गोस्वामी तुलसीदास जी के अनुसार हनुमानजी को जल्द प्रसन्न करने के लिए सुंदरकांड का पाठ एक रामबाण उपाय है। इसका पाठ को करने वाले के जीवन में खुशियों का संचार होने लगता है। जानें सुंदरकांड के पाठ को करने से और क्या-क्या लाभ होते हैं।
– तुलसीकृत रामायाण के अनुसार जब हनुमानजी, माता सीता की खोज में लंका गए थे और लंका के सुंदर पर्वत स्थित अशोक वाटिका में हनुमानजी और माता सीताजी की भेंट पहली बार हुई थी। सुंदरकांड की यही सबसे प्रमुख घटना थी इसलिए तुलसीदास जी ने इसका नाम सुंदरकांड रखा था।
– ऐसी मन्यता है कि शुभ अवसरों एवं परिवार के दुख कष्टों के समय श्री सुंदरकांड का पाठ करने से शुभ कार्यों में सफलता एवं समस्याओं से छुटकारा मिल जाता है। अगर किसी व्यक्ति के जीवन में ज्यादा परेशानियां हो, कोई काम नहीं बन पा रहा हो या फिर आत्मविश्वास की कमी हो या कोई और समस्या हो, सुंदरकांड के पाठ से शुभ फल प्राप्त होने लग जाते हैं। ऐसी विपरित परिस्थितियों में सुंदरकांड का पाठ करने से हनुमान जी उनके सहायक बन जाते हैं।
– ऐसी मान्यता है कि श्री सुंदरकांड के पाठ से हनुमानजी अति शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। जो लोग नियमित रूप से सुंदरकांड का पाठ करते हैं, उनके सभी दुख दूर हो जाते हैं। इसमें हनुमानजी ने अपनी बुद्धि और बल से सीता की खोज की है। इसी वजह से सुंदरकांड को हनुमानजी की सफलता के लिए याद किया जाता है। अगर कोई लगातार 3 तीन दिन तक विशेष लाभ की प्राप्ति के लिए हनुमान जी की इस स्तुति का पाठ करता है तो कुछ ही समये में सारी समस्याएं खत्म हो जाती है
– सुंदरकांड के बारे में जानकार लोग कहते हैं कि यह मान समस्या का सबसे अच्छा रामबाण इलाज है। वास्तव में श्रीरामचरितमानस के सुंदरकांड की कथा सबसे अलग हैं, संपूर्ण श्रीरामचरितमानस भगवान श्रीराम के गुणों और उनके पुरुषार्थ को दर्शाती हैं, लेकिन सुंदरकांड एकमात्र ऐसा अध्याय है जिसमें भगवान श्रीराम के भक्त हनुमानजी की विजय गाथा गाई जाती है। मनोवैज्ञानिक नजरिए से देखा जाए तो यह आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति बढ़ाने वाला कांड भी हैं। सुंदरकांड के पाठ से व्यक्ति को मानसिक शक्ति प्राप्त होती हैं और किसी भी कार्य को पूर्ण करने के लिए आत्मविश्वास मिलता है।