कहीं आप भी तो श्राद्ध का भोजन किसी दूसरे के घर नहीं करते…
आश्विन मास में कृष्ण पक्ष के 15 दिनों में (प्रतिपदा से लेकर अमावस्या) तक यमराज पितरों को मुक्त कर देते हैं और समस्त पितर अपने-अपने हिस्से का ग्रास लेने के लिए अपने वंशजों के समीप आते हैं, जिससे उन्हें आत्मिक शांति प्राप्त होती है। पितृ पक्ष के दौरान हजारों की संख्या में लोग अपने पितरों का पिण्डदान घर में या इन तीर्थस्थलों में जाकर करते हैं, जिससे पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
भारत के इन तीर्थस्थलों में करें श्राद्ध कर्म 1- बिहार में “गया” देवभूमि गया को मोक्ष की भूमि माना जाता है- गया को भगवान विष्णु का नगर माना गया है, यह मोक्ष की भूमि कहलाती है, विष्णु पुराण और वायु पुराण में भी इसकी चर्चा की गई है, विष्णु पुराण के मुताबिक गया में पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष मिलता है और वे स्वर्ग लोक में वास करते हैं। माना जाता है कि स्वयं भगवान श्री विष्णु यहां पितृ देवता के रूप में विराजते हैं, इसलिए इसे ‘पितृ तीर्थ’ भी कहा जाता है।
2- उत्तराखंड के हरिद्वार में “गायत्री तीर्थ शांतिकुंज” शांतिकुंज को वेदमाता गायत्री का निवास स्थान कहा जाता है यहां साक्षात गायत्री माता और यज्ञ भगवान निवास करते हैं। शांतिकुंज तीर्थ में साल के 365 दिन श्राद्ध कर्म सम्पन्न किये जाते हैं। इस तीर्थ में पितरों का श्राद्ध करने से पितरों की अतृप्त आत्माओं को मुक्ति मिल जाती है।
3- उत्तराखंड के “बद्रीनाथ” – चार प्रमुख धामों में से एक बद्रीनाथ के ब्रहमाकपाल क्षेत्र में अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया जाता है। कहा जाता है कि पाण्डवों ने भी अपने पितरों का पिंडदान इसी जगह किया था।
4- उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद – “तीर्थराज प्रयाग” में तीन प्रमुख नदियां गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम होता है। पितृपक्ष में बड़ी संख्या में लोग यहां पर अपने पूर्वजों को श्राद्ध देने आते हैं। यहां श्राद्ध कर्म करने से पितरगण मुक्त हो जाते हैं।
5- उत्तरप्रदेश का “काशी”- ऐसी मान्यता हैं कि काशी में मरने पर मोक्ष मिलता है। काशी भगवान शिव की नगरी है। काशी में पिशाचमोचन कुंड पर श्राद्ध का विशेष महत्व होता है। यहां अकाल मृत्यु वाले पितरों के निमित्त पिंडदान करने से वे आत्माएं मोक्ष को प्राप्त होती है।
6- मध्यप्रदेश के उज्जैन में “सिद्धनाथ”- उज्जैन में शिप्रा नदी के किनारे स्थित सिद्धनाथ में श्राद्ध कर्म अर्पित करने से सभी अतृप्त आत्माओं को शांति और मुक्ति मिल जाता है।
7- गुजरात के “पिण्डारक”- गुजरात के द्वारिका से 30 किलोमीटर की दूरी पर पिण्डारक में श्राद्ध कर्म करने के बाद नदी में पिण्ड डालने से पिशाच योनी वाले पितरों को मुक्ति मिलती है।
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