कल्पभेद से इस पर सहमति है पर पुराणों में मध्याह्नकाल का वर्णन ही सर्वमान्य है। ये भगवान कृष्ण की अनन्य भक्त थीं, जिन्होंने प्रेम के माध्यम से आत्मा के परमात्मा से मिलन का मार्ग दिखाया था। इन्हें संपूर्ण कामनाओं का राधन (साधन) करने के कारण राधा कहा गया है। इनके प्राकट्य दिवस यानी भाद्रपद शुक्ल पक्ष अष्टमी को राधा अष्टमी व्रत रखकर भक्त इनका ध्यान करते हैं।
राधा की पूजा के बिना श्रीकृष्ण की पूजा अधूरी
Radha Ashtami: कई धार्मिक ग्रंथों में श्री राधा को कृष्ण की शाश्वत शक्ति बताया गया है। मान्यता है कि राधा जी की पूजा के बिना श्रीकृष्ण जी की पूजा अधूरी है। राधाजी को कृष्ण का वरदान भी मिला हुआ है कि उनके नाम के पहले राधा जी का नाम लिया जाएगा। इसीलिए भगवान के भक्त राधे कृष्ण मंत्र का जाप करते हैं।क्या जन्माष्टमी व्रत रखने वालों के लिए अनिवार्य है राधा अष्टमी व्रत
शास्त्रों के अनुसार राधा अष्टमी यानी राधा जन्मोत्सव व्रत या राधा प्राकट्योत्सव व्रत भाद्रपद शुक्ल पक्ष अष्टमी के दिन रखा जाता है, जबकि भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव व्रत 15 दिन पहले भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी को मनाया जाता है। आजकल वृंदावन और आसपास के कृष्ण भक्त जन्माष्टमी के साथ राधा अष्टमी व्रत रखते हैं।राधा अष्टमी का महत्व
राधा अष्टमी व्रत प्रायः महिलाएं रखती हैं। इस दिन व्रत रखने और राधा रानी की सच्चे मन से पूजा करने से दांपत्य जीवन में खुशहाली आती है। पति-पत्नी के रिश्ते में मजबूती आती है। मान्यता है कि इस दिन शुभ मुहूर्त में पूजा अर्चना करने से दोगुना फल प्राप्त होता है।(नोट-इस आलेख में दी गई जानकारियां पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं, www.patrika.com इसका दावा नहीं करता। इसको अपनाने से पहले और विस्तृत जानकारी के लिए किसी विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें।)