यह भी माना जाता है कि च्यवन ऋषि को आंखों की ज्योति भी स्कंद षष्ठी की उपासना से ही प्राप्त हुई। ब्रह्मवैवर्तपुराण के मुताबिक स्कंद षष्ठी की कृपा से प्रियव्रत का मृत शिशु जीवित हो गया।
वहीं स्कन्द षष्ठी पूजा से पौराणिक परम्परा भी जुड़ी है, माना जाता है कि भगवान शिव के तेज से उत्पन्न बालक स्कन्द की रक्षा छह कृतिकाओं ने स्तनपान करा की थी। ऐसे में इनके छह मुख हैं और इन्हें कार्तिकेय नाम से भी पुकारा जाता है। पुराण व उपनिषद में भी इनकी महिमा का उल्लेख मिलता है।
जानकारों के अनुसार देवी मां दुर्गा के 5वें स्वरूप यानि स्कंदमाता को भगवान कार्तिकेय की माता माना जाना जाता है। वहीं सुब्रह्मण्यम के नाम से भी भगवान कार्तिकेय को पुकारा जाता हैं और चम्पा पुष्प इन्हें प्रिय माना जाता है।
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स्कंद षष्ठी व्रत विधि
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर घर की साफ-सफाई करने के बाद स्नान-ध्यान कर व्रत का संकल्प लें। फिर घर के पूजा घर में मां गौरी और शिव जी के साथ भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा को विराजित करें। जिसके बाद जल, मौसमी फल, फूल, मेवा, कलावा, दीपक, अक्षत, हल्दी, चंदन, दूध, गाय का घी, इत्र आदि से पूजा करें।
फिर अंत में आरती करें। इस दिन शाम के समय कीर्तन-भजन पूजा के बाद आरती करें। इसके बाद ही फलाहार ग्रहण करें।
इस दिन भगवान को स्नान, पूजा के अलावा नए वस्त्र भी पहनाए जाते हैं। वहीं इस दिन भगवान को भोग भी लगाया जाता है। माना जाता है कि किसी विशेष कार्य की सिद्धि के लिए इस दिन की गई पूजा खास फलदायी होती है। इसमें जहां साधक तंत्र साधना भी करते हैं, वहीं नियम के अनुसार इस दौरान मांस, शराब, प्याज, लहसुन का सेवन नहीं करते हुए ब्रह्मचर्य के के तहत संयम रखना होता है।
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स्कंद षष्ठी का धार्मिक महत्वधार्मिक मान्यता के अनुसार, स्कंद षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा से जीवन में हर तरह की कठिनाइंया दूर होती हैं और व्रत रखने वालों को सुख और वैभव की प्राप्ति होती है। इसके अलावा यह व्रत संतान के कष्टों को कम कर उसके सुख की कामना के लिए भी किया जाता है।
भगवान कार्तिकेय की जन्म कथा के संबंध में पुराणों के अनुसार जब दैत्यों का अत्याचार और आतंक फैल गया तो देवताओं को पराजय का सामना करना पड़ता है। ऐसे में सभी देवता भगवान ब्रह्मा के पास पहुंचे अपनी रक्षा के लिए उनसे प्रार्थना की।