र में सुब 6:03 बजे हनुमानजी का जन्म एक गुफा में हुआ था। लेकिन वाल्मिकी रामायण के अनुसार हनुमानजी का जन्म कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मंगलवार के दिन, स्वाति नक्षत्र और मेष लग्न में हुआ था। इसके पीछे वजह बताई जाती है कि पहली तिथि पर हनुमानजी सूर्य को फल समझ कर खाने के लिए दौड़े थे, उसी दिन राहु भी सूर्य को ग्रास बनाने आया था लेकिन हनुमानजी को देखकर सूर्यदेव ने उन्हें दूसरा राहु समझ लिया।