ऋग्वेद की बात करें, तो इसमें स्वस्तिक को सूर्य का प्रतीक माना गया है और इसकी 4 भुजाओं को चार दिशाए बताया गया है। इस चिह्न का संबंध सुख-समृद्धि से भी होता है। माना जाता है यदि इस चिह्न को बनाकर कार्य की शुरुआत की जाती है, तो इससे कार्य बिना किसी बाधा के संपन्न होता है। स्वस्तिक की संरचना गणित के धन चिन्ह यानी जोड़ को दर्शाती है। स्वस्तिक 27 नक्षत्रों को
संतुलित कर सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है।
स्वस्तिक का अर्थ
स्वस्तिक को भगवान श्रीगणेश का प्रतीक माना गया है। स्वस्तिक शब्द धातु अक्षर ‘सु’, ‘अस’ और ‘क’ से मिलकर बना है। जिसमें सु शब्द का अर्थ है ‘शुभ’, अस-शब्द का अर्थ है ‘अस्तित्व’ और क का अर्थ है ‘कर्ता’ या करने वाले से है। इस प्रकार स्वस्तिक शब्द का अर्थ हुआ शुभ अस्तित्व का होना। मान्यताओं के अनुसार, स्वस्तिक का निशान बनाने से व्यक्ति को शुभ फलों की प्राप्ति होती है। स्वस्तिक यानी मंगल या कल्याण करने वाला। मान्यता है स्वस्तिक में बनाई जाने वाली चार रेखाएं चारों दिशाओं (पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण) को दर्शाती हैं। एक मान्यता यह भी है कि स्वस्तिक की चारों रेखाएं चारों वेदों का प्रतीक हैं। एस्ट्रोलॉजर पंडित विजय गोयल का कहना है कि स्वस्तिक जीवन के चार पड़ाव ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, संन्यास और वानप्रस्थ आश्रम से जुड़ा है। उनका कहना है इतना ही नहीं स्वास्थ्य, भाग्य, सफलता और समृद्धि से जुड़ा है स्वस्तिक। इसे बहुत पवित्र माना गया है।
स्वस्तिक का चिह्न मिला खुदा हुआ
सिंधु घाटी से प्राप्त मुद्रा और बर्तनों में स्वस्तिक का चिह्न खुदा हुआ मिला है। कई जगह स्वस्तिक का महत्त्व बताया गया है। उदयगिरि और खंडगिरि की गुफा में भी स्वस्तिक के चिह्न मिले हैं। मोहन जोदड़ो, हड़प्पा संस्कृति, अशोक के शिलालेखों, रामायण, हरिवंश पुराण, महाभारत आदि में इसका अनेक बार उल्लेख मिलता है। स्वस्तिक शब्द का प्रयोग भारतीय उपमहाद्वीप में 500 ईसा पूर्व से होता आ रहा है। इस शब्द को प्राचीन भाषाविद् पाणिनि ने अपनी रचना अष्टाध्यायी में दर्ज किया था। 19वीं और 20वीं सदी की शुरुआत में सुआस्तिका वर्तनी का उपयोग किया गया।
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक
स्वस्तिक के मध्य भाग को विष्णु की कमल नाभि और रेखाओं को ब्रह्माजी के चार मुख, चार हाथ और चार वेदों के रूप में भी निरूपित किया जाता है। कई ग्रंथों में स्वस्तिक को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक भी माना गया है। अमरकोश में ‘स्वस्तिक’ का अर्थ आशीर्वाद, मंगल या पुण्यकार्य करना लिखा है। अमरकोश के शब्द हैं – स्वस्तिक, सर्वतोऋ द्धश् अर्थात् सभी दिशाओं में सबका कल्याण हो। ”स्वस्तिक” शब्द की निरुक्ति है ‘स्वस्तिक क्षेम कायति, इति स्वस्तिक:’ अर्थात् कुशलक्षेम या कल्याण का प्रतीक ही स्वस्तिक है। सिद्धान्त सार ग्रन्थ में इसे विश्व ब्रह्माण्ड का प्रतीक चित्र माना गया है।
स्वस्तिक का धार्मिक महत्व
स्वस्तिक सौभाग्य का-सूचक होता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार चंदन, सिंदूर और कुमकुम आदि से स्वस्तिक बनाने से व्यक्ति के ग्रह दोष दूर होते हैं और घर के वास्तुदोष भी दूर होते हैं। स्वस्तिक को वास्तुशास्त्र में वास्तु का प्रतीक माना गया है। ज्योतिष में इस मांगलिक चिह्न को प्रतिष्ठा, मान-सम्मान, सफलता और उन्नति का प्रतीक माना गया है। ज्योतिषी और वास्तुविद बताते हैं कि स्वस्तिक बनाने के लिए हमेशा लाल रंग के कुमकुम, हल्दी अथवा अष्टगंध, सिंदूर का प्रयोग करना चाहिए। इसके लिए धन प्लस का चिह्न बनाना चाहिए और ऊपर की दिशा ऊपर के कोने से स्वस्तिक की भुजाओं को बनाने की शुरुआत करनी चाहिए। स्वस्ति शब्द वेदों के साथ-साथ शास्त्रीय साहित्य में भी आता है। स्वस्तिक शब्द संस्कृत की धातु स्वस्ति से बना है। वास्तुशास्त्री कहते हैं कि तर्जनी अंगुली से सोने से पहले स्वास्तिक का निर्माण करें और उसके बाद सो जाएं। इससे सुकून भरी नींद आने लगती है।